November 20, 2024

अलौकिक अनुभूतियों का क्षेत्र है कैलास मानसरोवर,इसे शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं -धर्मेन्द्र जाट

रतलाम,12 जुलाई (इ खबरटुडे)। कैलास को ब्रम्हांड का केन्द्र माना जाता है। इस क्षेत्र में आकर जो दिव्य और अलौकिक अनुभूति होती है,उसे शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं है। यह कहना है हाल ही में कैलास मानसरोवर की यात्रा से लौटे धर्मेन्द्र जाट का। पुलिस विभाग में कार्यरत श्री जाट अपने एक साथी राहूल जाट के साथ नाथूला के रास्ते कैलास मानसरोवर की यात्रा पर गए थे।
कैलास मानसरोवर यात्रा के अनुभव साझा करते हुए श्री जाट ने बताया कि भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित की जाने वाली इस यात्रा के लिए उन्होने आनलाइन आवेदन किया था और उनका चयन नाथूला मार्ग से जाने वाले पहले जत्थे में हुआ था।
उनके यात्रा दल में भारत के विभिन्न प्रदेशों के कुल 37 यात्री शामिल थे। इस दल में मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान,उप्र,दिल्ली,केरल,तमिलनाडू,
कर्नाटक,आन्ध्र प्रदेश और हरियाणा के लोग शामिल थे। चयनित यात्रियों को 12 जून को नई दिल्ली बुलाया गया था। दिल्ली में यात्रा की प्रारंभिक तैयारियों और मेडीकल जांच के बाद यात्रा दल ने 15 जून को दिल्ली से बागडोगरा के लिए हवाई जहाज द्वारा प्रस्थान किया। 15 जून को ही उनका दल सिक्कीम की राजधानी गंगटोक पंहुच गया था। गंगटोक में 16 जून के सिक्कीम के पर्यटन मंत्री द्वारा सभी यात्रियों का स्वागत किया गया।
गंगटोक से उनकी यात्रा शुरु हुई,तो उन्हे नाथूला पास से पहले फिफ्टीन माईल्स नामक स्थान पर दो दिन रोका गया। 18 जून को नाथूला पास से पहले,करीब 14600 फीट की उंचाई पर स्थित सेराथांग नामक स्थान पर सभी यात्रियों का दोबारा से मेडीकल चैकअप किया गया। समुद्रतल से इतनी अधिक उंचाई पर कई लोग फिट नहीं रह पाते है। कैलास जैसे दुर्गम इलाके में शारिरीक रुप से कमजोर लोग यात्रा नहीं कर पाते। इसी वजह से भारत सरकार द्वारा यात्रियों की सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए पूरी सतर्कता बरती जाती है। सेराथांग में हुए मैडीकल चैकअप में यात्रा दल के छ: सदस्यों का ब्लड प्रैशर काफी बढा हुआ था। इन छ:सदस्यों को अनफिट करार देकर वहीं से वापस लौटा दिया गया। अब कैलास मानसरोवर की यात्रा के लिए केवल 31 लोगों का दल शेष बचा था।
कैलास मानसरोवर की वास्तविक यात्रा यहीं से प्रारंभ होना थी। श्री जाट ने बताया कि उनका दल भारतीय सीमा के अंतिम छोर नाथूला पास पर
20 जून को पंहुचा। नाथू ला पास पर चीन में प्रवेश की सारी औपचारिकताएं पूरी की गई और इसके बाद की यात्रा चीन सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए वाहनों से की गई। यात्रा दल ने नाथूला ने करीब दो सौ किमी आगे कांगना नामक स्थान पर पंहुच कर रात्रि विश्राम किया।
