मध्यप्रदेश में बदली खेती-किसानी की फ़िजा
अनाज भण्डार हुआ लबालब,प्रदेश खेती में बना देश का सिरमौर,गेहूँ उत्पादन में प्रदेश देश में दूसरे नम्बर पर,कुल अनाज उत्पादन में भी सबसे आगे
भोपाल 6 सितम्बर (इ खबरटुडे)। मध्यप्रदेश में एक दशक पहले खेती-किसानी के पुश्तैनी काम से मुँह मोड़ते चल जा रहे किसान राज्य सरकार की पुरजोर कोशिशों के चलते अब फिर से पूरे जोश के साथ इस काम में जुटते जा रहे हैं। खेती को मुनाफे का धंधा बनाने के लिये की गई दो-तरफा कोशिशों से यह मुमकिन हुआ है। जहाँ एक ओर किसानी की लागत में कमी लाई गई वहीं इससे आमदनी में कारगर इजाफा किया गया। जहाँ एक ओर किसान ने बीते कुछ वर्षों में नई-नई तकनीकों को अपनाना शुरू किया है, वहीं खेती से जुड़े राष्ट्रीय कार्यक्रमों को राज्य सरकार ने पूरी शिद्दत के साथ अंजाम दिया है। अपनी उपलब्धियों के बूते मध्यप्रदेश ने दशकों से खेती-बाड़ी में देश में सबसे आगे रहने वाले पंजाब और हरियाणा जैसे सूबों को पीछे छोड़ दिया है।
उत्पादन
नतीजतन मध्यप्रदेश कुल अनाज के मामले में देश में अव्वल हो गया है। वर्ष 2003-04 में मध्यप्रदेश का कुल अनाज उत्पादन 2 करोड़ 20 लाख 87 हजार टन था, जिसके साल 2013-14 में 3 करोड़ 86 लाख टन से ज्यादा होने का अंदाज है। इसी तरह गेहूँ उत्पादन में उत्तरप्रदेश को पीछे छोड़ते हुए मध्यप्रदेश ने देश में दूसरा स्थान हासिल किया है। प्रदेश में वर्ष 2003-04 में गेहूँ का उत्पादन 73 लाख 65 हजार टन था, जबकि कृषि विभाग के अनुमान के मुताबिक साल 2013-14 में यह करीब 175 लाख टन होने जा रहा है।
उत्पादकता
उत्पादन ही नहीं उत्पादकता बढ़ाने में भी मध्यप्रदेश ने बड़ी कामयाबी हासिल की है। साल 2003-04 में कुल अनाज उत्पादकता 1,177 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी, जो साल 2013-14 में 1,614 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होने का अनुमान है। गेहूँ की उत्पादकता साल 2003-04 में 1,879 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी जो इस साल 2,602 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होने का अनुमान है।
देश में पहला मुकाम
मध्यप्रदेश ने बीते कुछ वर्षों में ऊँची कृषि विकास दर हासिल कर देश में पहला मुकाम हासिल किया है। साल 2012-13 में प्रदेश की कृषि विकास दर 20.16 और साल 2011-12 में 19.85 फीसदी रही। साल 2013-14 के अग्रिम अनुमान के अनुसार यह 24.99 फीसदी है।
एक बड़ी उपलब्धि है कि मध्यप्रदेश में 11वीं पंचवर्षीय योजना (2007-11) में कृषि विकास दर का लक्ष्य 2.5 फीसदी तय किया गया था। इसके बरक्स इस दौरान 9.04 फीसदी विकास दर हासिल की गई। इसकी तुलना में देश में सकल कृषि विकास दर का लक्ष्य 4 फीसदी था, जबकि हासिल सिर्फ 2.5 फीसदी की जा सकी।
दलहन, तिलहन और चना उत्पादन में तो मध्यप्रदेश पहले से ही गुवा है। इन उपलब्धियों के चलते मध्यप्रदेश को दो साल से भारत सरकार द्वारा लगातार प्रतिष्ठित कृषि कर्मण अवार्ड से नवाजा जा रहा है। इतना ही नहीं बीते तीन साल में किसानी में बड़ी उपलब्धियों के चलते देश में हरित क्रांति के जनक कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति की अनुशंसा पर प्रदेश को सर्वश्रेष्ठ कृषि राज्य श्रेणी में एग्रीकल्चर लीडरशिप अवार्ड भी मिला है।
खास कोशिशें
किसान पुत्र मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने पहले दिन से ही खेती को मुनाफे का धंधा बनाने के लिये कमर कसी हुई है। किसानों और किसानी की दिक्कतों से रू-ब-रू और उन्हें दूर करने में किसानों की सलाह लेने के लिये उन्होंने किसान महापंचायत बुलाई। पंचायत में किसानों ने खुलकर अपनी बात कही और मुख्यमंत्री ने एक के बाद एक उनकी सलाहों पर अमल शुरू कर दिया।
तकनीक
किसानों को बेहतर तकनीकों से वाकिफ करवाने के साथ-साथ उन्हें किसानी के अच्छे औजार भी मुहैया करवाये गये। प्रदेश के किसानों को नई तकनीक सीखने के लिये विदेशों में भी भेजा गया। प्रदेश में किसानों को महँगे कृषि यंत्रों का फायदा दिलाने के लिये कस्टम हायरिंग सेन्टर योजना शुरू की गई है। साथ ही कृषि यंत्रदूत योजना से भी किसानों को बेहतर तकनीक हासिल हो रही है।
अंतर्राष्ट्रीय संस्था नार्मन बोरलॉग, मेक्सिको के सहयोग से जबलपुर में स्थापित ‘सिमिट’ केन्द्र में मक्का पर अनुसंधान चल रहा है। जापान की संस्था ‘जायका’ प्रदेश के चुनिंदा जिलों में सोयाबीन पर अनुसंधान पर भागीदारी कर रही है। प्रदेश में विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है, जिसके साथ ही प्रदेश में अब कृषि के दो विश्वविद्यालय हो गये हैं।
छोटे और सीमांत किसानों के लिये खासतौर पर योजनाएँ बनाकर उन्हें लागू किया गया। उवर्रक के अग्रिम भण्डारण की व्यवस्था की गई। उवर्रक सीधे आयात कर किसानों को उपलब्ध करवाये गये। खेती-बाड़ी से जुड़े क्षेत्रों के बीच बेहतर तालमेल के लिये कृषि केबिनेट बनाई गई जिसके फैसले केबिनेट के फैसले माने जाते हैं।
सिंचाई सुविधाओं को बढ़ाने पर खास तवज्जो दी गई। बारिश के पानी के सिंचाई में बेहतर उपयोग के लिये बलराम तालाब जैसी अभिनव योजना शुरू की गई। प्रदेश ने 10 साल जहाँ कुल 7.50 लाख हेक्टेयर में सिंचाई होती थी, वहीं अब 27 लाख हेक्टेयर में सिंचाई हो रही है। बरसों से पड़ी अधूरी सिंचाई योजना को पूरा कर किसानों को सिंचाई सुविधा दी गई।