Raag Ratlami Politics : सियासती अखाडे में उतरने की तैयारियों में जुटे है टिकट के दावेदार,फूल छाप में नहीं लेकिन पंजा पार्टी में है दावेदारों की भरमार
-तुषार कोठारी
रतलाम। सूबे की सरकार के चुनाव अब काफी नजदीक आ चुके है। दो तीन महीने का वक्त बचा है और तमाम नेता इस आखरी वक्त में अपनी तैयारियों को धार देने में जुटे है,ताकि सियासती अखाडे में उतरने के लिए पार्टियों का टिकट उन्हे मिल जाए। पंजा पार्टी और फूल छाप दोनो में ही अलग अलग इलाकों की अलग अलग तस्वीरें है। किसी इलाके में फूल छाप वाले दावेदारों में जबर्दस्त खींचतान है तो किसी इलाके में पंजा पार्टी के नेताओं में तकरार है।
सबसे ज्यादा दिलचस्प तस्वीर रतलाम सिटी की है। रतलाम शहर के चुनावी अखाडे में उतरने के लिए पंजा पार्टी में दावेदारों की तादाद फूल छाप के दावेदारों से बहुत ज्यादा है। वैसे तो रतलामी बाशिन्दों का मानना है कि रतलाम शहर फूल छाप का गढ है और भैया जी का दावा अपने आप में मजबूत है। यही वजह है कि फूल छाप में दावेदारों की तादाद ना के बराबर है। हांलांकि पिछले वाले प्रथम नागरिक,पहले वाले बैैंक के अध्यक्ष जैसे कुछ नेता है,जो बराबर दावेदारी का दम भर रहे है। लेकिन ज्यादातर लोगों का अंदाजा है कि इन नेताओं की दावेदारी दम नहीं भर पाएगी।
दूसरी तरफ पंजा पार्टी के लिए जीतने के मौके बेहद कम माने जाते है। इसके बावजूद दावेदारों की कमी नहीं है। पंजा पार्टी के नेता अपनी दावेदारी के लिए कोई कोर कसर छोडने को राजी नहीं है। जिले की पंचायत सम्हाल चुके नेताजी सावन सोमवार को शिव भक्ति करवा रहे है। वे हर सोमवार कई सारे शिव भक्तों को महाकाल लोक के दर्शन करवा रहे है। जिस दावेदार को सबसे दमदार दावेदार माना जा रहा है,वो अभी अदालती आदेश के चक्कर में फंसे हुए है। पंजा पार्टी के बडे नेता लगातार कोशिशों में लगे है कि पंजा पार्टी के इस युवा पहलवान को अदालती फन्दे से निकलवा लें,ताकि उनके चुनाव लडने में कोई दिक्कत ना आए। पंजा पार्टी के पहलवान पिछले चुनाव में जबर्दस्त दम दिखा चुके है और इसी वजह से उन्हे सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है। अदालती आदेश से विधायकी गंवा चुके दादा भी इसी कतार में है। लेकिन लोग उन्हे आजकल गंभीरता से नहीं लेते। इन दिनों पंजा पार्टी की जिम्मेदारी सम्हाल रहे भैया भी खुद को दावेदार बता रहे है,लेकिन पंजा पार्टी ने उनके साथ दो दो कार्यवाहक मुखिया लगाकर उनके पर कतरने के संकेत दे दिए है। ऐसे में उनकी दावेदारी भी कमजोर मानी जा रही है।
बहरहाल पंजा पार्टी में दावेदारों की तादाद फूल छाप के दावेदारों से कहीं ज्यादा है। सबसे दिलचस्प जंग नवाबी नगरी जावरा में दिखाई दे रही है। जावरा में फूल छाप और पंजा पार्टी दोनो में ही मजेदार दृश्य देखने को मिल रहे है। पंजा पार्टी में जितने भी दावेदार है,वो सारे के सारे बाहर से जावरा पंहुचे है। एक दरबार आलोट से पंहुचे है,तो दूसरे किसान रतलाम से वहां पंहुचकर दण्ड पैल रहे है। एक और तीसरे नेता नामली से जावरा के अखाडे में उतरने के तमन्नाई है। श्रीमंत के पंजा पार्टी छोडकर फूल छाप में चले जाने का जबर्दस्त असर जावरा की फूल छाप और पंजा पार्टी दोनो पर नजर आ रहा है। पंजा पार्टी में जावरा के दावेदार कम हो गए है,इसलिए वहां बाहर के नेता जोर आजमाईश कर रहे है।
दूसरी तरफ फूल छाप में पहले ही दावेदारों की भरमार थी,लेकिन श्रीमंत के फूल छाप में आने के बाद उनके समर्थकों की संख्या भी इन दावेदारों में जुड गई है। कुल मिलाकर जिले की इन दो सीटों के अलावा बाकी की तीन सीटों के किस्से भी कमाल के है। देहात वाली सीट पर अभी फूल छाप वाले माडसाब का कब्जा है। माडसाब से माननीय बने इन नेताजी के कार्यकाल को देखकर फूल छाप वालों को सीट गंवाने का खतरा महसूस हो रहा है। फूलछाप के लोग मानते है कि फूल छाप ने अगर बदलाव ना किया तो मामला कठिन हो सकता है। उधर आलोट में भी कुछ कुछ ऐसा ही मसला है। पंजा पार्टी वाले माननीय को अब लोग पसन्द नहीं कर रहे लेकिन फूल छाप के जरिये महामहिम बन चुके नेताजी का दबाव अगर फूल छाप ने मान लिया तो ये सीट भी खतरे में ही है।
आदिवासी अंचल की सीट पर भी पंजा पार्टी के भैया का कब्जा है। यहां पंजा पार्टी में दावेदारों की संख्या बेहद कम है,लेकिन फूल छाप के दावेदारों में तगडी खींचतान है। कुल मिलाकर जिले की पांच सीटों के सियासी नजारे आने वाले दिनों में और भी मजेदार होते जाएंगे। चुनाव आने तक अभी कई सारे उतार चढाव आएंगे। नजर बनाए रखिए,अंदाजे लगाते रहे।
वर्दी वाले आए फार्म में….
शहर के लोगों ने नशे के सौदागरों के खिलाफ कडी कार्रवाई की मांग को लेकर मौन जुलूस निकाला और बस वर्दीवाले अब फार्म में आ चुके है। पूरे जिले में लगाजार नशे के सौदागरों की धरपकड हो रही है। जिस हिसाब से धर पकड हो रही है,उसे देखकर पता चलता है कि नशे का कारोबार कितना फल फूल रहा था। अगर जुलूस ना निकलता और वर्दी वाले फार्म में ना आते तो नशे का कारोबार हर किसी को अपनी चपेट मे लेकर निगर जाता। अब कोई दिन ऐसा नहीं गुजर रहा है,जब वर्दी वाले किसी ना किसी नशा कारोबारी को दबोच ना रहे हो। लोग अब यही चाहते है कि वर्दी वाले इस तरह फार्म में बने रहे ताकि गुनाहगार दबे रहे।