Raag Ratlami Politics : फूल छाप के मुखिया वाली कुर्सी हथियाने की जद्दोजहद में जुटे है तमाम नेता / नीमबेहोशी की हालत में जा चुकी है पंजा पार्टी/साल के आखरी वक्त ने बचा लिया जमीनखोरो को
-तुषार कोठारी
रतलाम। फूल छाप पार्टी की सियासत इन दिनों काफी गर्म है। मुद्दा फिलहाल एक ही है। फूल छाप में जिले के नए मुखिया की तलाश हो रही है। फूल छाप के कई सारे नेता खुद को जिले का मुखिया बनाए जाने के लायक मानते है और इसी जद्दोजहद में लगे है कि कैसे इस कुर्सी को हथियाया जाए।
ये फूल छाप पार्टी की खासियत है कि बाहर से कुछ नजर नहीं आता,लेकिन जैसे ही भीतर नजर जाती है,सबकुछ उल्टा पुल्टा नजर आने लगता है। बाहर से देखिए,तो सारे के सारे बिलकुल अनुशासित और पद की दौड से दूर नजर आएंगे,लेकिन भीतर ही भीतर सारे दावेदार पूरी ताकत झोंक रहे है। जैसा कि पिछली बार बताया था,ताकत झोंकने के लिए ये नेता पास दूर कुछ नहीं देख रहे। भांजे के नाम से मशहूर नेताजी ने तो नागपुर तक गुहार लगाने की तैयारी कर ली। उन्हे लगा कि शायद काली टोपी वालों के हेडक्वार्टर में उनका दांव लग जाए और सीधे हेडक्वार्टर से उनके लिए फोन आ जाए,तो सारा मसला ही निपट जाएगा।
बाकी के दावेदार भोपाल तक की दौड लगाए जा रहे है। एक दो नहीं कई कई चक्कर अपने आकाओं के लगा चुके है। एक और दावेदार है,जो इन्दौरी आका के चेेले है। वे भोपाल तो नहीं,इन्दौर के चक्कर पे चक्कर लगाए जा रहे है। वैसे ये नेताजी निगम चुनाव में प्रथम नागरिक बनने की दौड में थे। इसके लिए भी वो अपने इन्दौरी आका के भरोसे थे। लेकिन इन्दौरी आका का दांव काम नहीं आया,और नेताजी निगम की पहली कुर्सी को कब्जा करते करते रह गए। बस तभी से वो नाराज होकर नदारद हो गए है। फूल छाप वालों के किसी आयोजन में आजकल वो नजर नहीं आते। उनको जानने वालों का कहना है कि वो जोर का झटका धीरे से देने के चक्कर में है और उनकी मुराद ये है कि सीधे मुखिया की कुर्सी पर कब्जा करने के बाद ही नजर आएं। इसीलिए वो गुपचुप तरीके से मुखिया की कुर्सी पर कब्जा जमाने की जमावट में जुटे है।
कुछ और भी दावेदार है। हांलाकि ये सारे दावेदार तो यहीं शहर और आसपास के है। मामला जिले के मुखिया का है,इसलिए दावेदार जिले भर में फैले हुए है। कुछ को अपने इलाके के माननीयों की जमावट का भरोसा है,तो कुछ उपर वालों के भरोसे है। फूलछाप पार्टी के पास इस वक्त जिले के कुल पांच माननीयों में से तीन ही है। दो माननीय पंजा पार्टी के है।
जिले के इन तीन फूलछाप वाले माननीयों में से एक देहात वाले माननीय को तो कोई कहीं गिनता नहीं,मगर बाकी के दो इस पूरे खेल पर न सिर्फ नजर बनाए हुए है,बल्कि उनकी पूरी दखलअंदाजी भी इस मामले में है। दोनो माननीय चाहते है कि जिले का मुखिया उनकी जी हुजुरी वाला हो,ताकि पूरी फूल छाप इनके इशारों पर चल सके।
कुल मिलाकर ममला बेहद पेचीदा है। लेकिन फूल छाप की भीतर तक जानकारी रखने वालों का कहना है कि जल्दी ही कोई फैसला हो जाएगा। चुनाव नजदीक है और फूल छाप के कर्ता धर्ता चाहते है कि फूलछाप की कमान किसी व्यवस्थित नेता के हाथों में होगी तो चुनावी चुनौतियों का सामना करने में आसानी होगी।
