नेपाल के मामले में चूक गए मोदी जी…
-तुषार कोठारी
प्रचंड बहुमत से जीत कर सत्ता में वापस लौटी मोटी सरकार का हर ओर गुणगान किया जा रहा है,लेकिन पिछले कार्यकाल का यदि बारीकी से विश्लेषण किया जाए तो कूटनीतिक मोर्चे पर मोदी जी की कुछ गलतियां भी साफ नजर आती है। वैसे तो हर ओर मोदी जी की विदेश नीति की सराहना ही सुनी जा रही है,लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे है,जहां मोदी जी चूक गए।
कुछ दिनों पूर्व अखबारों में एक छोटी सी खबर छपी थी। यह खबर बेहद छोटी थी,इसलिए इस पर शायद ही किसा ने ध्यान दिया हो,लेकिन इसके निहितार्थ बडे गंभीर थे। खबर यह थी कि नेपाल के कुछ निजी स्कूलों में चीनी भाषा मंदारिन को अनिवार्य कर दिया गया है। चीन ने चीनी भाषा पढाने वाले शिक्षकों का वेतन देने का प्रस्ताव रखा है,इसी वजह से निजी स्कूलों ने चीनी भाषा पढना अनिवार्य कर दिया है।
यह छोटी सी खबर,वास्तव में नेपाल में चीन के बढते असर को साफ साफ दिखाती है। नेपाल में चीन के बढते असर को नजरअंदाज करना भारत के लिए बेहद घातक साबित हो सकता है।
विदेश और रक्षा मामलों के जानकारों का साफ मानना है कि भारत के लिए पाकिस्तान से बडा खतरा चीन है। चीन की विस्तारवादी नीति और बढती ताकत भारत की सुरक्षा के लिए हमेशा से खतरा रहा है। चीन के मामले में भारत हमेशा ही चोट खाता रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप के चीन के बढते दखल को रोकने के लिए भारत अब तक कोई सार्थक कदम नहीं उठा पाया है।
भारत और नेपाल सदियों से एकसाथ रहते आए है। नेपाल के हिन्दू राष्ट्र होने के कारण भारत और नेपाल की जनता के बीच भी बेहद अपनत्व के संबध रहे है। भारत की सेना में गोरखा पलटन है,तो देश के अधिकांश शहरों में गोरखा चौकीदारों की नियुक्ति को सुरक्षा की गारंटी माना जाता रहा है।
धर्म,संस्कृति और इतिहास हर दृष्टि से नेपाल सदा सदा से भारत का साथी रहा है।
लेकिन पिछले डेढ दो दशकों में चीन ने वहां लगातार भारत विरोधी विचारों को हवा दी है। चीन की निरंतर कोशिशों का ही नतीजा था कि नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी ताकतवर होती चली गई और कम्युनिस्ट आंदोलन जोर पकडता गया। इधर भारत में सन 2003 से लेकर 2014 तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली बेहद कमजोर सरकार थी और यह चीन के लिए बेहद फायदेमंद था।
चीन की कोशिशें रंग लाती गई और वर्ष 2007 आते आते राजनीतिक सत्ता पर कम्युनिस्टों का कब्जा होने लगा था। वर्ष 2007 में नेपाल में अंतरिम रुप से नया संविधान लागू कर दिया गया और विश्व के एक मात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल को सैक्यूलर राष्ट्र घोषित कर दिया गया। नेपाल में शुरु से ही धर्मपरिवर्तन पर रोक हुआ करती थी,लेकिन नए संविधान में यह रोक भी हटा दी गई।
हांलाकि इस समय तक भी नेपाल में एक बडा वर्ग ऐसा था जो हिन्दू राष्ट्र बनाए रखने के पक्ष में था और कम्युनिस्ट विरोधी था। इस वर्ग के विरोध का असर चलता रहा और नेपाल में एक बार फिर नए संविधान को लागू करने की तैयारियां होने लगी थी। नेपाल में हो रहे इन परिवर्तनों पर भारत सरकार मौन साधे बैठी थी और इन्हे निर्विकार भाव से देख रही थी।
सन 2014 में नरेन्द्र मोदी सत्ता में आए। होना तो यह चाहिए था कि मोदी सरकार को नेपाल में चल रही घटनाओं को अपने पक्ष में करने के प्रयास शुरु कर देना चाहिए थे। लेकिन भारतीय विदेश नीति नेपाल के मामले में उसी ढर्रे पर चलती रही और वर्ष 2015 में नेपाल ने फिर से एक नया संविधान लागू कर दिया। जिसके मुताबिक अब नेपाल हिन्दू राष्ट्र ना होकर एक सैक्यूलर राष्ट्र बन चुका था और जहां धर्मपरिवर्तन पर लगी हुई रोक भी हटाई जा चुकी थी। वर्ष 2015 से लेकर 2019 तक भी भारतीय नीति में कोई बदलाव नहीं देखा गया। चीन को नेपाल में खुलकर खेलने का मौका मिलता रहा।
चीन ने नेपाल में भारी भरकम निवेश किए। कम्युनिस्ट पार्टी के सत्ता में होने से उनका वैचारिक झुकाव चीन की ओर पहले से ही था। नेपाल का सबसे विश्वसनीय और नजदीकी दोस्त भारत लगातार निष्क्रिय बना हुआ था। नतीजा यह हुआ कि नेपाल और भारत की दूरी बढती गई।
और आज हालत यहां तक पंहुच गई है कि नेपाल के स्कूलों में चीनी भाषा पढाई जाने लगी है। अगर भारतीय रवैया ऐसा ही बना रहा तो वह दिन दूर नहीं,जब नेपाल भी पूरी तरह चीन के रंग में रंगा हुआ नजर आने लगेगा और यह स्थिति भारत के लिए बेहद खतरनाक साबित होगी। चीन जैसा ताकतवर दुश्मन बिलकुल सिर पर सवार हो जाएगा।
जरुरत इस बात की है कि भारत जल्दी से जल्दी नेपाल के सन्दर्भ में सक्रियता दिखाए और आपस में बढ रही दूरियों को कम करने के सारे उपायों पर काम शुरु किए जाए।