October 12, 2024

अंत तक पढ़ गए ज़िंदगी की घुटन,कोई अध्याय लगता मगर शेष है

प्रो अज़हर हाशमी के जन्मदिवस 13 जनवरी पर विशेष

-आशीष दशोत्तर

Ashish

रचनात्मक यात्रा कई आयाम लिए होती है । इस यात्रा में विषयों का वैविध्य , सोच विचार का सामीप्य सहभागी होता है। शब्द साधना एक ऐसे सफर पर ले जाती है जिसमें हर पड़ाव एक नया पथ सृजित करता है । इस सृजन यात्रा के पथिक होना सौभाग्य होता है। कवि जब अपनी कविता यात्रा में कुछ महसूस करता है तो वह उसका ऐसा सृजन होता है जो उसकी छवि को भी निर्मित करता है और उसे प्रकाशित भी करता है।

निरंतर अपनी सृजनात्मकता से साहित्य को समृद्ध कर विभिन्न विधाओं पर अधिकारपूर्वक लेखन कर रहे वरिष्ठ रचनाकार एवं चिंतक श्री अज़हर हाशमी एक ऐसे ही व्यक्तित्व का नाम है जिन्हें शब्दों की सीमाओं में, वाक्यों के वलय में, पैराग्राफ की परिभाषाओं में और उपमाओं के दायरों में नहीं बांधा जा सकता। वे अपनी कविता रचते ही नहीं बल्कि कविता को परिभाषित भी करते हैं । वे कहते हैं ‘हिंदी कविता सामाजिक सरोकारों की सिलाई मशीन पर सिला हुआ शब्दों का परिधान है, जिसमें अनुभवों के धागे और संप्रेषण के क्रोशिए से संदेश के कशीदे काढ़े जाते हैं।’

रचनाकार समाज से ही बहुत कुछ ग्रहण करता है और उसे समाज से ही विषय मिलते हैं , क़िरदार मिलते हैं , लिखने की प्रेरणा मिलती है ।समाज से मिले इस स्नेह को वह अपनी रचनात्मकता के जरिए पुनः समाज को सौंपता है। जब इस रचनात्मकता में ईमानदारी होती है तो समाज इसे न सिर्फ स्वीकारता है बल्कि स्नेह भी प्रदान करता है ।

जूझकर आंधी से अपना हौसला चलता रहा

और मंज़िल की दिशा में काफ़िला चलता रहा ।

यूं तो हम कंधे मिलाकर साथ में चलते रहे

बीच में लेकिन दिनों के फ़ासला चलता रहा।

बाद मुद्दत के मिले तो खूब रोए, फिर हंसे

फिर पुरानी बात का शिकवा गिला चलता रहा।

हाशमी जी का सृजन संसार बहुत विस्तृत है ।उनके कई आयाम हैं, कई रूप हैं और कई सरोकार। एक कवि के रूप में, एक गीतकार के रूप में, एक ग़ज़लकार के रूप में , एक अध्यापक के रूप में , एक चिंतक के रूप में , एक प्रवचनकार के रूप में, एक स्तंभकार के रूप में, एक व्यंग्यकार के रूप में उनसे जब कोई मिलता है तो उन्हें अलग ही तरह का पाता है। निरंतर लिखना और बेहतर लिखना उनके जीवन में शामिल है । उनके सृजन कक्ष में पुस्तकों का समृद्ध संसार और लेखन के प्रति इतना समर्पण प्रेरक है। वे निरंतर समाचार पत्रों के लिए स्तंभ, अपने संस्मरण और काव्य पंक्तियां तो लिख ही रहे हैं साथ ही उनके साहित्य संसार में कई सारे दृश्य निरंतर जुड़ रहे हैं। इन सबके बावजूद वे अब भी बहुत कुछ शेष पाते हैं। एक इंसान को इंसान की तरह पहचाने जाने की जद्दोजहद उनके रचना संसार में निरंतर मुखरित होती है।

