राग-रतलामी/ झाबुआ वाले साहब से परेशान है पंजा पार्टी के रतलामी नेता,माफिया की लडाई बनी एमओएस की जंग
-तुषार कोठारी
रतलाम। पंजा पार्टी में इन दिनों भारी उठापटक चल रही है। पंजा पार्टी के तीन नेताओं को हाल ही में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। बताते है कि इन तीनों ने झाबुआ वाले साहब के खिलाफ बयानबाजी की थी। इधर,रतलाम के पंजा पार्टी नेताओं को गुस्सा इस बात का है कि झाबुआ वाले साहब का अब रतलाम से कोई लेना देना नहीं बचा है लेकिन फिर भी वो रतलाम के हर मामले में अपनी टांग फंसाते है। यहां तक कि पंजा पार्टी में नया मुखिया भी उन्ही के एक प_े को बनाने की तैयारी चल रही है।
झाबुआ वाले साहब पहले कई सालों तक दिल्ली के दरबारी थे। जब वो दिल्ली के दरबारी थे,उस वक्त रतलाम भी इन्ही के इलाके में आता था। इस कारण से रतलाम के तमाम मामलों में उनकी घुसपैठ हुआ करती थी। लेकिन 2019 में दिल्ली दरबार के चुनाव के दौरान मतदाताओं ने उन्हे बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इसके बाद झाबुआ वाले साहब,झाबुआ का चुनाव लड कर भोपाल के दरबारी हो गए। अब रतलाम उनके इलाके में नहीं आता। अब उनका इलाका केवल झाबुआ है। लेकिन बरसों की लगी हुई आदत आसानी से छूटती नहीं है। वे बरसों तक रतलाम के मामलों में अपनी टांग अडाते रहे हैं,इसलिए अभी भी टांग अडाने की आदत बरकरार है।
इधर रतलाम के तीन नेताओं को लगा कि झाबुआ वाले साहब का अब रतलाम से कोई लेना देना नहीं है,इसलिए उन्होने झाबुआ वाले साहब की टांग अडाने वाली आदत से परेशान होकर उनके खिलाफ बयानबाजी कर दी। बस फिर क्या था,झाबुआ वाले साहब ने पंजा पार्टी में अपने रसूख का इस्तेमाल कर उन तीनों को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
बात यहीं खत्म नहीं हुई है। आने वाले दिनों में पंजा पार्टी के रतलामी मुखिया की तैनाती होने वाली है। पंजा पार्टी के तमाम रतलामी नेता इस कुर्सी पर नजरें गडाए बैठे है। लेकिन झाबुआ वाले साहब को इनमें से कोई पसन्द नहीं आ रहा है। उन्होने इस कुर्सी के लिए एक नए चेहरे को पसन्द किया है। ये नया बन्दा पंजा पार्टी में नया नया ही दिखाई दिया है। पंजा पार्टी के पुराने जमें हुए नेताओं का कहना है कि इतने जूनियर और नए आदमी को अगर मुखिया बना दिया जाएगा,तो पंजा पार्टी में भारी उठापटक होगी। झाबुआ वाले साहब के इस कदम से पंजा पार्टी के नेताओं में भारी नाराजगी है। लेकिन झाबुआ वाले साहब को इससे कोई फर्क नहीं पडता। पंजा पार्टी मजबूत रहे या पूरी तरह कमजोर हो जाए,उनकी बला से। उनकी खुद की सियासत चमकती रहना चाहिए। आने वाले दिनों में पंजा पार्टी की उठापटक देखने वाली रहेगी। तब तक इंतजार कीजिए।
माफिया बनाम एमओएस
भोपाली फरमान के बाद पूरे सूबे में माफियाओं के खिलाफ जोरदार कार्यवाहियां हुई। रतलाम के अमले ने भी बडी बडी डींगे हांकी कि यहां भी माफिया को नहीं बख्शा जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अमले की सुस्ती को लेकर जब खबरचियों ने हो हल्ला मचाया,तो अमला फिर से एक्शन में आता दिखा। इस बार अफसरों की मीटींगे हुई और बयान भी जारी हुए। बताया गया कि लिस्टे भी बन गई है। लिस्टों में जिनके नाम थे,उनमें से कुछ को नोटिस भी जारी कर दिए गए। लोगों में फिर उम्मीदें जगी कि अब कुछ ना कुछ तो होगा। लेकिन फिर मामला धरा का धरा रह गया। माफियाओं ने तो नोटिस लेकर जवाब तैयार करवा लिए और इधर अमले ने मकानों और दुकानों के एमओएस नापने शुरु कर दिए। एमओएस की नपती भी हिसाब किताब से की गई। यानी कि कुछ को छोडा गया,कुछ को नाप लिया गया। माफिया के खिलाफ चलने वाली मुहिम एमओएस मुहिम बन कर रह गई। माफियाओं की लिस्ट धरी की धरी रह गई। फिलहाल तो यही हाल है। आगे का पता नहीं। लोग कह रहे है कि भोपाली फरमान का फायदा अफसर उठा रहे है। माफिया की लडाई को एमओएस में बदल कर अपने अपने हित साधे जा रहे है।
मैडम की किताब में कमलनाथ
पांच साल शहर का कबाडा करने के बाद आखिरकार साल के आखरी दिन मैडम जी की बिदाई हो गई। आमतौर पर बिदाई के मौके पर बिदा करने वाले लोग समारोह करते हैं,लेकिन कोई राजी नहीं था,इसलिए उन्होने खुद ही अपना बिदाई समारोह आयोजित कर लिया। पांच साल में उनके पास बताने को कुछ ता नहीं,लेकिन बिदाई समारोह के लिए कुछ तो करना था। इसलिए लाखों रुपए खर्च करके एक किताब छपवाई गई। किताब में ऐसे तमाम कामों का हवाला दिया गया है,जो अभी या तो शुरु ही नहीं हुए हैं या पूरे नहीं हुए हैं। बहरहाल,इस किताब की ज्यादा चर्चा इसलिए है कि इसमें फूल छाप के साथ पंजा पार्टी के मुखिया कमलनाथ की तस्वीर भी लगाई गई है। लोग समझ नहीं पा रहे है कि इसका मतलब क्या है। क्या वे पंजा पार्टी छोड कर फूल छाप में आ रहे है या मैडम जी ने आगे की बटरिंग को ध्यान में रखकर उनका फोटो छपवाया है? लोग अपने अपने हिसाब से इसका मतलब निकाल रहे हैं।