Electricity Crisis : कोयले की कमी के चलते अगले 6 महीने रह सकती है बिजली की किल्लत,महंगी हो सकती है बिजली
नई दिल्ली/लखनऊ ,06 अक्टूबर (इ खबर टुडे)। देश में कोयले की कमी के चलते अगले छह माह तक बिजली की किल्लत रह सकती है, जिसका बिजली के दामों पर भी असर हो सकता है। यह तब है जबकि त्योहारी सीजन बस शुरू ही हुआ है। सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के मुताबिक, 3 अक्टूबर को कोयले से बिजली बनाने वाले 64 प्लांट्स में चार दिन से भी कम का कोयला स्टॉक बचा था। यानी वे बिना सप्लाई मिले चार दिन तक ही बिजली बना सकते थे। हालात पिछले महीने से ही गड़बड़ हैं।
16 पावर प्लांट में बिजली बनाने के लिए कोयला नहीं
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कोयले से चलने वाले 135 पावर प्लांट्स में से आधे से ज्यादा में सितंबर के आखिरी दिनों में औसतन चार दिन का कोयला ही बचा था। 16 में तो कोयला बचा ही नहीं था कि बिजली बनाई जा सके। इसके उलट अगस्त की शुरुआत में इन प्लांट्स के पास औसतन 17 दिनों का कोयला भंडार था। कोयले की इतनी कमी बरसों में नहीं देखी गई।
ऊर्जा मंत्री बोले- मैं नहीं जानता
ऊर्जा के मामले आने वाले महीनों की स्थितिइस संकट पर ऊर्जा मंत्री राजकुमार सिंह ने एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में बताया कि मैं नहीं जानता कि आने वाले पांच से छह माह में भी हम ऊर्जा के मामले में आरामदायक स्थिति में होंगे। 40 से 50 गीगावॉट की क्षमता वाले कोयला प्लांट्स में तीन दिन से भी कम का ईंधन बचा है। सरकारी मंत्रालय कोल इंडिया और एनटीपीसी लिमिटेड जैसी सरकारी कोयला कंपनियों से कोयले के खनन को बढ़ाने के लिए काम कर रही है ताकि मांग के मुताबिक बिजली बन सके।
यूपी के ग्रामीण इलाकों में 4 से 5 घंटे की कटौती
कोयला संकट के चलते प्रदेश में बिजली संकट बढ़ सकता है। सोमवार को कई पावर प्लांट बंद होने और कम क्षमता पर चलने की वजह से प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में 4 से 5 घंटे की कटौती करनी पड़ी थी। कुछ ऐसा ही हाल मंगलवार को भी रहा। बिजली विभाग के अधिकारियों के मुताबिक अगर कोयला संकट जल्द नहीं दूर होता तो शहरी इलाकों में भी बिजली की कटौती करनी पड़ सकती है।
उत्पादन निगम के कई पावर प्लांट बंद
कोयले की कमी के कारण राज्य विद्युत उत्पादन निगम के कई पावर प्लांट बंद चल रहे हैं। हरदुआगंज की 250 मेगावॉट की यूनिट बंद हो गई है। वहीं, पारीछा पावर प्लांट की 210 और 250 मेगावॉट की यूनिटें बंद हैं। जो यूनिटें चल रही हैं, उन्हें भी क्षमता से आधे या फिर उससे भी कम लोड पर संचालित करना पड़ रहा है। पावर कॉरपोरेशन को इन यूनिटों से प्राइवेट पावर प्लांटों के मुकाबले काफी सस्ती बिजली मिलती है। ऐसे में इन पावर प्लांट बंद होने से पावर कॉरपोरेशन पर वित्तीय बोझ बढ़ा है। बिजली सप्लाई के लिए एक्सचेंज से महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है। बिजली विभाग के इंजिनियरों के मुताबिक कई कोल ब्लॉक्स का पेमेंट बकाया होने की वजह से भी कोयले की किल्लत है। हाल यह है कि खदानों के पास वाले पावर प्लांटों में 3-4 दिन का कोयला बचा है जबकि दूर स्थित यूनिटों में कोयला खत्म हो गया है।
बिजली संकट
70% बिजली का उत्पादन भारत में कोयले से ही होता है।
81 लाख टन कोयले का भंडार था भारतीय पावर प्लांटों के पास सितंबर के अंत में
76 पर्सेंट कम था यह पिछले साल के मुकाबले
63% से ज्यादा बढ़े इंडियन एनर्जी एक्सचेंज पर स्पॉट पावर के दाम
20,000 मेगावॉट डिमांड, सप्लाई 18,000 मेगावॉट
यूपी में बिजली सप्लाई का काम देखने वाली संस्था एसएलडीसी के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक मौजूदा समय में पीक ऑवर में बिजली की डिमांड 20,000 से 21,000 मेगवॉट है। मगर एक्सचेंज से महंगी बिजली लेने के बाद भी 18,000 मेगावॉट तक की ही सप्लाई हो पा रही है। वहीं, उपभोक्ताओं को बिजली सप्लाई करने के लिए पावर कॉरपोरेशन 15 से 20 रुपये प्रति यूनिट तक बिजली खरीद रहा है। इसका असर नए टैरिफ में भी देखने को मिल सकता है।
भारत में बिजली का संकट क्यों गहराया?
