जीवन में गति के साथ संतुलन होना बहुत आवश्यक है- प्रेम आनंद मिश्रा
उज्जैन,19 नवंबर (इ खबरटुडे/ब्रजेश परमार)। जीवन में सब कुछ गतिमान है। यह हाई स्पीड संस्कृति का दौर है। विकास के लिए गति बहुत आवश्यक है, किंतु यदि संतुलन नहीं है तो यह गति विकास नहीं ला सकती। भोजन मंत्रों के साथ आराम से सुपाच्य भोजन ग्रहण करने की बजाए अब फास्ट फूड लेना अधिक पसंद किया जा रहा है। यह हमारे शरीर और मन दोनों को विकृत कर रहा है।
पद्मभूषण डॉ शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ स्मृति अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यानमाला के छठवें दिवस ‘गांधी विचार एवं समकालीन जीवन शैली’ विषय पर उक्त विचार गांधी अध्ययन केंद्र गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद के अध्यक्ष प्रो. प्रेम आनंद मिश्रा ने प्रमुख वक्ता के रूप में व्यक्त किए । उन्होंने कहा कि गति की अंधी दौड़ ऐसी है कि हम गांव को भूलते जा रहे हैं और शहर की चकाचौंध हमें अच्छी लग रही है। गति इतनी प्रबल है की पुस्तकें पढ़ने की आदत अब जाती रही और सोशल मीडिया पर समय देना ज्यादा अच्छा लग रहा है। गांधीजी ने बताया है कि गति के साथ ही धीमेपन का अपना एक अलग ही महत्व है। धीमेपन का भी एक सौंदर्य होता है जो हमारे जीवन का दर्शन होना चाहिए।
श्री मिश्रा ने कहा आज का समाज शरीर केंद्रित समाज बन चुका है। हर कोई अपने आंतरिक व्यक्तित्व को दरकिनार करके बाह्य व्यक्तित्व को निखारने में लगा है। शरीर मानो एक प्रदर्शन की वस्तु बन गया है। हर कोई मोबाइल पर अपनी सेल्फी या अन्य हाव-भाव पहुंचाने में लगा है। शरीर को तो मानो भोजन और वस्त्रों की प्रयोगशाला बनाकर रखा हुआ है। यह सभी प्रयोग हमें अपनी संस्कृति से दूर कर रहे हैं। गांधी जी ने प्रथम स्थान आत्मा को दिया था और दूसरा स्थान शरीर को किंतु आज समाज के केंद्र में शरीर प्रमुखता से हैं।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ मोहन गुप्त ने कहा कि बौद्धिकता के अतिरेक के कारण शरीर श्रम को लोग भूलते जा रहे थे, जिसे गांधी ने फिर से पुनर्जीवित किया और उसका महत्व बताया। माना कि स्वाद को महत्व देना भी एक परंपरा है किंतु व्यक्ति को सिर्फ खाने के लिए नहीं जीते हुए जीने के लिए खाना चाहिए। गांधी की नैतिक ताकत ही उन्हें निर्भय बनाती है। स्पर्धा के दौर में युवा पीढ़ी को यह बताना आवश्यक है कि पराजय होने पर उसे स्वीकार और सहन करते आना चाहिए। गांधी ने अतिऔद्योगिकरण को विनाश का कारण बताया था। गांधीजी नैतिकता और सत्य के दीपस्तंभ है। विडंबना यह है कि नैतिकता का सबसे ज्यादा क्षय आज हो रहा है। गांधी की नैतिकता का प्रचार- प्रसार आज युवा पीढ़ी में होना बहुत आवश्यक है।