Indian Constitution : संविधान के निर्माण में पाकिस्तानियों ने भी निभाया था रोल,संविधान से असंतुष्ट थे डा.आंबेडकर; व्याख्यानमाला के द्वितीय सत्र में बोले संविधान विशेषज्ञ डा. डीके दुबे
रतलाम,24 जनवरी (इ खबरटुडे)। संविधान निर्माता डा. आम्बेडकर,संविधान के निर्माण के बाद,संविधान से पूरी तरह असंतुष्ट थे और उन्होने कहा था कि मेरी इच्छा है कि इस संविधान को जला दिया जाए। संविधान बनाने के लिए गठित संविधान सभा में कम से कम तीस ऐसे लोग मौजूद थे जो पाकिस्तानी थे,और पाकिस्तान के निर्माण के बाद वे सब पाकिस्तान चले गए थे। लेकिन इन लोगों ने संविधान निर्माण में अपना रोल बखूबी निभाया था,यही कारण है कि देश में यूनिफार्म सिविल कोड लागू नहीं हो सका।
भारत संविधान के बारे में ये चौंकाने वाली जानकारियां संविधान विशेषज्ञ विधि वेत्ता डा.डीके दुबे ने स्वामी विवेकानन्द व्याख्यानमाला के द्वितीय सत्र को सम्बोधित करते हुए दी। स्वामी विवेकानन्द व्याख्यानमाला का आयोजन स्थानीय लायंस सभागृह में किया गया था। समारोह में उद्योगपति प्रमोद व्यास मुख्यअतिथि के रुप में उपस्थित थे।
भारतीय संविधान के निर्माण की प्रक्रिया की जानकारी देते हुए डा. दुबे ने बताया कि संविधान सभा का गठन पाकिस्तान के बंटवारे से पहले हो गया था। तब इसमें कुल 379 सदस्य थे। संविधान निर्माण के लिए चौदह अलग अलग समितियां बनाई गई थी। संविधान सभा के गठन के सात महीने बाद ड्राफ्ट कमेटी बनाई गई थी,जिसमें डा.भीमराव आम्बेडकर को शामिल किया गया था और उन्हे ड्राफ्ट कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था।
डा. दुबे ने कहा कि पाकिस्तान के बंडवारे के बाद संविधान सभा में 90 सदस्य कम कर दिए गए थे और संविधान सभा के सदस्यों की संख्या घटकर 289 रह गई थी। लेकिन इनमें तीस सदस्य ऐसे थे,जो भारत का बंटवारा कराने वाली मुस्लिम लीग के सदस्य थे। संविधान सभा की समस्त कार्यवाहियों को देखते है तो पता चलता है कि जितने भी विषयों पर विवाद खडे किए गए,उनमें इन्ही मुस्लिम लीग के सदस्यों की भूमिका थी।
डा. दुबे ने बताया कि डा.आम्बेडकर चाहते थे कि संविधान के निर्माण के साथ ही भारत में यूनिफाईड सिविल कोड लागू कर दिया जाए,लेकिन मुस्लिम लीग के सदस्यों के विवाद के चलते यह संभव नहीं हो पाया। संविधान का अनुच्छेद 44 इसी के लिए था,लेकिन मुस्लिम लीग के विरोध के चलते यह पूरी तरह लागू नहीं किया जा सका और इसे डायरेक्टिव प्रिन्सिपल्स में शामिल करना पडा।
डा. दुबे ने अल्पसंख्यकों के विशेषाधिकारों के सम्बन्ध में बनाए गए अनुच्छेद 29 और 30 की जानकारी देते हुए बताया कि संविधान निर्माता डा. आम्बेडकर की दृष्टि में अल्पसंख्यक भाषाई और क्षेत्रीय आधार पर परिभषित किए जाने थे,लेकिन मुस्लिम संप्रदायवादियों के दबाव में धर्मको अल्पसंख्यक निर्धारित करने का आधार बनाया गया और इसी वजह से अनुच्छेद 29 व 30 बनाए गए।
संविधान निर्माण की प्रक्रिया में हुई गडबडियों के असर पर प्रकाश डालते हुए उन्होने कहा कि इन्ही बातों का असर था कि भारत का पहला शिक्षामंत्री ऐसा व्यक्ति बनाया गया जिसने शिक्षा ही प्राप्त नहीं की थी,जो मदरसे में पढा था और मौलाना था। उन्होने कहा कि भारत के पहले शिक्षामंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद तो भारत के नागरिक भी नहीं थे,वे अरब में पैदा हुए थे,लेकिन वे भारत के शिक्षामंत्री बना दिए गए थे।
संविधान निर्माण की प्रक्रिया में ऐतिहासिक सन्दर्भ देते हुए डा. दुबे ने कहा कि प्राचीन भारत में कोर्ट कचहरी इत्यादि की आïवश्यकता ही नहीं पडती थी। कोई एकाध विवाद उत्पन्न होता था,तो उनका निराकरण राजा द्वारा कर दिया जाता था। इसके कारण स्पष्ट करते हुए डा.दुबे ने कहा कि हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों देश को एक रखने का आधार मूल्य आधारित शिक्षा को बनाया था। उन्होने कहा कि भारत ही विश्ïव की सर्वाधिक विभिन्नताओं वाला देश है,जहां ढेरों भाषाएं अलग अलग रीति रिवाज और खानपान है। इसके बावजूद भारत एक रहता है तो इसके पीछे हमारे वेदों की वो शिक्षाएं है जिसमें भारत को माता माना गया है। चूंकि सबकी माता एक है इसलिए विविधताओं के बावजूद सभी में बंधुत्व की भावना विद्यमान रहती है और इसी से देश एक रहता है।
अपनी बात को स्पष्ट करते हुए डा. दुबे ने कहा कि हमारी मूल्य आधारित शिक्षा को अंग्र्रेजों ने नष्ट कर दिया। हमारी शिक्षा जीवन मूल्य सिखाती थी,उसके स्थान पर अंग्र्रेजी शिक्षा व्यवस्था स्किल डेवलपमेन्ट की है। मूल्यों के बिना शिक्षा पाने वाला व्यक्ति रोजगार तो पा सकता है,लेकिन व्यक्ति का समाज से,देश से,पशु पक्षी और प्रकृति से क्या सम्बन्ध है और क्या दृष्टि होना चाहिए,वह नहीं सीख पाता। यहा कारण है कि आज सबकुछ गडबड हो रहा है। डा.दुबे ने कहा कि यदि हम शिक्षा व्यवस्था सुधार लेंगे,तो संविधान भी ठीक से लागू हो सकेगा।
अपने विद्वत्तापूर्ण सम्बोधन में डा. दुबे ने स्पष्ट किया कि सही दृष्टि के अभाव में किसी देश को संविधान जोड कर नहीं रख सकता। संविधान को सही से लागू करने के लिए यह आवश्यक है कि समाज की दृष्टि ठीक रहे। तभी जाकर संविधान उपयोगी हो सकता है।
समारोह का शुभारंभ सरस्वती वन्दना से हुआ। व्याख्यानमाला आयोजन समिति के सचिव डा. हितेष पाठक ने अतिथि परिचय प्रस्तुत किया। व्याख्यानमाला में बडी संख्या में गणमान्यजन,बुद्धिजीवी,अभिभाषक गण मौजूद थे। आभार प्रदर्शन आयोजन समिति के अध्यक्ष विम्पि छाबडाने किया।