देश की 70 फीसदी बिजली, कोयले से चलने वाले पावर प्लांट्स से ही बनती है। कोरोना प्रतिबंधों को हटने के बाद से आर्थिक गतिविधियां फिर से तेज हो गई हैं, जिससे बिजली की मांग बढ़ी है। इसके उलट देश के कोयला उत्पादन में कमी आई है। भारत अपनी जरूरत का 75 फीसदी कोयला खुद ही निकालता है, लेकिन भारी बारिश और कोयले की खानों में पानी भरने की वजह से उनमें खनन कार्य नहीं हो पा रहा है।
क्या असर होगा इस संकट का?
भारत के कोयला भंडार में आई कमी से यह चिंता खड़ी हुई है। इससे न केवल इकोनॉमी प्रभावित होगी, बल्कि बिजली के दाम भी बढ़ सकते हैं। क्रिसिल के इंफ्रास्ट्रक्चर अडवायजरी, प्रणव मास्टर के अनुसार कस्टमर्स को बिजली की कीमतों में बढ़ोतरी का सामना कुछ महीने बाद करना पड़ सकता है। बिजली वितरण कंपनियों को दाम बढ़ाने के लिए रेगुलेटर से मंजूरी मिल सकती है।
कब तक हालात सुधरने के आसार हैं?
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार, जब तक कोयले की सप्लाई स्थिर नहीं हो जाती, तब तक कुछ पॉकेट्स में पावर ठप होने की समस्या देखने को मिल सकती है। बारिश का सीजन खत्म होने के बाद ही इसमें स्थिरता आने की उम्मीद है। वहीं अगले साल मार्च तक पावर प्लांट्स के पास कोयले का स्टॉक बेहतर होने की उम्मीद है।
संकट से उबारने की क्या कोशिश हो रहीं?
सरकार ने पावर प्लांट्स तक कोयले की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए कोयला इस्तेमाल करने वाले दूसरे अहम सेक्टर की सप्लाई घटाई है। इनमें एल्युमिनियम और स्टील इंडस्ट्री शामिल हैं। सप्लाई बढ़ाने के लिए सरकार ने कैप्टिव खदानों से निकले कोयले के 50 फीसदी हिस्से की बिक्री करने की इजाजत दी है जिसे अब पावर प्लांट खरीद सकेंगे। कैप्टिव खदान कंपनियों की निजी खदानें होती हैं जिनसे निकला कोयला सिर्फ कंपनियों के उपभोग के लिए होता है। ऊर्जा सचिव आलोक कुमार ने हालात जल्द बेहतर होने की उम्मीद जताई है।
दुनिया में कितनी खराब है हालत?
बिजली की बढ़ती मांग से उपजा संकट भारत से बाहर भी कई देश झेल रहे हैं। मसलन, यूरोप में नेचुरल गैस के दाम इस साल की शुरुआत से अब तक 400% तक बढ़ गए हैं, वहीं बिजली के दाम 250% तक बढ़े हैं। चीन में बिजली संकट की वजह से बीते 18 माह में पहली बार फैक्ट्री उत्पादन गिरा है। मांग बढ़ने से कोयले के दाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी बढ़ गए हैं। इस कारण विदेश से कोयला खरीदने में भारत को चीन से कंपिटिशन करना पड़ रहा है जो कि कोयले का सबसे ज्यादा उपभोग करता है। भारत कोयले के आयात, उत्पादन और उपभोग के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर है। हालांकि यहां पर दुनिया के चौथे सबसे बड़े कोयला भंडार हैं, तब भी इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका से इंपोर्ट करना पड़ता है। चीन से कोयले की भारी डिमांड के कारण इन देशों ने कोयले के दाम बढ़ा दिए हैं।