November 24, 2024

चुनाव के पहले कठिन दौर है भाजपा और कांग्रेस का

-चंद्र मोहन भगत

विधानसभा चुनाव के लिए प्रदेश में काम करने व जनसाख बनाने के लिए छह महीने का समय ही बचा है। समय तो दोनों दलों कांग्रेस और भाजपा के लिए बराबर ही है अंतर इतना है कि कांग्रेस को जनमत की सरकार के प्रति बढ़ी हुई नाराजगी को भुनाने के लिए अपने दल के बेहतर जनसाख वाले कार्यकर्ता को प्रत्याशी बनाना पड़ेगा । भाजपा का बहुत अधिक कठिनाई का दौर है शिवराज सरकार ने खुद ही की घोषणाओं पर अमल न कराने या देर से कराने और पेचदगी भरी लुभावनी योजनाओं से जनमत को नाराज कर दिया है। इस कारण भाजपा संगठन भी हैरान परेशान नजर आ रहा है।

यही कारण है कि प्रदेश के संगठन प्रभारी अजय जामवाल को पहले जिलेवार बैठक कर कार्यकर्ताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ा था। फिर डैमेज कंट्रोलरों को जिलों में दौड़ाया और हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष कार्यकर्ताओं से मिलकर समन्वय बैठक कर ठंडे छींटे डाल रहे हैं । क्षेत्रीय विधायकों की जनसाख भी सरकार के कारण घटी और इसे फिर से पाने के लिए भाजपा सरकार के प्रति नाराजगी के चलते रिपेयर करना मुश्किल नजर आ रहा है। संभव है कि बहुत से विधायक अपने अपने क्षेत्र के नाराज जनमत को अपने पक्ष में समेट लें पर शत-प्रतिशत ऐसा होना संभव नहीं लगता है । फिर भाजपा संगठन और शिवराज सरकार के प्रयासों पर दक्षिण राज्य के चुनाव के नतीजों का असर पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता है । अगर दक्षिण के कर्नाटक राज्य मेंकांग्रेस बढ़त हासिल करती है तो प्रदेश की भाजपा सरकार और संगठन की मुश्किलें और अधिक विकराल हो जाएगी। और तब शायद भाजपा संगठन को समझ आए कि शिवराज चौहान के मुख्यमंत्री बनाए रखने का नुकसान होगा या फायदा !

स्थिति स्पष्ट होने के बाद भी प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने रहे तो भाजपा का नुकसान होना निश्चित हो जाएगा। क्योंकि प्रदेश के सभी गरीब तो क्या एक सौ परिवार को भी राजस्व विभाग से किसी भी तरह का ना तो पट्टा मिला है ना भवन जबकि शिवराज का दावा था कि प्रदेश में एक भी परिवार ऐसा नहीं रहेगा जिसकी अपनी छत अपनी जमीन ना हो ! शेखचिल्ली की तरह ढींगे हांक कर कब तक जनता को मूर्ख बनाया जा सकता है । रही बात कांग्रेस की तो कांग्रेस को सिर्फ जनमत की नाराजगी को भुनाना है कांग्रेसी समर्थकों में दावा तो अभी से किया जाने लगा है कि इस बार सरकार से नाराज जनता कांग्रेस की सरकार बनाएगी । यह भविष्य के गर्भ में है हो भी सकता है पर वर्तमान जनमत इतना नासमझ भी नहीं है कि कांग्रेस के किसी भी प्रत्याशी को जितवा दे ।

यह सही है कि राजनीतिक वातावरण कांग्रेस के पक्ष में बनता जा रहा है । साथ में यह भी उतना ही सच है कि कांग्रेस में अनुशासन की कमी के कारण प्रत्याशी चयन में जन स्वीकार्यता से अधिक क्षत्रप नेताओं का पट्ठा वाद चलन में है । इसका ताजा उदाहरण प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के सबसे करीबी विपक्ष में आने के बाद प्रदेश के क्षत्रप नेता कहलाने वाले सज्जन वर्मा ने हाटपिपलिया से राजवीर बघेल को भावी प्रत्याशी घोषित कर कांग्रेसी समर्थकों से उनकी मदद करने की अपील भी कर दी है । अगर ऐसे ही बंदरबांट कांग्रेस के प्रत्याशी चयन में चली तो छत्रप नेता जीतने से पहले ही हार निश्चित करा देंगे ।

कांग्रेस में इस पर आपस में विवाद भी सड़क पर आ गया है सज्जन वर्मा के फार्मूला हाजिर में ‘हुज्जत क्या गैर की जरूरत क्या, का खुलकर प्रतिस्पर्धी नेताओं ने विरोध किया कमलनाथ तक शिकायत भी पहुंचा दी है । कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पहले ऐसे नेता है जो अपने दम पर कांग्रेस संगठन की दिशा बदल रहे हैं ।अधिसंख्य जनमानस पर भी हनुमान चालीसा और कार्यालय में गणेश स्थापना कर पकड़ बना चुके हैं । इन्हीं कारणों से कांग्रेस को बढ़त मिलने की उम्मीद है । बस नियंत्रण रखना है अपने बड़ बोले अपने समर्थक विधायकों पर जो बाले बाले अभी से कांग्रेस का प्रत्याशी तय करने लगे है जन स्वीकार्यता जाने बगैर ।

ऐसा चलता रहा तो बाजीगर कहलाएंगे जीतकर हारने वाला और लुटिया डूबाएंगे कांग्रेश की । इसके अलावा जहां-जहां जिला अध्यक्ष ब्लॉक अध्यक्ष और कार्यवाहक अध्यक्ष के नामों के चयन में कार्यकर्ताओं की असहमति रही या आम स्वीकार्यता नहीं आई होगी उन जिलों में भी कांग्रेस को अपनी सीट निकालने के लिए प्रत्याशी की घोषणा से पहले अपने ही लोगों को मनाना पड़ेगा । यह सब तभी संभव होगा जब कांग्रेस अध्यक्ष सभी को अनुशासन में बांधे रखेंगे ।

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