October 6, 2024

Raag Ratlami Police Curfew -रात ग्यारह बजे शहर में लग जाता है वर्दी वालों का कर्फ्यू,आधी रात को शहर में नहीं मिलती चाय भी

रतलाम। सूबे के मुखिया मोहन जी ने राज्य के कुछ बडे शहरों मेंंं चौबीसों घण्टे व्यावसायिक गतिविधियां चालू रखने की घोषणा की थी। इन बडे शहरों में रतलाम भी शामिल था। रतलामी बाशिन्दे खुश थे कि अब रात भर व्यावसायिक प्रतिष्ठान खुले रखे जा सकेंगे। लेकिन सचाई इससे ठीक अलग है। सच्चाई ये है कि वर्दी वालों के निकम्मेपन और नाकारा रवैये के कारण रात ग्यारह बजे ही शहर में कर्फ्यू जैसा माहौल बना दिया जाता है।

बडे शहरों की व्यावसायिक गतिविधियों को चौबीसों घण्टो शुरु रखने की घोषणा से भी कई साल पहले से बडे शहरों के चुनिन्दा इलाकों में व्यावसायिक गतिविधियां पूरी रात चालू रहा करती थी। रतलाम शहर में ही रेलवे स्टेशन और बस स्टैण्ड के इलाकों में खान पान की दुकानें रात भर चालू रहा करती थी। यहां तक कि कई दुकानों में तो शटर ही नहीं थे,क्योंकि ये दुकानें रात भर चला करती थी। इसी तरह शहर के बाहरी इलाकों में चलने वाले ढाबे रात भर चालू रहा करते थे,जहां रात के किसी भी वक्त भोजन उपलब्ध हो जाता था । लेकिन अब हालात पूरी तरह बदल चुके है।

जिले भर में चोरी की वारदातें लगातार जारी है। वाहन चोरी के मामलों में तो जबर्दस्त इजाफा हुआ है। शहर भर में चप्पे चप्पे पर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए है। इसके बावजूद चोरों के हौंसले इतने बुलन्द है कि वे सीसीटीवी कैमरों के सामने अपने कारनामों को अंजाम दे देते है और बाद में लोग मीडीयावालों की मदद से इन सीसीटीवी फुटेज को देख कर दांतों तले उंगलिया दबाते है। अभी हाल ही में शहर के बाहरी इलाके में फोरलेन में मोटर साइकिल पर सवार एक दम्पत्ति के साथ मारपीट कर उन्हे लूट लिया गया था । अब तक उनका कोई सुराग वर्दी वालो को नहीं मिला है।

वर्दी वाले वैसे तो कई मामलों को जल्दी से सुलझा लेते है। कई बेहद पेचीदा और उलझे हुए मामलों की गुत्थियां सुलझाइ भी जा चुकी है। लेकिन चोरी चकारी और दूसरे अपराधों पर अंकुश लगा पाने में नाकाम वर्दी वालों ने अपनी नाकामी छुपाने का नया तरीका इजाद किया है। जैसे ही घडी रात के ग्यारह बजाती है,वर्दी वाले अपनी लाल नीली बत्तियां चमकाते हुए और सायरन बजाते हुए निकल पडते है।

लाल नीली बत्ती के साथ सायरन बजाते हुए इन वर्दी वालों का निशाना चोर उठाइगिरे नहीं होते बल्कि इनका निशाना होते है शहर के दुकानदार और दुकानों पर मौजूद नागरिक। इनमें भी खासतौर पर रेलवे स्टेशन और बस स्टैण्ड के इलाके में खान पान की दुकानें चलाने वाले दुकानदार। वर्दी वालों का वाहन जैसे ही निकलता है घबराए हुए दुकानदार अपनी अपनी दुकानें बन्द करने लगते है। होटलों में खाना खा रहे लोगों को बाहर निकाल दिया जाता है। चाय पी रहे लोगों को चाय के ग्लास छोडना पड जाते है।

ये सारी कवायद सिर्फ इसलिए,क्योंकि वर्दी वालें चोरों पर अंकुश लगाने में नाकाम है। रेलवे स्टेशन और बस स्टैण्ड पर रेल और बसों का आना जाना पूरी रात चलता है। ट्रेनों और बसों में सवार होकर आने वाले यात्री अगर आधी रात को अपनी भूख मिटाने के लिए भोजन करना चाहते है,तो रतलाम में वर्दी वालों ने इस पर भी रोक लगा दी है। इतना ही नहीं लम्बा सफर कर आधी रात के वक्त रतलाम पंहुचे किसी यात्री को चाय भी नसीब नहीं होती। ये अलग बात है कि शहर में चाय दूध आधी रात को भले ही ना मिले,शराब पूरी रात मिल सकती है। अस्पताल में भर्ती मरीज के परिजनों या मरीजों को आधी रात के वक्त दूध आदि की जरुरत पड जाए तो उन्हे भी निराश ही होना पडता है।

बहरहाल,सूबे के मुखिया ने जिन बडे शहरों में व्यावसायिक गतिविधियां चौबीसों घण्टे चालू रखने की बात कही है,उनमें से शायद कुछ शहरों में इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। लेकिन रतलाम इन शहरों में शामिल होने के बावजूद अब तक इस सुविधा से वंचित है। जब तक वर्दी वालों की नाकामी जारी रहेगी,शायद तब तक रात ग्यारह बजे से ही कफ्र्यू का माहौल भी बनता रहेगा।

शहर के कई इलाकों में आजकल सड़कें बन्द है। इन सड़कों पर आवागमन लम्बे वक्त से बन्द है। कोई नहीं जानता कि इन सड़कों का उद्धार कब होगा? विकास हो रहा है। सड़कों का चौडीकरण किया जा रहा है। जब तक सड़क का काम पूरा नहीं होगा उस पर आवागमन नहीं किया जा सकता। ये सबकुछ ठीक है। लेकिन सड़क बनाने में लगने वाले समय की भी तो सीमा होना चाहिए। लेकिन लगता है कि विकास के इन कामों को कराने वाली एजेंिसयों के अफसरों को इससे कोई सरोकार ही नहीं है।

शहर के जवाहर नगर की मुख्य सड़क को खुदे हुए कई महीने गुजर चुके है। इसी सड़क पर फूल छाप पार्टी के एक बडे नेताजी का आवास भी है। इसके बावजूद सड़क की खुदाई के कई महीने गुजर जाने के बावजूद इसका काम आगे ही नहीं बढ पाया है। इसी तरह हाथीखाना से मोची पुरा जाने वाली सड़क भी कई महीनों से बन्द पडी है। काम कब पूरा होगा कोई नहीं जानता।

हर सरकारी निर्माण कार्य के ठेके में काम पूरा करने की समयावधि निश्चित होती है। ठेकेदार को निश्चित समयावधि में काम पूरा करना होता है। ठेकेदार की गतिविधियों पर नजर रखने का काम अफसरों का होता है। ठेके में यह शर्त भी होती है कि जिस सडक को बन्द किया जाएगा,वहां ठेकेदार एक सूचना पïट्ट लगाकर ये स्पष्ट रुप से लिखेगा कि सड़क पर आवागमन कब से शुरु होगा और सड़क को कितने दिनों के लिए बन्द किया जा रहा है। लेकिन आज तक ऐसा सूचना पïट्ट किसी निर्माण कार्य पर लगा हुआ नजर नहीं आया है।

ठेकेदारों और अफसरों की मिली भगत का नतीजा है कि सड़कें बन्द है और लोग परेशान। फूल छाप पार्टी के नेता भी आंखे मून्दे बैठे है। भगवान जाने शहर का क्या होगा?

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