चुक गई ज़िंदगी सांस भर शेष है

ढह गया है किला खंडहर शेष है ।

और कब तक पिएं हम तनावों का विष

नीलकंठी हुए पर ज़हर शेष है ।

अंत तक पढ़ गए ज़िंदगी की घुटन

कोई अध्याय लगता मगर शेष है ।

आदमीयत की तो उठ गई अर्थियां

आदमी में मगर जानवर शेष है।

हाशमी जी की रचनाएं उनके पाठकों को एकदम नज़दीक ले आती हैं। पाठक उस कविता के प्रति आकर्षित होता है। सरल बयानी और सहज शैली पर मुग्ध हो जाता है। यही कारण है कि उनकी कविताएं कई जगह दोहराई जाती हैं। वे अपनी कविताओं में ,अपने गीतों में ,अपनी ग़ज़लों में सरल शब्दावली, सहज शैली के पक्षधर रहते हैं । उन्होंने कहा भी है, “क्लिष्ट शब्द कविता की संप्रेषणीयता समाप्त कर देते हैं । भाषाई धरातल पर हिंदी कविता पांडित्य का प्रदर्शन नहीं अपितु सरलता का समर्थन होना चाहिए।” यही कारण है कि उनकी रचनाएं सीधे-सीधे संप्रेषित होती हैं। वे प्रकृति चित्रण में भी मनुष्यता का पक्ष लेते नज़र आते हैं । रिश्तों के ताने-बाने में भी प्रकृति के प्रसंग उपस्थित होते हैं।

रिश्तों में हो मिठास तो समझो वसंत है

मन में न हो खटास तो समझो वसंत है।

आँतों में किसी के भी न हो भूख से ऐंठन

रोटी हो सबके पास तो समझो वसंत है।

दहशत से रहीं मौन जो किलकारियाँ उनके

होंठों पे हो सुहास तो समझो वसंत है।

खुशहाली न सीमित रहे कुछ खास घरों तक

जन-जन का हो विकास तो समझो वसंत है।

वाचिक परंपरा में हाशमी जी का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने एक लंबे समय तक देश के महत्वपूर्ण मंचों पर रचना पाठ किया है । उनकी रचनाएं पूर्ण गंभीरता और हिंदी साहित्य की गरिमा को लिए हुए रही। वे अपने महत्वपूर्ण कवि सम्मेलन एवं कवि साथियों पर निरंतर अपने संस्मरणों में उनका ज़िक्र भी कर रहे हैं। वे देश के महत्वपूर्ण कवि सम्मेलनों के सूत्रधार भी रहे। आकाशवाणी, दूरदर्शन के कवि सम्मेलन में भी उन्होंने कई बार शिरकत की। ‘राम वाला हिंदुस्तान ‘ उनकी महत्वपूर्ण रचना जो देश में कई बार कई मंचों से दोहराई जाती रही। संगीतकार सिध्दार्थ काश्यप द्वारा संगीतबध्द एवं निर्मित संगीत एल्बम ‘रॉक ऑन हिन्दुस्तान’ में गीतकार प्रो. अजहर हाशमी का प्रसिध्द गीत ‘मुझको राम वाला हिन्दुस्तान चाहिए’ भी है। उनकी हर कविता एक नया संदेश देती है। उनके भीतर मौजूद रचनाकार मोहब्बत का पैग़ाम देता है। रोशनी का रहनुमा बनता है। तीरगी का तिरस्कार कर प्रकाश से प्यार करने की पहल करता है।

रोशनी जब डालती है अपना डेरा

मुंह छिपाकर भागता है तब अंधेरा ।

दीप है निष्पक्ष वितरक रोशनी का

दीप के मन में नहीं तेरा या मेरा ।

एक छोटे से दीये को दें सलामी

जिसने दमखम में तिमिर का तोड़ा घेरा।

वे हिंदी साहित्य की गीत परंपरा की एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। वे कहते हैं ” गीत छंदनुशासन की छत्रछाया में अक्षरों का अनुष्ठान है । वर्तमान हिंदी गीत मात्राओं पर आधारित छंदानुशासन के आसन पर विराजमान है।” उनका सुप्रसिद्ध गीत ‘ बेटियां शुभकामनाएं हैं,बेटियां पावन दुआएं हैं।बेटियां जीनत हदीसों की,बेटियां जातक कथाएं हैं ‘ तो बेटियों के लिए अनिवार्य गीत बन चुका है। देश- प्रदेश के महत्वपूर्ण आयोजनों में महत्वपूर्ण शख्सियतों द्वारा भी इस गीत को फख़्र के साथ दोहराया जाता है । उन्होंने बेटियों के लिए अन्य महत्वपूर्ण गीत भी लिखे, वे भी काफी चर्चित रहे।

