राहुल गाँधी की संघ पर टिप्पणी ,पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुकर्जी के विवेक को चुनौती देने का प्रयास
-डॉ. रत्नदीप निगम
आज कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने अपनी अज्ञानता अथवा ये कहे कि अपने सलाहकारों के द्वारा प्राप्त ज्ञान का प्रदर्शन करते हुए विश्व के सबसे बड़े सामाजिक , सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में कुछ तुलनात्मक एवम कुछ आरोपात्मक टिप्पणी की । उन्होंने इस्लामिक धर्म के वहाबी सम्प्रदाय के मक्का पर नियंत्रण की तुलना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से करते हुए कहा कि जिस तरह कट्टर वहाबी सम्प्रदाय का मक्का पर नियंत्रण है ठीक उसी तरह देश के संस्थानों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नियंत्रण हो गया है । इस टिप्पणी को व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाए तो राहुल गाँधी ने अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार किया कि इस्लाम में कई सम्प्रदाय हैं , और वहाबी सम्प्रदाय कट्टरपंथी है । जबकि उनकी पार्टी और सेकुलरिज्म के स्वयम्भू ठेकेदार अभी तक मुस्लिम के भीतर इस तरह के विभाजन को कभी भी खुलकर स्वीकार नहीं करते थे , जो आज राहुल गाँधी ने स्वीकार कर मुसलमानों के मध्य विभाजन को इंगित किया । दूसरी अप्रत्यक्ष स्वीकारोक्ति यह है कि जब वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा देश के संस्थानों पर नियंत्रण की ओर इंगित करते हैं तो वे स्वीकार करते हैं है कि अब देश मे एवम देश के संस्थानों पर वामपंथी प्रभाव समाप्त हो गया है, जो कि उनकी माताजी अर्थात श्रीमती सोनिया गाँधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के वामपंथी समूह के पराभव का संकेत है । दूसरी एक टिप्पणी राहुल गाँधी ने करते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी एक विचारधारा आधारित पार्टी है,यह कहकर उन्होंने पूर्ण शीर्षासन ही कर लिया । जबकि सर्वविदित है कि भारत की स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेस पार्टी का विरोध तत्कालीन समय की समस्त विचारधारा के लोग करते आ रहे हैं ,चाहे वो समाजवादी,हिंदुत्व आधारित दल हो अथवा कम्युनिस्ट । सभी विचारधाराओं ने कांग्रेस का विरोध किया , परन्तु आज तक कांग्रेस की कौनसी विचारधारा है , ये पता नहीं चला । राहुल गाँधी भी आज यह बता नहीं पाए कि वो कांग्रेस की कौनसी विचारधारा का उल्लेख कर रहे थे । इतिहास की दृष्टि से देखें तो आपातकाल के समय कम्युनिस्ट पार्टी और इंदिरा गाँधी में आपातकाल का समर्थन करने की शर्त पर एक समझौता हुआ था कि देश के सभी संस्थाओं पर वामपंथी विचारधारा के व्यक्तियों को स्थापित किया जाए और उन संस्थानों को इंदिरा शासन द्वारा सरंक्षण प्रदान किया जाए । इस समझौते के बाद श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस कार्यकारिणी को संबोधित करते हुए कहा कि न्यायपालिका , अकादमिक संस्थान एवम नौकरशाही को सत्ता के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए । शायद कांग्रेस कार्यकारिणी के समक्ष हुए इस उदबोधन का ज्ञान कांग्रेस के इतिहासकारों ने कभी राहुल गाँधी को नहीं दिया ।
आपातकाल को लेकर भी एक तुलनात्मक टिप्पणी राहुल गाँधी ने की । उन्होंने उनकी दादी और कांग्रेस पार्टी की ओर से देश की प्रधानमंत्री रही श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा देश मे लगाए गए आपातकाल को उनकी भूल मानते हुए वर्तमान शासन से उस आपातकाल की तुलना करते हुए अंतर प्रस्तुत किया । उन्होंने कहा कि आपातकाल भूल तो था लेकिन वर्तमान शासन में स्तिथियाँ तत्कालीन आपातकाल से भी अधिक विकट और गंभीर है । राहुल गाँधी को शायद इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा को प्रधानमंत्री कार्यालय से दी गयी वो धमकी नहीं बताई गई कि यदि इंदिरा जी के विरुद्ध यदि फैसला आया तो आपकी पत्नी को कह देना कि इस बार वो करवाचौथ का व्रत न करें ।शायद उन्हें यह किसी ने नहीं बताया कि कांग्रेस के कार्यक्रम में गाने से मना करने पर किशोर कुमार के गाने रेडियो पर प्रतिबंधित कर दिए गए थे । वैसे तो देश जानता है कि कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के भावी उम्मीदवार राहुल गाँधी का इतिहास बोध कितना नगण्य है लेकिन प्रश्नचिन्ह यह है कि केवल राहुल गाँधी का ही नहीं अपितु कांग्रेस पार्टी पर प्रभुत्व जमाये बैठे वामपंथी पत्रकारों एवं इतिहासकारों का भी इतिहास बोध शून्य हो गया है क्या ?
राहुल गाँधी की आज की तुलनात्मक और आरोपात्मक दोनों ही टिप्पणीयां उनकी और उनके सलाहकारों की कुंठा की अभिव्यक्ति के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था क्योंकि सत्ता पर प्रश्न करके विमर्श स्थापित करना तो लोकतंत्र में प्रतिपक्ष का उत्तरदायित्व है लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर अनावश्यक टिप्पणी कर पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के विवेक को चुनौती देने का अप्रत्यक्ष प्रयास देश के संस्थानों से निर्वासित किये गए उन लोगों का षडयंत्र दिखाई देता है जो वास्तव में देश के भीतर अराजकता को स्थापित करना चाहते हैं ।