सीखना क्या है इसके लिए नई शिक्षा नीति की जरूरत पडी-विद्या भारती के प्रांतीय कार्यालय ‘‘सम्राट विक्रमादित्य’’ भवन के लोकार्पण पर संघ प्रमुख डा.भागवत ने कहा (Watch Live Video)
उज्जैन,22 फरवरी (इ खबरटुडे)। मंगलवार को राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के प्रमुख डा.मोहन भागवत ने उज्जैन के चिंतामन मंदिर मार्ग पर सम्राट विक्रमादित्य भवन का लोकार्पण किया । इस दौरान उन्होंने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि मनुष्य के साथ सीखने और पढ़ने की समस्या नहीं है लेकिन सीखना क्या है यह समस्या हमें देखने को मिलती है इसलिए हमारे देश को नई शिक्षा नीति की आवश्यकता पड़ी।
अखिल भारतीय विद्याभारती द्वारा संचालित विद्या भारती मालवा के प्रशिक्षण, शौक्षिक अनुसंधान केन्द्र एवं प्रांतीय कार्यालय ‘‘सम्राट विक्रमादित्य भवन’’ के लोकार्पण के दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने उद्बोधन में नई शिक्षा नीति को लेकर कहा कि मनुष्य के साथ सीखने और पढ़ने की समस्या नहीं है लेकिन सीखना क्या है यह समस्या हमें देखने को मिलती है इसलिए हमारे देश को नई शिक्षा नीति की आवश्यकता पड़ी, नई शिक्षा नीति के अंतर्गत क्या है यह मुझे नहीं पता लेकिन मैंने उसकी प्रस्तावना जरूर पड़ी है नीति में क्या है यह श्री रामकृष्ण राव ही जानते हैं आज के इस युग में शिक्षकों को भी शिक्षा देने का प्रशिक्षण जरूरी है। यह प्रक्रिया विद्या भारती द्वारा शुरुआत से ही अपनाई जा रही है।
लोकार्पण समारोह में श्री श्री 108 श्री महंत श्यामगिरी जी महाराज (राधे-राधे बाबा) तथा पवन जी सिंघानिया (मैनेजिंग डायरेक्टर, मोयरा सरिया, इन्दौर) के विशेष अतिथि के रूप में मौजूद थे जबकि समारोह की अध्यक्षता विद्या भारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष डी. रामकृष्ण राव ने की। डॉ. कमलकिशोर चितलांग्या (अध्यक्ष, सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान मालवा) एवं नरेन्द्र पालीवाल (अध्यक्ष, ग्राम भारती समिति मालवा) भी समारोह में उपस्थित थे।
सरसघंचालक डॉ. मोहन भागवत ने उदबोधन में कहा कि ‘‘सम्राट विक्रमादित्य भवन’’ का निर्माण सभी के लिए आनन्दायी है। शिक्षा एवं स्वास्थ्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज व्यक्ति किराये का मकान लेकर भी बच्चो को शिक्षा देता है। विद्या भारती वर्तमान षिक्षा के साथ बच्चों को कुछ और भी सिखाती है तथा सम्म्पूर्ण शिक्षा देने का प्रयास करती है। पुष पक्षी भी अपना जीवन चलाने के लिए झान प्राप्त करते है, किन्तु उनके सीखने की सीमा होती है। मनुष्य के सीखने की कोई सीमा नही हाती मनुष्य देवता भी बन सकता है। रावण भौतिक व आध्यातिम्क क्षेत्र की विद्याओं का ज्ञाता था किन्तु उसके समाज विरोधी होने के कारण आज भी भगवान श्री राम की ही पूजा होती है। सोने की लंका से अयोध्या अच्छी मानी जाती है। पष्चिम के लोग मानते हैं कि मनुष्य सृष्टि का उपभोगकर्ता है। हमारा मानना है कि अपनी गुणवत्ता का उपयोग सब के लिये हो। