अब सहना होगा गर्म तापमान……
-चंद्र मोहन भगत
बीते समय का लॉकडाउन और वर्तमान समय का कोरोनासे बचाव दोनों में ही बहुत अंतर है। पिछली बार दुनिया भर के नागरिक कोरोना का नाम सुनकर कुछ समझते इसके पहले इसके नतीजों ने हीं इतना डरा दिया था कि सरकार का पूर्ण लॉक डाउन भी सर आंखों पर रखा गया था । बीमारी फैलने से बची, लोग संक्रमित होने से बचे ,और भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में कोरमा का इतना ज्यादा असर नहीं हुआ जितना अमेरिका ब्राजील फ्रांस इटली में हुआ था । इसके बिल्कुल विपरीत प्राकृतिक पर्यावरण में जो सुधार हुआ था लॉक डाउन की वजह से नतीजों में उभर कर आए थे सभी चौंकाने वाले थे । ऐसे नतीजे तमाम कोशिशों के बाद भी किसी भी सरकार के लिए बगैर लॉकडाउन के असंभव थे ।
गंगा जमुना सरस्वती गोदावरी जैसी नदियां देशभर के समुद्री पर्यटक के किनारे साफ पानी के साथ कचरा प्रदूषण से मुक्त नजर आने लगे थे । गलियों सड़कों हाइवे से लेकर रेल पटरियों पर रेल आवागमन तथा हवाई जहाजों की आवाजाही बंद होने से ही पर्यावरनिय हवा में तापमान की बढ़ोतरी नहीं हो पाई थी । इसी के साथ देश भर की स्ट्रीट फूड बड़ी होटलों के व्यवसायबंद होने से इनकी भट्टियों के बंद रहने के कारण भी वातावरण में गर्मी का इजाफा नहीं हो पाया था। मार्च से जून तक के गर्मी के मौसम में भी तापमान आम लोगों के लिए परेशानी का कारण नहीं बन सका था।
मालवा निमाड़ राजस्थान जैसे इलाकों में भी लू चलने की बात तक नहीं हुई थी। कुल मिलाकर इन दिनों मैं प्राकृतिक वातावरण में तापमान तो बढ़ता ही था साथ में दुनियाई उपयोग के लिए मशीनों का उपयोग इसमें और अधिक इजाफा कर असहनीय बना देता था । दुनिया भर के प्राकृतिक वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि पर्यावरण को नहीं सहेजा तो प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ेगा। उत्तराखंड में ठंड के समय बर्फ का कटाव तबाही मचा ही चुका है हवा में आद्रता का लगातार घटना बरसात में कमी और पृथ्वी का तापमान भी लगातार बढ़ता जानाभविष्य के गंभीर खतरों के स्पष्ट संकेत देते नजर आ रहे हैं।
अगर दुनिया भर की सरकारें इस मामले में सपष्ट और सख्त नहीं होगी तो मानव को भविष्य में प्राकृतिक हमलों से कोई भी ताकत बचा नहीं पाएगी। इसकी शुरुआत भी नजर आने लगी है दिसंबर माह का अंत हो रहा है और ठंड का मौसम सामान्य सा चल रहा है । जाहिर है ग्लोबल वार्मिंग की चेतावनी का असर हमें भुगतना पड़ रहा है । ठंडे मौसम में इतना बदलाव है तो गर्मी के मौसम का अंतर तो आम आदमी को हलाकान कर देगा ,दिहाडी मजदूरों की हालत का अंदाज लगाने से ही शरीर में सिहरन पैदा हो जाती है तब उन्नत मानव जगत को एहसास होगा प्रकृति से छेड़छाड़ करना उनकी ही भविष्य की पीढ़ी के लिए कितना भयंकर होता जा रहा है ।