बेहोशी के आलम में है पंजा पार्टी
सियासत के मैदान में जहां एक ओर फूल छाप में जमकर खींचातानी मची हुई है,दूसरी तरफ पंजा पार्टी की जैसे कोई खबर ही नहीं है। पंजा पार्टी जैसे बेहोशी के आलम मे है। पंजे से चुनाव जीते आलोट वाले माननीय को सरकार ने ना सिर्फ लुटेरा घोषित किया,बल्कि बाद में तो यूरिया का डकैत भी बना दिया। ये इतना बडा मसला हो सकता था कि पंजा पार्टी ना सिर्फ सूबे को बल्कि पूरे मुल्क को हिला सकती थी,लेकिन पंजा पार्टी की बेहोशी का आलम देखिए माननीय फरारी में है और पंजा पार्टी में कहीं कोई हलचल नहीं है। शुरुआती दौर में पंजा पार्टी के चार पांच माननीयों ने यहां आकर छोटी मोटी नौटंकी जरुर दिखाई थी,लेकिन उसके बाद कोई इस मसले को याद तक नहीं कर रहा है। माननीय फरारी काट रहे है और माननीय के साथ इस जंजाल में उलझे काले कोट वाले नेताजी बेचारे सलाखों के पीछे है। अदलिया में अर्जी का कोई असर नहीं हुआ। अदलिया ने उनकी जमानत की अर्जी ही खारिज कर डाली।
पंजा पार्टी नीम बेहोशी के आलम में पंहुची हुई है। कुछ लोगों को हल्की सी उम्मीद जगी थी कि शायद पंजा पार्टी के युवराज की पदयात्रा से इस हालत में कोई फर्क पड जाएगा। लेकिन वे बेचारे कहां जानते थे कि युवराज की पदयात्रा युवराज का खुद का उद्धार नहीं कर पा रही है,तो सौ किमी दूर उज्जैन से गुजरती पदयात्रा रतलाम तक कैसे असर डाल पाती। पंजा पार्टी के रतलामी नेता युवराज की यात्रा में भीड बढाने गए भी थे,लेकिन इस मशक्कत का कोई असर पंजा पार्टी की बेहोशी पर नहीं पडा। सियासत पर नजर रखने वालों को अब तो ये डर सताने लगा है कि कहीं ऐसा ना हो जाए कि चुनाव में पंजा पार्टी को कोई झँडाबरदार ही ना मिले और फूल छाप वालो को वाक ओवर मिल जाए। पंजा पार्टी के दिग्गजों को अब जाग जाना चाहिए। वरना सचमुच ऐसी नौबत भी आ सकती है।
साल के आखरी वक्त ने बचा लिया जमीनखोरो को
शहर में दर्जनों अवैध कालोनियां काट कर बडे आदमी बन चुके जमीनखोरो को उलझाने की तैयारियां लम्बे वक्त से चल रही थी और अब सिर्फ उनके खिलाफ वर्दी वालों की कार्यवाही की तैयारी थी,लेकिन पहले तो निगम के नाकारापन की वजह से मामले टलते गए। जिला इंतजामिया के बडे साहब ने निगम वालों को जमकर टाइट कर रखा था। इसी वजह से निगम वाले जमीनखोरो के खिलाफ एफआईआर करने के लिए रोते गाते तैयार होने लगे थे,लेकिन जमीनखोरो को साल का आखरी वक्त आ जाने से कुछ राहत मिल गई। वर्दी वालों को साल के आंकडों की बडी फिकर रहती है। आंकडे ही उपर तक जाते है और इसी के लिहाज से वर्दी वालों की सफलता असफलता तय होती है। वर्दी वालों ने हिसाब लगाया कि अगर साल के आखरी वक्त में रिपोर्टे दर्ज होंगी तो रेकार्ड में पेंडिंग केसों की तादाद ज्यादा नजर आने लगेगी। इसी के चलते वर्दी वालों ने निगम वालों को नए साल में कर्रवाई करने की सलाह दे दी। सारे जमीनखोरो को न्यू इयर की मस्ती करने का मौका मिल गया। अब जब ये साल गुजरेगा,तब कहीं जाकर जमीनखोरो के खिलाफ कार्रवाई आगे बढ पाएगी।