शुभ-मंगल की ‘मौली’ बिटिया,

हल्दी-कुमकुम – रौली बिटिया ।

ईद, दीवाली, क्रिसमस जैसी,

हंसी-खुशी की झोली बिटिया ।

सखी सहेली से घुल-मिलकर,

करती ऑख-मिचौली बिटिया

घर – आंगन में दीप जलाकर,

रचती है रांगोली बिटिया ।

हाशमी जी की कविताएं बेबाक बयानी का इज़हार करती हैं। ये कविताएं बिना किसी लाग लपेट के सीधे-सीधे सवाल उठाती है। उन लोगों पर उंगली उठाने से नहीं चूकती जो कथनी और करनी का अंतर रखते हैं। उन लोगों को कटघरे में खड़ा करने से पीछे नहीं हटती जो अपने ऊपर एक आवरण ओढ़े हुए रहते हैं। छद्म वेश में रहने वाले बुद्धिजीवियों पर ये कविताएं कटाक्ष करने से नहीं चूकती।

मैंने लिखी शोषण के विरोध में

आग उगलती कविताएं कि मैं

शोषक की ईट से ईट बजा दूंगा

लेकिन जब शोषक ने भरी सभा में

घूर कर देखा मुझे तो मेरी

आग उगलती कविताएं पानी-पानी हो गई

और मैं भीगी बिल्ली बन गया ।

मैंने लिखे नारी सम्मान में संवेदना पूर्ण निबंध

कि नारी का अपमान करने वालों को

मुंहतोड़ उत्तर दूंगा

लेकिन जब तानाशाह ने किया नारी का अपमान

तो मेरी संवेदनशीलता सुन्न हो गई

और मैं चुप रहा ।

पुरस्कार न मिलने, सुविधाएं छिन जाने,

ट्रांसफर, निलंबन या ऐसे ही किसी भय से

छद्मवेशी बुद्धिजीवी की तरह।

अज़हर हाशमी जी के चिंतन का फ़लक बहुत विशाल है । वे गहन अध्येता हैं। विभिन्न धर्म ग्रंथों का उन्होंने सूक्ष्मता से अध्ययन किया है। यह उनके काव्य में भी अभिव्यक्त होता है। पर्व -प्रसंग, तीज- त्यौहार, तिथि -दिवस ,ज्योतिष- विज्ञान ,मानवीय रिश्ते ,पक्षी-प्रकृति संबंध ,सभी कुछ उनकी रचनाओं में शामिल होता है। उनकी रचनाएं किसी वैचारिकता को प्रणाम भी नहीं करती और न ही किसी का उपहास करती है , बल्कि आम पाठक और श्रोता के मन की बात कहती है।

घर में मां है इसका मतलब,

दया का दरिया है घर में ।

सदा स्नेह के मोती मिलते,

इस दरिया की लहर-लहर से ।

जिसके साथ दुआ है मां की,

उसको मंज़िल मिल जाती है।

चाहे समतल राह से गुज़रे,

चाहे गुज़रे कठिन डगर से।

हाशमी जी के काव्य में कई सारे दृश्य उभर कर सामने आते हैं। उनके बिंब और प्रतीक अपनी तरह से अपनी बात कहते हैं । वे अपने जनपद के पथ पर चलते पथिक के साथ भी होते हैं।खिलखिलाते बच्चों की हंसी में भी शामिल होते हैं। महिलाओं के दुःख -दर्द में भी साझा रहते हैं । हर जन के सुख दुःख की बात को अपनी कविताओं के ज़रिए अभिव्यक्त करते हैं। जीवन के छोटे-बड़े प्रसंगों को कविता की शक्ल में ढालकर प्रभावी रूप से प्रस्तुत करने की अद्भुत शैली उनके पास है। उनका शब्द संसार व्यापक है। उनके काव्य में बाहर शब्दों की कदमताल होती है और भीतर एक आत्मीयता की तरंग उभरती जाती है। शब्दों के समुच्चय बनाकर अपनी बात कहने का बेहतरीन हुनर उनके काव्य में देखा जा सकता है।

