Raag Ratlami Convent School : बालिका की आत्महत्या से सामने आने लगी कान्वेन्ट की काली करतूतेंं,अब है कार्रवाई का इंतजार
-तुषार कोठारी
रतलाम। बडे लोगों के बच्चों की पढाई के लिए स्टेटस सिंबल कहलाने वाले कान्वेन्ट स्कूल की काली करतूतें अब सामने आने लगी है। इसी स्कूल की एक बच्ची के साथ हुए गैैंग रेप की कहानी अभी लोगों के जेहन से हटी भी नहीं थी कि उडीसा से आई एक बच्ची की आत्महत्या का मामला सामने आ गया। वक्त बदल चुका है वरना खुद को कायदे कानून से उपर मानने वाले कान्वेन्ट स्कूल की सच्चाईयां इस तरह बाहर नहीं आ पाती,जैसी आ रही है। देश के दूर दराज हिस्सों से नन बनाने के लिए लाई गई तीन बच्चियों को स्कूल में चलाए जा रहे अवैध होस्टल से निकाल कर सरकारी संरक्षण में भेज दिया गया है। बाल कल्याण समिति के निरीक्षण में और भी कई सारी गडबडियां सामने आई है।
बरसों तक कान्वेन्ट वाले खुद को कायदे कानून से उपर मानते रहे हैैं। तमाम सरकारी अफसरों और बडे लोगों के बच्चों के लिए ये स्कूल स्टेटस सिंबल होता था,कई लोगों के लिए तो आज भी ये स्टेटस सिंबल ही है। इसी का नतीजा था कि इस स्कूल की तमाम गडबडियों और अनियमितताओं से आंखे मूंद ली जाती थी। भारी भरकम फीस के अलावा हर महीने बच्चों से चन्दा लेना,अभिभावकों के साथ मनमर्जी का दुव्र्यवहार,शिक्षा विभाग की अनसुनी करना जैसी कई चीजें इनकी आदतों में शुमार थी। यही नहीं,नीचे जिले से लेकर देश की राजधानी तक इनकी लाबी भी बेहद ताकतवर हुआ करती थी। कभी गलती से कोई कान्वेन्ट की किसी गडबडी को उजागर करने की कोशिश कर लेता तो सीधे दिल्ली से अफसरों को डांट पिला दी जाती थी। इसी का नतीजा था कि जिले में कोई भी इनके खिलाफ कुछ करने की जुर्रत तक नहीं कर पाता था।
देश में अंग्र्रेजी को मिलने वाले बेवजह के महत्व के चलते आम लोगों की सोच भी यही हुआ करती थी कि अगर बच्चों को बडा आदमी बनाना है,तो कान्वेन्ट में पढाना जरुरी है। इस सोच वाले लोग आज भी बडी तादाद में मौजूद है। इनमें से तो कई ऐसे लोग भी है,जो कहने के लिए हिन्दूवादी है और काली टोपी पहनने वाले है,लेकिन जब बच्चे को पढाने की बात आती है,तो वे सीधे कान्वेन्ट का रुख करते है। उन्हे लगता है कि राष्ट्रवाद,हिन्दुत्व जैसी बातें अपनी जगह है,लेकिन अगर बच्चे का भविष्य बनाना है,तो भोले भाले लोगों को बरगलाकर ईसाई बनाने का षडयंत्र चलाने वाली मिशनरीज के कान्वेन्ट स्कूल में ही बच्चे को भेजना जरुरी है,क्योंकि अंग्र्रेजी तो कान्वेन्ट वाले ही पढा सकते है। कई लोग तो ऐसे भी है जो आर्थिक रुप से कमजोर होने के बावजूद बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए कर्ज लेकर इस स्कूल में बच्चों का दाखिला कराते है।
बहुसंख्यक समाज के लोगों की ये सोच कान्वेन्ट को आगे बढाने का सबसे महत्वपूर्ण कारण था। यही वजह थी कि देश के अलग अलग हिस्सों में अलगाववाद और नक्सलवाद को पोषित करने वाले मिशनरीज द्वारा संचालित कान्वेन्ट स्कूल फलते फूलते रहते थे।
लेकिन असलियत को कभी ना कभी सामने आना ही होता है। रतलाम में यही कुछ हुआ है। उडीसा से लाई गई एक बच्ची स्कूल परिसर के अपने कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर लेती है। कान्वेन्ट वाले अपनी पुरानी आदत के मुताबिक इस मामले को मामूली घटना बताने लगते है। शुरुआती दौर में अफसरशाही भी इसे हलके में लेती है। लेकिन चूंकि अब समय बदला हुआ है,इसलिए घटना की जांच और कार्यवाही की मांग को लेकर धरने प्रदर्शन हो जाते है।
