Raag Ralami Office Meeting – साहब कुछ भी कहे बाबूओं के भरोसे ही चल रहा है जिले का पूरा इंतजामिया,बदलावों के पीछे लेन देन का हिसाब
-तुषार कोठारी
रतलाम। हर मंगलवार को इंतजामिया के बडे साहब टीएल की मीटींग करते है। जिले के तमाम अफसरान इसमें हाजिरी लगाते है और बडे साहब अपने मातहतों को इंतजामियां को सही ढंग से चलाने के नुस्खे देते है। पिछले हफ्ते बडे साहब ने अपने तमाम मातहतों को फरमाया कि दफ्तर बाबूओं के भरोसे नहीं चलना चाहिए। जनता को दिखना चाहिए कि दफ्तर में अफसर है और अफसर जनता की भलाई के लिए है। लोगों को सिस्टम में भरोसा होना चाहिए कि उनका काम बगैर सिफारिश के हो सकता है।
बडे साहब मुख्यालय में बिराजते है,लेकिन जिले के दूर दराज के गांवों का इंतजाम देखने के लिए तैनात तहसीलदार और उनके नायबों के लिए बडे साहब के उपदेश खाली सुनने के काम के है। अगर वो साहब के उपदेशों पर सचमुच में अमल करने लग जाएं तो कमाई का क्या होगा? अगर बाबूओं के भरोसे नहीं रहेंगे,तो लेन देन कैसे होगा? ये सारे काम तो बाबूओं के ही जिम्मे होते है। इसी में अफसर की सुरक्षा भी निहित होती है। कभी कोई फितरती लेन देन के पहले लोकायुक्त वालों को बुला लें तो कम से कम अफसर तो सुरक्षित रहेगा।
दूर की बात तो छोडिए,रतलाम के ही देहाती इलाकों में नामान्तरण और बंटवारे के मामलों में दफ्तरों में जमकर वसूली हो रही है। छोटे से छोटे काम के लिए दर्जनों चक्कर लगाना और बाबूओं के हाथ पांव जोडना दफ्तरों की संस्कृति बन चुकी है। टीएल मीटींंग वैसे तो टाइम लिमिट वाले यानी समयावधि वाले मामलों की समीक्षा की मीटींग कही जाती है,लेकिन इंतजामियां के अफसरों की वजह से इसका मतलब ही बदल गया है। टीएल का मतलब अब टाइम लिमिट नहीं बल्कि टालो लटकाओ हो गया है। टीएल के अधिकांश मामलों को मातहत टालो लटकाओं की तर्ज पर चलाते है।
बडे साहब ने मीटींग में मातहतों को जो निर्देश दिए है,उनका असर कब तक होगा कितना होगा? यही देखने वाली बात है। बडे साहब ने जो निर्देश दिए है,उन्होने तो सचमुच में सिस्टम बदलने के लिए दिए है,लेकिन देखना यही है कि वे इसको कितना लागू करवा पाते है? दूर दराज के इलाकों में अफसरी झाड रहे तहसीलदारों और नायबों को वे कितना बदल पाते है। सरकारी बाबू राज को बदल पाना कोई आसान काम नहीं है। कोरोना से जंग में जीत के झण्डे गाड चुके बडे साहब ने अगर बाबू राज पर अंकुश लगा दिया,तो ये किसी चमत्कार से कम नहीं होगा।
जिनके फटकने तक पर थी रोक,वे ही बन गए खास
जिला पंचायत की बड़ी मैडम को जिला पंचायत की कमान संभाले हुए काफी समय हो गया है। धीरे-धीरे इन मोहतरमा ने पुराने वाले बड़े साहब (इनके पहले वाले) के कार्यकाल में जो-जो कर्मचारी जिला पंचायत से बाहर हुए थे उन्हें वापस कार्यालय बुला लिया है। इनमें से एक तो ऐसे हैं जो भोपाल जाने वाले साहब के पहले रहे साहब जो कि अब पड़ोसी जिले के जिलाधिकारी है उनके समय से ही लगातार विवादों में रहे हैं, यहां तक कि उनकी शिकायतें प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री तक हो चुकी थी। भोपाल जाने वाले तत्कालीन बड़े साहब ने तो जिला पंचायत में इनके फटकने तक पर रोक लगाकर पड़ोस की जनपद में अटैच कर दिया था, लेकिन जैसे ही जिला पंचायत की कमान मोहतरमा के हाथों में आई तो विवादों में रहने वाले कर्मचारी ने ऐसा जादू चलाया कि वह जिला पंचायत की न्यायालय शाखा के नए रीडर बन चुके हैं। ऐसे में सवाल यह उठता हैं कि मोहतरमा ने इन्हें फीट करने के पहले किसी से जानने की कोशिश नहीं की या सबकुछ जानते हुए भी इन्हे फिट किया। समझदार लोग जानते है कि जब अफसर सबकुछ जानते हुए भी किसी को अधिक महत्त्व देता है तो इसके पीछे क्या कारण होते है। यहां तक भोपाल जाने वाले बड़े साहब के कार्यकाल के दौरान ओएस का पद संभालने वाले अधिकारी को भी अपने पुराने दिन याद दिलाते हुए उनकी भी कुर्सी बदलने के साथ अन्य कर्मचारियों की भी टेबले बदल दी है। इतने सारे बदलावों को देखकर जानकर लोग लेन देन का हिसाब लगा रहे है।
आयुष पर अफसरी भारी
बडे साहब ने तो मंगलवार को अपने मातहतों को ठीक से काम करने के निर्देश दिए थे,लेकिन रावटी की तहसीलदार मैडम ने तो सोमवार को ही अपनी अफसरी के जलवे दिखा दिए। उनकी अफसरी का खामियाजा नायन गांव और उसके आसपास के कई गांवों के लोग तो भुगत ही रहे हैैंआयुष महकमे के कर्मचारी भी घबराए हुए है। बडे साहब ने मंगलवार को अपने मातहतों से कहा था कि वे हर महीने राशन दुकानों का मुआयना करें। लेकिन रावटी वाली मैडम एक दिन पहले ही मुआयने पर निकल पडी थी। राशन दुकान बन्द मिली तो उनका कहर आयुष अस्पताल पर जा टूटा। वहां मौजूद कम्पाउण्डर को मैडम ने इतना चमकाया कि वो बन्दा अस्पताल पर ताला जडकर वहां से चलता बना। मैडम का फरमान था कि बगैर डाक्टर के अस्पताल नहीं चलेगा। अस्पताल बन्द है और गांव के लोग परेशान है। आयुष वाली मैडम ने रावटी की मैडम जी से गुहार लगाई,फिर उनसे उपर वाली मैडम को भी गुहार लगाई कि पूरे सूबे में आयुष के अस्पताल ऐसे ही चल रहे है। लेकिन ना तो छोटी मैडम मानी और ना उनसे बडी वाली मानी। नतीजा ये है कि आयुष के तमाम कर्मचारी घबराए हुए है। महकमें का एक आदेश पहले जारी हुआ था कि डिस्पेंसरी कम्पाउण्डर चला सकते है। इस आदेश की कापी महकमे ने सभी कर्मचारियों को दे दी है कि अगर कोई पूछे तो इसे बता दिया जाए। लेकिन इंतजामिया के आला अफसरों ने अब तक इस मामले पर नजर तक नहीं डाली है और सैकडों लोग इलाज के इंतजाम से महरुम है।