गली गली कुत्तों की भरमार,नगर निगम कर रहा गायों पर प्रहार,क्या गायों को कटने के लिए छोड दें गौपालक?
रतलाम,12 सितम्बर (इ खबरटुडे)। शहर की गली गली में कुत्तों की भरमार है,लेकिन नगर निगम कुत्तों को छोड कर गायों पर प्रहार करने में लगा है। नगर निगम की इस तुगलकी कार्यवाही ने गौ पालकों के सामने बडा प्रश्न खडा कर दिया है कि क्या वे अपनी गायों को कटने के लिए छोड दें? एक ओर शहर के दर्जनों नागरिक आवारा कुत्तों के काटने से घायल होकर इंजेक्शन लगवा रहे है,दूसरी ओर नगर निगम शहर के गौ पालकों को नोटिस देकर उनके बाडे तोडने की तैयारी में लगी है। इस पूरे मसले पर हिन्दूवादी जनप्रतिनिधियों की चुप्पी भी आश्चर्यचकित करने वाली है।
जिला प्रशासन के निर्देश पर नगर निगम ने पिछले कुछ दिनों से शहर में हो रहे पशुपालन को अवैध घोषित करते हुए नगर निगम सीमा में बनाए गए गाय भैसों के बाडे तोडने की कार्यवाही प्रारंभ की है। यह बात व्यावसायिक तौर पर गौपालन करने वाले लोगों के लिए होती तब तक तो ठीक हो सकता था,लेकिन नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग ने उन गौपालकों को भी नोटिस दे दिए है,जो श्रद्धावश अपने घरों में गाय पाल रहे है। नगर निगम द्वारा शहर के चार झोन में कुल 149 पशुपालकों को उनके गायों के बाडे तोडने का फरमान सुनाया है।
गाय को माता कह कर पूजने वाले भारत में कई साधु संत अपने प्रवचनों में उपदेश देते है कि भारत के लोगों को अपने घरों में कुत्ता पालने की बजाय गाय पालना चाहिए। कई ऐसे श्रद्धालु है जो वास्तव में गाय को अपनी श्रद्धा के कारण ही पालते है। ऐसे लोगों के घरों में गाय न सिर्फ उनके परिवार के सदस्य के रुप में रहती है,बल्कि सम्मानित भी की जाती है।
लेकिन नगर निगम ने शहर के तमाम गौपालकों को एक ही लाठी से हांक दिया है। नगर निगम द्वारा दिए गए नोटिस में करीब आधी संख्या उन लोगों की है,जिनके पास केवल एक या दो गायें है। गौपालन और पशुपालन के व्यवसाय की समझ रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि एक या दो गायों से दूध का व्यवसाय संभव नहीं है। दूध का व्यवसाय करने के लिए गायों की बडी संख्या आवश्यक होती है। नगर निगम ने जिन 149 पशुपालकों को नोटिस दिए है,उनमें मात्र तीन ऐसे पशुपालक है,जिनके पास गायों की संख्या दो अंकों से अधिक है। जबकि उन गौपालकों की संख्या कई गुना है जिनके पास केवल एक,दो या तीन गायें है और उनके बछडे भी है।
नगर निगम के नोटिस से उनक गौपालकों के सामने बडा प्रश्न खडा हो गया है,जिनके घरों में गाय परिवार के सदस्य के रुप में है। अब वे अपनी गाय का क्या करें। नगर निगम के तुगलकी फरमान ने शहर में गाय पालने को ही अवैध घोषित कर दिया है। अब गौभक्त क्या अपनी गौमाताओं को कटने के लिए छोड दें।
नगर निगम में व्याप्त नासमझी की बानगी यह है कि जिस समय पूरे शहर में आवारा कुत्तों का आतंक छाया हुआ है,उस समय में कुत्तों पर नियंत्रण करने की बजाय नगर निगम गायों के पीछे पड रहा है। कल ही आवारा कुत्तों ने एक नन्ही बालिका को लहुलुहान कर दिया था। शहर में आए दिन कुत्तों द्वारा नागरिकों पर हमला करने की घटनाएं हो रही है। नगर निगम में कुत्तों को नियंत्रित करने की किसी योजना पर कोई चिन्तन नहीं हो रहा है,लेकिन निरीह गायों को कसाईयों के यहां भिजवा देने की योजना जरुर बनाली गई है।
इतना ही नहीं शहर में इन दिनों सुअर भी पनपने लगे है। आने वाले कुछ ही दिनों में शहर में सुअरों की समस्या भी विकराल रुप धारण कर लेगी। सुअरों की समस्या को यदि अभी शुरुआती समय पर ही नियंत्रित कर लिया गया तो ही इस पर काबू पाया जा सकता है। लेकिन नगर निगम के अफसरों को सुअरों के बढने की कोई चिंता नहीं है।
जनप्रतिनिधियों का मौन
इस पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाला रवैया जनप्रतिनिधियों का है। प्रदेश में स्वयं को हिन्दूवादी पार्टी बताने वाली भाजपा का राज है। रतलाम में भी जनप्रतिनिधि भाजपा के ही है। इसके अलावा शहर में तमाम हिन्दू संगठन सक्रिय है। लेकिन तमाम के तमाम नेता और संस्थाएं चुप्पी साधे बैठे है। कोई भी प्रशासन और नगर निगम से यह पूछने को तैयार नहीं है कि घर में कुत्ते की बजाय गाय पालना अपराध कैसे हो गया?