21 जून को उनका दल कांगना से 295 किमी चलकर लाजी नामक स्थान पर रुका और अगले दिन यानी 22 जून को लांजी से 477 किमी चल कर जोंगबा पर यात्रा दल ने रात्रि विश्राम किया। 23 जून को जोंगबा से 475 किमी चल कर यात्रा दल डारचेन पंहुचा। दारचेन कैलास परिक्रमा का बेस कैंप है और पवित्र कैलास पर्वत के प्रथम दर्शन यहीं से होते है।
श्री जाट ने बताया कि कैलास पर्वत की परिक्रमा डारचेन से ही प्रारंभ होती है। डारचेन से यमद्वार तक वाहनों से जाया जाता है और यमद्वार से पैदल परिक्रमा प्रारंभ होती है।
24 जून को सभी यात्रियों ने डारचेन से पदयात्रा प्रारंभ की। उनका अगला पडाव डेरापुक पर था। कैलास परिक्रमा का पूरा मार्ग बर्फ से ढंका हुआ था और इस पर चलना बेहद कठिन और दुष्कर था। लेकिन देवाधिदेव महादेव के प्रति श्रध्दा के चलते सभी यात्रियों ने यह दुर्गम मार्ग पार कर लिया और डेरापुक में रात्रि विश्राम किया।
पूरी यात्रा का सबसे कठिन हिस्सा इसके बाद आता है। कैलास परिक्रमा मार्ग में डेरापुक से झुनझुनपुई तक जाने के करीब पच्चीस किमी मार्ग में डोलमा पास को पार करना पडता है। डोलना पास समुद्र तल से करीब उन्नीस हजार पांच सौ फीट की उंचाई पर है। यहां आक्सिजन की मात्रा बेहद कम हो जाती है और कम आक्सिजन वाले इस इलाके में एक एक कदम एक एक मील चलने जैसा कठिन होता है। डोलमा पास पूरी तरह बर्फ से ढंका हुआ था। बर्फ पर फिसलन वाले रास्ते पर चलना और भी दुष्कर होता है। डोलमा पास पर पूरे दिन बर्फीले तूफान चलते है। यह यात्रा तडके चार बजे से प्रारंभ की जाती है। यात्रा दल के सदस्यों ने यह कठिन रास्ता भी पार कर लिया। झुनझुनपुई पंहुचने के बाद करीब तीन किमी की उंचाई पर चरण स्पर्श नामक स्थान है। यह स्थान कैलास पर्वत के सबसे समीप है। चरण स्पर्श तक कम ही यात्री जा पाते है। डोलमापास की कठिन चढाई पार करने के बाद अधिकांश यात्रियों में इतनी हिम्मत नहीं बचती कि वे चरण स्पर्श तक जा सके,लेकिन धर्मेन्द्र व उनके साथी राहूल जाट ने ने चरण स्पर्श तक जाने की हिम्मत भी जुटाई और चरण स्पर्श पर पंहुच कर कैलास के दर्शन किए।
झुनझुनपुई में कैलास की परिक्रमा पूरी हो जाती है। इसके बाद यात्रा दल को मानसरोवर तट पर ले जाया जाता है। श्री जाट के मुताबिक उनका दल 26 को डारचेन से निकल दोपहर तक मानसरोवर पर पंहुच गया था। मानसरोवर की पवित्र झील में सभी यात्रियों ने स्नान किया। मानसरोवर पर उन्हे अगले दिन यानी 27 जून को भी रुकना था। 28 जून को यात्रा दल ने मानसरोवर पर धार्मिक अनुष्ठान हवन पूजन आदि संपन्न किए।
श्री जाट ने बताया कि मानसरोवर पर दो दिन गुजारने के बाद उनका दल उसी मार्ग से चलकर 2 जुलाई को नई दिल्ली लौट आया।
श्री जाट ने बताया कि कैलास मानरोवर की यात्रा एक अद्भुत अविस्मरनीय और अलौकिक अनुभव है। वहां पंहुचकर ईश्वर की साक्षात सत्ता का साक्षात्कार होता है। कैलास मानसरोवर क्षेत्र में होने वाली अनुभूतियों को शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं है। वहां से लौटने के बाद उन्हे लगता है कि जीवन धन्य हो गया। यदि जीवन ने फिर कभी मौका दिया तो वो दोबारा भी कैलास मानसरोवर जरुर जाना चाहेंगे।

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