धरने प्रदर्शनों का दबाव बढता है,तो मामले की जांच के आदेश दिए जाते है। जांच की शुरुआत होती है,तो कान्वेन्ट की गडबडियां एक के बाद एक सामने आने लगती है। पता चलता है कि स्कूल में बिना किसी अनुमति के अवैध रुप से होस्टल चलाया जा रहा था। होस्टल में देश के दूर दराज इलाको की बालिकाओं को लाकर उन्हे नन बनने की ट्रेनिंग दी जाती थी,ताकि आगे चलकर वे धर्म परिवर्तन के षडयंत्र को आगे बढा सके। कान्वेन्ट वालों को कभी इस बात की चिन्ता ही नहीं हुई कि बिना अनुमति के अवैध होस्टल चलाने के कारण उन्हे दण्डित भी किया जा सकता है।
इस एक घटना से कान्वेन्ट की तमाम काली करतूतों के सामने आने का सिलसिला चालू हो गया है। बाल कल्याण समिति के सदस्य जब कान्वेन्ट की जांच करने पंहुचे,तो कान्वेन्ट वालों ने अपनी पुरानी आदत के मुताबिक उन्हे प्रभावित करने की कई कोशिशें की। लेकिन बदले हुए समय में यह संभव नहीं हो पाया। समिति ने देखा कि स्कूल के अवैध होस्टल में अब भी तीन बालिकाएं मौजूद है। समिति ने जब इन बच्चियों को सरकारी संरक्षण मेे भेजने की बात कही,तब भी कान्वेन्ट वाले इसका विरोध करते रहे। उडीसा से आई बालिका की आत्महत्या का मामला भी मामूली नहीं है। होस्टल में रहने वाली किसी बालिका को आत्महत्या जैसा कदम उठाना पडा,तो इसके पीछे निश्चय ही कोई ह्रïदय विदारक कारण रहा होगा। इस कारण की खोजबीन अब तक नहीं हो पाई है,लेकिन इतना तय है कि जब भी ये राज खुलेगा,कान्वेन्ट की कोई काली करतूत ही सामने आएगी।
कान्वेन्ट द्वारा अवैध होस्टल चलाया जाना भी दण्डनीय कृत्य है। इस मामले को राष्ट्रीय बाल आयोग भी देख रहा है। इस मामले में कान्वेन्ट के खिलाफ बडी कार्यवाही संभव है। स्कूल की मान्यता पर भी संकट आ सकता है।
इस घटना से यह भी साफ है कि कान्वेन्ट का पूरा तंत्र किस तरह धर्म परिवर्तन के षडयंत्र में जुटा है। बहुसंख्यक समाज के बच्चों से वसूली जाने वाली भारी भरकम फीस का अंतिम उपयोग,उन्ही के धर्म को कमजोर करने के लिए किया जाता है। उम्मीद की जाना चाहिए कि कान्वेन्ट की इन गडबडियों के सामने आने के बाद कान्वेन्ट में अपने बच्चों को पढाकर बडा आदमी बनाने के सपने देखने वालों की भी आंखे खुलेगी और वे भी अपने बच्चों के लिए किसी अच्छे स्कूल की तलाश करेंगे,ताकि उनके द्वारा चुकाई गई फीस का दुरुपयोग ना हो सके।
रैली से दूरी का मतलब…?
फूल छाप पार्टी ने लम्बे इंतजार और खींचतान के बाद युवा ईकाई के मुखिया का नाम घोषित कर दिया। नेता की घोषणा होते ही फूल छाप वाले इस हिसाब किताब में लग गए कि इस घोषणा में किसकी चली? फूल छाप पर काली टोपी वालों का खासा असर है। जानकारों का कहना है कि इस घोषणा में काली टोपी वालों का बडा रोल रहा है,वरना दूसरे दावेदार भी कमजोर नहीं थे। बहरहाल युवाओं के नए मुखिया की नियुक्ति के बाद जबर्दस्त रैली निकाली गई। सैकडों वाहनों वाली इस रैली से फूल छाप के बडे नेता दूर ही नजर आए। बडे नेताओं की दूरी का अलग अलग मतलब निकाला जा रहा है। इस दूरी का असली मतलब क्या है यह तो आने वाला वक्त ही बता पाएगा।