Lokendra Bhawan: रतलाम की ऐतिहासिक धरोहर लोकेन्द्र भवन पर मण्डराया अस्तित्व का खतरा, स्वत्व निर्धारण के बिना ही अवैध तरीके से बेची जा रही है जमीनें
रतलाम,05 जनवरी (इ खबरटुडे)। रतलाम की तमाम ऐतिहासिक धरोहरें नष्ट होने की कगार पर है। रतलाम का राजमहल हो या बेशकीमती लोकेन्द्र भवन Lokendra Bhawan। इन सभी पर भूमाफियाओं की गिद्ध दृष्टि लगी हुई है। ताजा मामला लोकेन्द्र भवन के आसपास की जमीनों को बेचे जाने का है,जबकि ना तो बेचने वाले को इसका कानूनी अधिकार है और ना ही बच्चों के उद्यान के लिए आरक्षित इस भूमि को बेचा जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि रतलाम के अंतिम महाराजा लोकेन्द्र सिंह और महारानी प्रभाराज्य लक्ष्मी की निस्संतान मृत्यु के बाद रतलाम की तमाम राज सम्पत्तियों पर भूमाफियाओं की गिद्ध दृष्टि लगी हुई है। नियमानुसार तो महाराजा और महारानी की निस्संतान मृत्यु के बाद कोई जीवित उत्तराधिकारी नहीं होने से तमाम राजसम्पत्तियों को शासन में वैष्ठित कर लिया जाना चाहिए था,लेकिन तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारियों और भू माफियाओं की मिलीभगत से कई बेशकीमती जमीनों और राजमहल का बहुमूल्य सामानों की धडल्ले से अफरा तफरी कर दी गई।
रतलाम महाराज द्वारा बनवाए गए लोकेन्द्र भवन की कहानी भी कुछ इसी तरह की है। राजसम्पत्तियों को लेकर चल रहे विवाद में तत्कालीन एसडीएम ने लोकेन्द्र भवन विवादित सम्पत्ति घोषित करते हुए दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 के तहत इस पर रिसीवर नियुक्त कर दिया था। रिसीवर की नियुक्ति के बाद ना तो लोकेन्द्र भवन के स्वरुप में परिवर्तन किया जा सकता था और ना ही इसका क्रय विक्रय संभव था। लेकिन राजसंपत्तियों पर नज़रे गड़ाए बैठे भू माफियाओ ने इसका भी तोड़ निकाल लिया और विवाद के पक्षकारो के बीच एक राजीनामा बनाकर इसे सुपुर्दगी में ले लिया गया । नियमानुसार किसी विवादित सम्पत्ति की सुपुर्दगी केवल इसी आधार पर दी जाती है कि सुपुर्दगीदार ना तो सम्पत्ति का क्रय विक्रय करेगा ना ही इसके स्वरुप में कोई परिवर्तन करेगा। लेकिन शहर के चर्चित भू माफिया ने सुपुर्दगीदारो से मिलजुल कर लोकेन्द्र भवन का विक्रय इंदौर की सुवि इंफोटेक नमक कंपनी को करवा दिया।
इस मामले में हो हल्ला मचने पर तत्कालीन कलेक्टर ने इसकी रजिस्ट्री पर रोक लगा दी थी। इस रोक के खिलाफ क्रेता विक्रेता ने इन्दौर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। इन्दौर हाईकोर्ट ने रजिस्ट्री पर लगाई गई रोक को इस आधार पर हटा दिया था कि रजिस्ट्री होने से स्वत्व का निर्धारण नहीं हो जाता। इसका अर्थ यह था कि लोकेन्द्र भवन का वास्तविक मालिक कौन है यह रजिस्ट्री के आधार पर तय नहीं किया जा सकता। इसका निर्धारण न्यायालय की प्रक्रिया से होगा और न्यायालय द्वारा यदि इसकी मालकियत विक्रेता के अतिरिक्त किसी अन्य की पाई गई तो रजिस्ट्री स्वयं शून्य हो जाएगी। उच्च न्यायालय के आदेश से स्पष्ट था कि सुपुर्दगी के आधार पर कराई गई रजिस्ट्री से क्रेता सुवि इंफोटेक लोकेन्द्र भवन का मालिक नहीं बन सकता।
बेची जा रही है पार्क की जमीन
लोकेन्द्र भवन को सुवि इंफोटेक को बेचे जाने के बाद चर्चित भू माफिया राजेंद्र पितलिया ने बड़ी चालाकी से सुवि इंफोटेक कम्पनी ही खरीद ली। सुवि इंफोटेक का मालिक बन जाने से लोकेन्द्र भवन की मालकियत भी पितलिया की हो गई। इस सारी मशक्कत के बाद अब लोकेन्द्र भवन से लगी खुली जमीनों को बेचने का सिलसिला चालू हो गया है। इ खबर टुडे को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक चिल्ड्रन पार्क के लिए आरक्षित जमीन में से एक भूखंड बेचा भी जा चूका है। जबकि लोकेन्द्र भवन से लगी इन जमीनों को बच्चों के उद्यान के रुप में आरक्षित किया गया है। इस खुली भूमि को तो किसी भी स्थिति में बेचा नहीं जा सकता।
नगर एवं ग्राम निवेश विभाग द्वारा जिला प्रशासन को दिए गए एक प्रतिवेदन में स्पष्ट तौर पर बताया गया है कि लोकेन्द्र भवन की 27675 वर्ग फीट खुली भूमि चिल्र्डन पार्क के लिए आरक्षित की गई है और यह भूमि नगर निगम को हस्तांतरित की जाना थी। नगर एवं ग्राम निवेश विभाग ने पहले ही इस आशय का आदेश जारी किया था कि चिल्र्डन पार्क के लिए आरक्षित 27675 वर्ग फीट भूमि का विक्रय नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद उक्त खुली भूमि का विक्रय सुवी इन्फोटेक के नाम पर कर दिया गया था। अब इस भूमि के छोटे भूखण्ड बनाकर बेचे जा रहे है। जो क्रय विक्रय पहले ही अवैध था,वह अब वैध कैसे हो सकता है? लेकिन इसके बावजूद न्यायालयीन आदेशों की गलत तरीके से व्याख्या करके अवैध तरीके से जमीनें बेची जा रही है,जबकि अभी तक लोकेन्द्र भवन के स्वामित्व का ही अंतिम निर्णय नहीं हुआ है।
इस प्रकार के अवैध विक्रय पर प्रशासन द्वारा तुरंत रोक लगाई जाना चाहिए,जिससे कि रतलाम की ऐतिहासिक धरोहरों को बचाया जा सके।