देश की ऐतिहासिक घटनाओं पर बहस , राजनेता सही या इतिहासकार ….!
-चन्द्रमोहन भगत
विश्व भर के सभी राष्ट्रों का अपना इतिहास है और सही भी होगा । सवाल तब उठते हैं जब उनके वर्तमान शासक और रचनाकार अपने भूतकाल की उपलब्धियों को बड़ा चढ़ा कर और अनुपलब्धियों को कमतर बताकर अपनी ही वर्तमान युवा पीढ़ी को गलत शिक्षा देकर भ्रमित करते हैं । अधिकांश राष्ट्रों ने अपने इतिहास को बगैर किसी छेड़छाड़ के वर्तमान पीढ़ी को पढ़ाया और मजबूत राष्ट्रवादी भी बनाया है । जबकि भारत मे आजादी के बाद कि शिक्षा प्रणाली ने स्वतंत्र भारत के नवयुवाओं में विकृत इतिहास और संस्कृति को परोसा है ।
नतीजा आजादी के पहले जैसा राष्ट्रवाद का जज्बा आजाद भारत के युवाओं में देखने को नही मिल रहा है ।बल्कि इनमें अब राष्ट्रवाद पैदा करने के लिए राजनीतिक हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।साथ ही राजनीतिक दल देशवासियों में राष्ट्रवाद की कमी के लिए एक दूसरे को दोषी ठहरा कर इसे भी अपना जनमत संग्रह वाला मुद्दा बना रहे हैं । यही नहीं ऐतिहासिक वृत्तांतों को भी वर्गों में बांटा जा रहा है । जबकि मुद्दा सिर्फ राष्ट्रहित होना चाहिए था न कि कोई वर्ग विशेष का इतिहास या ये भी कह सकते हैं कि इतिहासकारों ने जो वृत्तांत लिखा था उसमें भी भेदभाव कर वर्गवाद को बढ़ावा दिया और आजाद देश के युवाओं की शिक्षा में वह इतिहास परोसा गया जिससे समाज के सभी वर्गों में आपसी वैमनस्य गहराता जा रहा है।
वर्तमान के राजनीतिकार जिस तरह के इतिहास का जिक्र बार बार कर रहे हैं उसमें मुगल शासकों को चिन्हित कर राजनीतिक स्वार्थ भुनाया जा रहा है । बजाय इसके कि जो गलतियां हो चुकी है उन इतिहासिक व्रततान्त को तथ्यों के साथ सुधारा जाय और युवा पीढ़ी को गर्वित करने वाला इतिहास पढ़ाया जाय न कि तथ्यों सेतोड़मरोड़ किया हुआ । मध्यकालीन इतिहास के जाने माने इतिहासकार प्रो हरबंस मुखिया के अनुसार हल्दीघाटी के युद्ध में जीत तो अकबर की ही हुई थी । जबकि स्थानीय लोकप्रिय कल्पनाओं में महाराणा प्रताप को अपने राज्य की रक्षा करने वाला जननायक माना गया। क्योंकि वे अकेले राजपूत राजा थे जिन्होंने अकबर के सामने घुटने नही टेके और आखरी दम तक लड़ते रहे एक नायक की तरह ।
तत्कालीन समय में राष्ट्रों की अलग से कल्पना तक नहीं थी ऐसा दौर अठारवीं शताब्दि में चलन में आया । ये ऐतिहासिक प्रमाण आधरित तथ्य हो सकते हैं पर एक ही काल में अकबर महान शासक और उससे अपने राज्य के अस्तित्व के लिए अंतिम समय तक लड़ने वाला महाराणा प्रताप राष्ट्र भक्त कैसे कहला सकता है। वर्तमान में इतिहास के विद्यर्थियों मे ये बहस का विषय बना हुआ है । इस विषय को लेकर इतिहास में बदलाव की संभावना नजर आने लगी है उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कह चुके हैं कि मुगल आक्रांता थे भारतीयों के हीरो महाराणा प्रताप हैं । केंद्रीय मंत्री राजनाथसिंह भी कह चुकें है कि इतिहासकारों ने अकबर को महान बताकर राणा प्रताप के साथ नाइंसाफी की है जबकि वे राष्ट्र नायक थे।
हाल ही में फिर से उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने सिकंदर को चन्द्रगुत मौर्य से युद्ध हारना बता कर इतिहास कारों को चुनोती दे डाली है बहस भी छिड़ गई है। बहरहाल जानकारों का कहना है कि रूस की सरकार भी अपने देश का इतिहास खंगाल कर बदलाव करा रही है । अगर तथ्यों के साथ राष्ट्र हित में ऐसा हो तब तो भावी पीढ़ी और विश्व भी मान लेगा पर सिर्फ अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए किया जाए वर्गों में बांटा जाए तो राष्ट्र हित की कल्पना बेमानी होगा ।तब इस सम्भावना से इनकार नही किया जा सकता है कि भविष्य में जो भी राजनेतिक दल सत्ता में रहेगा वह भी अपने वोट बैंक के लिए बगैर तथ्यों के इतिहास से छेड़छाड़ करने में संकोच नही करेगा ।