November 20, 2024

आडवाणी का उदाहरण देकर कार्यकर्ताओं से बोली बीजेपी- विचारधारा से अलग जाने पर खोना पड़ सकता है पद

लखनऊ,16 जुलाई (इ खबरटुडे)। बीजेपी अपने काडर को विचारधारा की ट्रेनिंग दे रही है। पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए लगाए गए विशेष ट्रेनिंग कैंप में बीजेपी ने अपने काडर को विचारधारा के विपरीत जाने पर गंभीर परिणाम भुगतने की सख्त नसीहत भी दी है। इस ट्रेनिंग कैंप में कार्यकर्ताओं को यह सीख दी जा रही है कि पार्टी की कोर विचारधारा के खिलाफ जाने पर उन्हें पद से हटाया जा सकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के ट्रेनर इसके लिए किसी और का नहीं बल्कि बीजेपी के ‘पितामह’ लालकृष्ण आडवाणी का उदाहरण दे रहे हैं।

आडवाणी का दिया जा रहा है उदाहरण
ट्रेनिंग कैंप के दौरान कार्यकर्ताओं को बताया गया कि 2005 में पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को सेक्युलर बताने पर उन्हें बीजेपी के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था। यूपी बीजेपी के उपाध्यक्ष जेपी राठौड़ ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कोई भी शख्स विचारधारा से ऊपर नहीं है। उन्होंने बताया, ‘यही बात पार्टी काडर को बताई गई है। उन्हें बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के उदाहरण दिए गए हैं जिसमें आडवाणी जी भी शामिल हैं जिन्हें पार्टी विचारधारा से अलग बयान देने पर अध्यक्ष पद खोना पड़ा था।’ राठौड़ प्रदेश के सभी छह क्षेत्रों में आयोजित किए जा रहे प्रशिक्षण शिविरों की देखरेख कर रहे हैं।
आडवाणी ने पाक जाकर की थी जिन्ना की तारीफ
बता दें कि 2005 में आडवाणी ने पाकिस्तान जाकर जिन्ना को सेक्युलर बताया था। जिन्ना की मजार पर जाकर आडवाणी ने उन्हें ‘सेक्युलर’ और ‘हिंदू मुस्लिम एकता का दूत’ करार दिया था। इस बयान के बाद से आडवाणी से न सिर्फ अध्यक्ष पद छिना, बल्कि उन्हें पार्टी में भी कथित रूप से अलग-थलग कर दिया गया था।

पीएम उम्मीदवार भी बने, लेकिन वह बात नहीं रही
आडवाणी को कट्टर हिंदू राष्ट्रवादी नेता के तौर पर जाना जाता था, लेकिन पाकिस्तान में जिन्ना की तारीफ करना इस छवि के उलट था। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि उस एक प्रसंग से उनकी छवि ऐसी बिगड़ी कि फिर करियर में एक तरह से वह ढलान पर आ गए। पार्टी ने भले ही 2009 में उन्हें पीएम उम्मीदवार चुना था, लेकिन आडवाणी पहले जैसी रंगत में कभी न आ पाए। इस साल लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी ने उन्हें गांधीनगर से टिकट भी नहीं दिया, जिससे उनकी चुनावी राजनीति के सफर का भी अंत हो गया।
कल्याण सिंह का भी दिया गया उदाहरण
जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को दूसरा उदाहरण उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और अयोध्या आंदोलन के पोस्टर बॉय रह चुके कल्याण सिंह का दिया गया। 2009 में समाजवादी पार्टी (एसपी) को समर्थन देने की घोषणा के चलते उन्हें बीजेपी से बाहर होना पड़ा था। 2014 में वह दोबारा बीजेपी में शामिल हुए और राजस्थान के राज्यपाल नियुक्त हुए। राठौड़ ने बताया, ‘ऐसे कई मामले हैं। कभी गुजरात बीजेपी के वरिष्ठ नेता रह चुके शंकरसिंह वाघेला आज कहां हैं? कहीं नहीं।’

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