Raag Ratlami Black Market – चल पडा हजार को तीस हजार करने का खेल,सफेद कोट और सरकारी कारिन्दों की जुगलबन्दी पर जरुरी है नकेल
-तुषार कोठारी
रतलाम। हजार रु. का इंजेक्शन तीस और पैैंतीस हजार में मिले तो समझिए कि कोरोना चल रहा है। पहले तो रतलाम वाले बडे बडे शहरों की खबरें सुन रहे थे,न्यूज चैनलों के स्टिंग आपरेशन देख रहे थे। रतलाम वालों को पता नहीं था कि रतलाम किसी भी मामले में पीछे रहने वाला नहीं है। टीवी और अखबारों की खबरें अब रतलाम में भी बनने लगी है। मुंबई,दिल्ली और दूसरे महानगरों की तरह ही रतलाम में भी इंजेक्शन का यही रेट हो गया है। बडे शहरों की ही तरह वर्दी वाले भी बेहद स्मार्ट हो गए है। वर्दी वालों को खबर मिली और उन्होने फौरन अस्सी फीट रोड से दो सफेद कोट वालों को धर दबोचा। ये सफेद कोट वाले अभी सफेद कोट पहनने के पूरी तरह हकदार भी नहीं बने है।
शहर की अस्सी फीट रोड और उस पर बना जीवन दायक अस्पताल दोनो अब छाये हुए है। वर्दी वालों ने इसी अस्पताल से उन दो नकली सफेद कोट वालों को पकडा था,जो हजार के तीस हजार कर रहे थे। इन दोनो के अलावा एक तीसरा भी था,लेकिन वो रतलाम का नहीं था। उसकी तलाश की जा रही है। लेकिन इस पूरे वाकये ने कई सारे सवाल खडे कर दिए है,जिनके जवाब ढूंढना जरुरी है।
कोरोना के संकट काल में सिर्फ दो ही चीजों की मांग है। आक्सिजन और इंजेक्शन(रेमेडीसिविर)। दोनो की किल्लत होने लगी तो इनका सारा इंतजाम,अफसरों ने अपने हाथों में ले लिया। इंजेक्शन की फैक्ट्री से लगाकर डिस्ट्ीव्यूटर,डीलर,होलसेलर और दुकानदार तक सब पर पहरे लगे हुए है। इंजेक्शन गिने चुने आ रहे है और दुकानों की बजाय सीधे मरीजों तक पंहुचाए जा रहे है। दवाई महकमे की मोहतरमा खुद अस्पतालों में जाकर इंजेक्शन बांट रही है। यानी कि इंजेक्शन बनाने वाली फैक्ट्री से लगाकर अस्पताल में भर्ती मरीज तक इंजेक्शन पंहुचने के अलावा इंजेक्शन कहीं जा ही नहीं सकता। तो फिर ये इंजेक्शन बाहर बिकने के लिए कैसे और कहां से पंहुच रहे हैैं।
जानकारों ने इसका एक ही तरीका बताया है। इसका एकमात्र तरीका यह है कि अस्पताल के सफेद कोट वाले और सरकारी अफसर आपस में मिल जाए। दोनो की मिलीभगत होगी तो किसी भी अस्पताल में इंजेक्शन की जरुरत बढाई जा सकती है। वास्तव में दस मरीजों को इंजेक्शन चाहिए और सफेद कोट वाले सरकारी अफसर से मिल कर दस की बजाय बीस मरीजों को इंजेक्शन की जरुरत बता दें,तो बडी आसानी से दस इंजेक्शन हासिल किए जा सकते है और फिर हजार के तीस हजार करने में कोई दिक्कत नही।
बडा सवाल यह भी है कि इंजेक्शन की कालाबाजारी के इस खेल में क्या तीन ही लोग शामिल रहे होंगे? फिलहाल वर्दी वालों ने तीन ही लोगों पर केस दर्ज किया है। जिस अस्पताल में यह खेल हो रहा था,उस अस्पताल को चलाने वालों को क्या इसकी जानकारी नहीं होंगी? जानकारों की माने,तो कालाबाजारी का खेल तो शुरु ही सफेद कोट वालों से होता है। पहले मरीज को डराया जाता है,फिर उससे कहा जाता है कि वो खुद इंजेक्शन का इंतजाम करें। बेचारा मरीज और उसके साथ वाले इंतजाम कहां से कर पाएंगे। वो बेचारे सफेद कोट वाले साहब के ही हाथ जोडते है,कि सर जैसे भी हो आप ही इंतजाम करवाईए। फिर साहब एहसान जताते हुए कहते है कि एक बन्दा है,आप उससे बात कर लो। जब उससे बात होती है,तो वह हजार के पैैंतीस हजार बताता है। फिर एहसान जताते हुए पांच हजार इस बात के कम कर देता है कि आपके लिए साहब ने कहा था। मतलब साफ है कि साहब के कहने पर ही इंतजाम होता है।
शहर के कई सारे सफेद कोट वाले जहां जीवनदाता बने हुए है और खतरों के बीच मरीजों को बचाने में लगे है,वहीं कुछ इसी अवसर को भुनाने में जुटे है। इंतजामिया के बडे साहब को इस ओर खास ध्यान देना चाहिए कि जब इंजेक्शन बाहर जा ही नहीं सकता,तो बाहर निकला कैसे? वो कौन से सरकारी कारिन्दे है,जिनकी सफेद कोट वालों से जुगलबन्दी बन चुकी है,जिसकी वजह से लोगों को हजार के पैैंतीस हजार करने का मौका मिल रहा है? सफेदकोट और सरकारी कारिन्दों की इस जुगलबन्दी पर नकेल लगाए बिना ये धन्धा नहीं रुकने का।