Raag Ratlami Jehadi Threat -दूर नहीं अब बिलकुल पास आ चुका है जेहादी खतरा-वर्दी वालों के सामने है बडी चुनौती
-तुषार कोठारी
रतलाम। बीते दिनों हुई घटनाओं के बाद अब शहर के बाशिन्दे डरने लगे है। आईएसआईएस और तालिबान के किस्से पहले दूर देशों से आते थे,लेकिन अब तो लगता है हमारे आसपास ही तालिबानी और आईएसआईएस के जिहादी जालिम पनप चुके है। बडी चुनौती अब वर्दी वालों के लिए खडी हो गई है। अभी तो सिर्फ छ: जेहादी सामने आए आए है। इन्होने अपने जैसे कितने और तैयार कर रखे है,कोई नहीं जानता? ये नए गुमनाम चेहरे आने वाले दिनों में क्या गुल खिलाएंगे ये भी कोई नहीं जानता,लेकिन ये तय है कि अगर इन्हे जल्दी खोजा ना गया तो किसी भी हौलनाक कारनामें को अंजाम दे सकते है।
वैसे रतलाम में जेहादियों की सक्रियता कोई नई बात नहीं है। पिछले एक दशक में दो दंगे शहर देख चुका है। इतना ही नहीं रतलाम के जेहादी ठेठ काश्मीर में हिजबुल मुजाहिदीन जैसी आतंकी तंजीम में शामिल हो चुके है। यहां तक कि कुछ जेहादी तो आईएसआईएस में भर्ती होने के लिए सीरीया तक जाने के लिए निकल पडे थे। ये तो गनीमत रही कि ये जेहादी वर्दी वालों के हत्थे चढ गए थे,इसलिए ये सीरीया तक नहीं पंहुच पाए। ये भी ज्यादा पुरानी बात नहीं है कि सिमी के आंतकियों ने रेलवे स्टेशन पर गोलीबारी करके वर्दीवालों को शहीद कर दिया था। कुल मिलाकर शहर में जेहादियों की कहानियां काफी पुराने वक्त से चलती आ रही है। अब इसमें नए किस्से भी जुड गए है। अल सूफ्फा गिरोह सामने आ चुका है,जिसके छ: आतंकी वर्दी वालों की गिरफ्त में आ चुके है।
पिछले कुछ सालों में शहर में एक नया ट्रेण्ड नजर आ रहा है। कई सारे नई उमर वाले जवान अचानक से जालीदार गोल टोपी,बढी हुई दाढी,उंचा पाजामा और नीचा कुर्ता पहने दिखाई देने लगे है। फैशन करने के दिनों वाली जवानी के दौर में जब कोई युवा अचानक से इस तरह तब्दील होता हुआ दिखाई देता है,तो ये देखने वालों को डराने लगता है। अभी पकडे गए तमाम जेहादी ऐसे ही थे। अब तो ऐसा लगने लगा है कि जालीदार गोल टोपी,उंचा पाजामा,नीचा कुर्ता और दाढी वाला हर शख्स कहीं ना कहीं किसी जेहादी तंजीम से जुडा हुआ है,जिसके लिए हर गैर मुस्लिम ना सिर्फ काफिर होता है बल्कि वाजिब-उल- कत्ल(मार दिए जाने के काबिल) भी होता है।
शहर मेें ना जाने कहां कहां की तबलीगी जमाते आती है। ये जमाती घर घर घूमकर नए जवान हो रहे लडकों को पक्का मोमिन बनने का ज्ञान देते है और धीरे धीरे उनको जालीदार गोल टोपी,उंचा पजामा और नीचा कुर्ता पहन कर दाढी बढाने की सीख देते है। जैसे ही कोई लडका,पक्का मोमिन बनने की तरफ बढता है,उसे हर गैर मुस्लिम काफिर नजर आने लगता है। गांव गांव मे फैले मदरसों में यूपी बिहार झारखण्ड से बच्चे लाए जाते है,जिन्हे बचपन से जेहादी तालिम दी जाती है। शहर में कुछ सालों पहले बना अल सूफ्फा भी इन्ही तालीमों की नतीजा था। यही अल सूफ्फा अब फिर से सक्रिय हो चुका है। पहले जहां इसमें करीब साठ लोग जुडे थे,अब इनकी तादाद कितनी हो चुकी है,कोई नहीं जानता।
कुल मिलाकर किसी जमाने में शांति का टापू रहे मध्यप्रदेश के इस रतलाम जैसे कस्बे में इराक और सीरीया के इस्लामिक स्टेट का असर सिर चढ कर बोल रहा है। वर्दी वालों के लिए बडी चुनौती इन्हे ढूंढने और ढूंढ कर सही रास्ते पर लाने की चुनौती है। खतरा बिलकुल नजदीक आ चुका है। शहर के बगीचे तक इनके कब्जे में आ गए है। अब मीटींग के लिए बगीचों का उपयोग किया जा रहा है। दोबत्ती इलाके के बगीचे में ऐसी मीटींगे देखी जा सकती है।
बडा सवाल ये भी है कि अभी पकडे गए छ: आतंकियों में से तीन तो हत्या के मामलों में सजायाफ्ता होकर जमानत पर छूटे हुए थे। इसी से यह साबित होता है कि उन्हे किसी काफिर की हत्या करने पर पश्चाताप जैसी कोई भावना छू तक नहीं गई थी,उल्टे जमानत पर आने के बाद वे काफिरों के खिलाफ नए मंसूबे बनाने के लिए निकल पडे थे।
बहरहाल वर्दी वालों को अब इस बडी चुनौती को बेहद गंभीरता से लेना होगा। जालीदार गोल टोपी और दाढीवालों पर बारीकी से नजर रखना होगी,वरना आने वाले दिनों में शहर को किसी नई मुसीबत से जूझना पड सकता है।
स्वच्छ सर्वेक्षण का असर
इस बार स्वच्छ सर्वेक्षण की तैयारी बडे जोर शोर से की जा रही है। इस तैयारी के कारण जहां पूरा शहर सजा संवरा दिखाई दे रहा है,वहीं कई सारे लोगों को इससे बेवजह की परेशानी भी झेलना पड रही है। शहर के फोरलेन वाले रास्तों पर शानदार तिरंगी झालरे लगा दी गई है। इससे ऐसा लगता है,जैसे पूरा शहर त्यौहार मना रहा हो। स्टेशनरोड,पावर हाउस रोड,लोकेन्द्र भवन रोड जैसी सड़कों के बीच में खडे बिजली के पोल तिरंगे के रंग में लहरा रहे है। झाली तालाब को भी दर्शनीय बना दिया गया है। रात के वक्त सड़कों की सफाई की जा रही है। लेकिन स्वच्छ सर्वेक्षण के चक्कर में शहर के तमाम डिस्पोजल आइटम बेचने वाले दुकानदार परेशान है। इन दुकानों को पूरी तरह बन्द कर दिया गया है। स्वच्छ सर्वेक्षण में सिंगल यूज प्लस्टिक का उपयोग पूरी तरह समाप्त किया जाना है,लेकिन इसके चक्कर में कागज के डिस्पोजल भी बन्द कर दिए गए है। इसका खामियाजा चाय वालों को भुगतना पड रहा है। चाय वालों के चाय के कप नहीं मिल रहे है। उन्हे अब फिर से कांच के गिलासों का सहारा लेना पड रहा है। स्वच्छ सर्वेक्षण को लेकर की जा रही इतनी मशक्कत के बाद रतलाम को कौन सा नम्बर मिलता है,यह देखने वाली बात होगी।