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 मनुष्य को सबके लिये उपयोगी बनाना चाहती है, उपद्रवी नहीं। विद्या भारती का लक्ष्य स्पष्ट है अपने गुणो के साथ सब का विकास करना । साधन अनुकुल सत्व के आधार पर ही लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव है। आचार्यो को प्रशिक्षित करने से ही षिक्षा का लक्ष्य प्राप्त कर सकते है। सीखने वाले के स्तर पर जा कर ही सीखने की प्रेरणा दी जा सकती है। छोटे बच्चो के रोने पर प्रोफेसर द्वारा फिजिक्स की बड़ी बाते करने से वह चुप नहीं हो सकता, उसे तो रोचक तरीके से कुछ बताने पर ही चुप कराया जा सकता है। शिक्षक के व्यवहार के बारे में बोलते हुए माननीय ने कहाँ कि अलग-अलग स्तर पर षिक्षा देते हुए संतुलित व्यवहार प्रयोग सिद्ध प्रत्यक्ष प्रचलन दिखना आवष्यक है। राष्ट्रीय शिक्षा नीती के अनुसार हमें आधुनिक तकनीक का उचित उपयोग करते हुए, साथ ही अपनी दिशा और लक्ष्य को न भुलते हुए अगली पीढ़ीयों का निर्माण करना है। एक बंगाली कविता का उल्लेख करते हुए उन्होने कहाँ ‘‘विधि तोहे छोडबे ना‘‘ अर्थात यदि तुम दिशा और सही तरीका नहीं छोड़ोगे तो तुम्हारा भाग्य तुम्हें कभी नहीं छलेगा।
इस अवसर पर संस्था द्वारा प्रकाशित तीन पुस्तकों 1.‘‘कनकश्रृंगा (स्मारिका) 2. बालगीतांक (देवपुत्र) 3. अमर क्रांतिवीर उमाजी राजे ( अभय मराठै) का विमोचन प. पू. सरसघंचालक डॉ. मोहन भागवत जी, एवं मंचासीन अतिर्थियों द्वारा किया गया।
भागवत ने सम्राट विक्रमादित्य भवन को केवल विद्या भारती ही नहीं अपितु सामाजिक विकास का केन्द्र बनाने कि बात कहीं। उन्हाने कहाँ की इस प्रोजेक्ट पर समाज को अपनी छत्र छाया बनाये रखना होगी।
अध्यक्षीय उदबोधन में विद्या भारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष डी. रामकृष्णराव जी ने कहा कि इस भवन से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में सहायता मिलेगी। एन ई पी में सीखने की पद्धती एवं बच्चों का सामर्थ्य बढानें पर जोर दिया गया है। शिक्षको का सषक्तिकरण एवं शिक्षा में पूर्व छात्रों की भूमिका तय करने से हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ती होगी। ये भवन सामाजिक विकास के केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध होगा।
विभाग समन्वयक महेन्द्र भगत ने लोकापर्ण कार्यक्रम की जानकारी देते हुवे बताया कि प्रशिक्षण, शौक्षिक अनुसंधान केन्द्र एवं प्रांतीय कार्यालय ‘‘सम्राट विक्रमादित्य भवन’’ के लोकापर्ण में सर्वप्रथम दीप्रज्वलन एवं मॉं सरस्वती की प्रार्थन की गई। मंचीय अतिर्थियों का परिचय एवं स्वागत सरस्वती विद्या प्रष्ठिान के प्रादेशिक सचिव प्रकाश धनगर द्वारा किया गया। मचांसीन अतिथियों का स्वागत संस्थान के समिति सदस्यों द्वारा किया गया। इस प्रशिक्षण, शौक्षिक अनुसंधान केन्द्र एवं प्रांतीय कार्यालय ‘‘सम्राट विक्रमादित्य भवन’’ की प्रस्तावना भवन निर्माण समिति के सहसयोजक एवं ग्राम भारती मालवा के सचिव सौभाग्यसिंह ठाकुर ने रखी। भवन का प्रेजेन्टेषन रशेष राठौर के द्वारा दिखाया गया। भवन के आर्किटेक्ट जितेन्द्र मेहता, निर्माण एंजेसी के अशीष गुप्ता एवं इन्टरीयर डिजाइनर अमित गुप्ता का अभिनन्दन सरसघंचालक डॉ. मोहन भागवत द्वारा किया गया।
सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान मालवा के प्रादेशिक सचिव प्रकाशचंद्र धनगर ने बताया कि चितांमण गणेश मंदिर मार्ग पर बने इस ‘‘सम्राट विक्रमादित्य भवन में विद्यार्थियों का भविष्य संवारने, आधुनिक शिक्षा के साथ उन भारतीय संस्कार देने के उदेशय से विद्या भारती द्वारा बनाए गए प्रशिक्षण, शैक्षिक अनुसंधान केन्द्र प्रांतिय कार्यालय में सम्पूर्णं प्रांत से नगरीय शिक्षा, ग्रामिण शिक्षा, सेवा शिक्षा एवं जनाजातीय क्षेत्र की शिक्षा से प्रतिवर्ष लगभग 20 हजार स्कूली शिक्षक, प्रशिक्षण प्राप्त करने आएंगे। प्रत्येक शिक्षक-शिक्षिकाओं एवं कार्यकर्ताओं को 15 दिवसीय आवसीय प्रशिक्षण दिया जायेगा। वे पढाई में आने वाली सामस्यों पर शोध एवं अनुसंधान कर नया पाठ्यक्रम भी तैयार करेंगे। साथ ही वह आडियो – वीडियों रूप में लेंसन तैयार कर वेबसाइड पर भी अपलोड करेंगे। इस भवन में चार संस्थान सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान मालवा, ग्राम भारती शिक्षा समिति मालवा, वनवासी सेवा न्यास और माता शबरी अनुसूचित जनजाति सेवा न्यास की प्रांतीय गतिविधियों का संचालन किया जाएगा।
20 हजार वर्ग फीट भूमि पर कुल 82 हजार वर्गफीट पर बने इस प्रशिक्षण, शौक्षिक अनुसंधान केन्द्र एवं प्रांतीय कार्यालय ‘‘सम्राट विक्रमादित्य भवन’’ में नगरीय शिक्षा, ग्रामीण शिक्षा, प्रंबध समितियों के कार्यालय के साथ प्रांत के अन्य कार्यालय भी रहेगें। यहॉ प्रशिक्षण केन्द्र का भी निर्माण किया गया हैं जिसमें 200 कार्यकर्ताओं के आवासीय प्रशिक्षण की व्यवस्था के साथ स्मार्ट क्लासरूम, टीएलएम एवं लेंग्वेज, गणित व कम्प्यूटर की प्रयोगषालाएं, अनुसंधान, 400 व्यक्ति की क्षमता का सर्वसुविधायुक्त ऑडिटोरियम बनाया गया है।
यह भवन निजी क्षेत्र की पहली ग्रीन बिल्डिंग है। चार मंजिला यह भवन ग्रीन बिल्डिंग कंसेप्ट पर आधारित है। इसका निर्माण इस तरह से किया गया है। कि दिन में बिजली जलाने और एसी चलाने की जरूरत नही होगी। बिजली के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग होगा। रेन वाटर हार्वेस्टिंग के साथ पानी के दोबारा उपयोग की व्यवस्था भी की गई है। जिससे भवन के आसपास हरियाली रहेगी।
इस भवन में विद्या भारती के साहित्य का प्रकाशन कार्यालय भंडार गृह के साथ संगठन मंत्री एवं अतिथि, अन्य प्रवासी कार्यकर्ताओं के लिए आवास की व्यवस्था होगी। समिति मीटिंग एवं कार्यकर्ता मीटिंग रूम, आईसीटी एवं मीडिया रूम, ओपन इयर थियेटर, मंदिर एवं पिरामिड आकार का ध्यान केंद्र रखा गया है। इसके निर्माण में महेष्वर किले की शैली का उपयोग किया गया है।
लोकार्पण कार्यक्रम का संचालन हरिशकर मेहता द्वारा किया गया तथा आभार संस्था के अध्यक्ष डॉ. कमलकिशोर चितलांग्या द्वारा किया गया कार्यक्रम के सम्पन्न के पूर्व वन्दे मातरम् हुआ। कार्यक्रम में विशेष रूप से राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ के सुरेश सोनी, मनमोहन वैघ, अशोक सोहनी, अशोक अग्रवाल, हेमन्त मुकतीबोध, दिपक विस्पुते, प्रकाश शास्त्री, राजमोहन , बलीराम जी, शभुप्रसाद गिरी, विनित नवाते विद्या भारती के अखिल भारतीय महामंत्री श्रीराम आरावकर, जे.मे. काशीपति , यातिन्द्र शर्मा, भालचन्द्र रावले, शशीकांत फडके, निरंजन शर्मा, प्रांतिय संगठन मंत्री अखिलेश मिश्रा के साथ मध्यप्रदेश शासन के मंत्री डॉ. मोहनयादव, इन्दंर सिंह परमार, हरदिप सिंह डंग, विजय जी शाह, एवं सासद अनिल फिरोजिया, महेन्द्र सिंह सोलकी के साथ प्रांत एवं नगर के गणमान्य नगरिक उपस्थित थे।