चांद हैं, आफताब हैं बच्चे।

रोशनी की किताब हैं बच्चे।

अपने स्कूल जब ये जाते हैं,

ऐसा लगता गुलाब हैं बच्चे।

व्यास, सतलज सरीखे दरिया हैं,

रावी, झेलम, चिनाब हैं बच्चे।

अपनी मस्ती की राजधानी में,

अपने मन के नबाब हैं बच्चे।

जब कभी भी ये खिलखिलाते हैं,

ऐसा लगता रबाब हैं बच्चे।

जिनको संस्कार शुभ मिले हैं वे,

हर जगह कामयाब हैं बच्चे।

क्या फरिश्ते किसी ने देखे हैं?

कितना अच्छा जवाब हैं बच्चे।

हाशमी जी की अपनी अलग ही शैली है। उनका अपना शिल्प विधान भी है। पाठक उस शैली को देखते ही जान लेता है कि यह उनकी कलम से निकली हुई रचना है। उनकी शैली में ही उनकी रचनात्मकता को कुछ इस तरह परिभाषित किया जा सकता है कि, अजहर हाशमी यानी अक्षर साधना अनवरत, अज़हर हाशमी यानी ज़हीन इंसानियत, अज़हर हाशमी यानी हमदर्द और नेकनीयत , अज़हर हाशमी यानी सृजनशील रचनात्मक।

हाशमी जी की साहित्य यात्रा के साथ एक प्रमुख पक्ष उनका प्रवचनकार का भी रहा। श्रीमद् भागवत गीता पर उनके प्रवचन और व्याख्यान देशभर में हुए। न सिर्फ गीता पर बल्कि विभिन्न धार्मिक ग्रंथों पर उनकी वैचारिक व्याख्यान शैली काफी प्रभावी रहा करती है। इसे वही महसूस कर सकते हैं जिन्होंने उन्हें सुना है।

भगवत गीता दरअसल नीति ग्रंथ है श्रेष्ठ

सबके हित की कामना, हो कनिष्ठ या ज्येष्ठ।

भगवत गीता दरअसल देती यह संदेश

कर्तव्यों को हम करें बदलेगा परिवेश।

राजस्थान के झालावाड़ जिले के ग्राम पिड़ावां में 13 जनवरी 1950 को जन्मे हाशमी जी की कर्मभूमि रतलाम ही रहा। रतलाम से मिले अपनत्व और प्यार को वे सदैव अपनी रचनाओं और व्याख्यान में फख़्र से अभिव्यक्त करते हैं । उनकी प्रमुख प्रकाशित कृतियां अपना ही गणतंत्र है बंधु , सृजन के सहयात्री, मैं भी खाऊं तू भी खा, के अतिरिक्त कई प्रकाशित रचनाएं, पाठ्य पुस्तकों में शामिल सामग्री उनके साहित्य का अवदान को समृद्ध करती है। उनके इस सफर में भी उनकी सकारात्मक रचनात्मकता का बड़ा सहयोग रहा है। उन्होंने राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत रचनाओं के जरिए देश प्रेम के अलख भी जगाई है।

कभी ‘धनिक का माली’ जैसा,

कभी ‘श्रमिक की थाली’ जैसा,

कभी ‘भोर की लाली’ जैसा

कभी ‘अमावस काली’ जैसा,

साझे का संयंत्र है बंधु!

अपना ही गणतंत्र है बंधु!

हाशमी जी निरंतर अपने काव्य संसार से हिंदी साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं । उनकी रचनात्मकता से कविता,गीत- ग़ज़ल के विद्यार्थियों को सीख भी मिल रही है और प्रेरणा भी। उनके साहित्य पर शोधकर्ताओं ने शोधकार्य भी किया है। वे हर नए रचनाकार के पथ में आने वाली बाधाओं के निराकरण का आश्वासन कुछ इस तरह देते हैं-

सच्चाई की राह पर, लाख बिछे हों शूल।

बिना रुके चलते रहें, शूल बनेंगे फूल॥

अज़हर हाशमी जी निरंतर सृजनरत हैं यह सुखद है।

आशीष दशोत्तर
12/2, कोमल नगर
बरबड़ रोड़
रतलाम- 457001
मो.9827084966

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