November 16, 2024

राग रतलामी/ अठारहवें दिन मतदान,लेकिन लगता ही नहीं कि चुनाव है,स्वीप के बहाने चुनावी हल्ला गुल्ला

-तुषार कोठारी

रतलाम। आज से अठारहवें दिन जिले भर के मतदाताओं को मतदान करना है। लेकिन गांव,गली,मोहल्लों में अब तक चुनाव का कोई माहौल ही नजर नहीं आ रहा। ना तो बैनर पोस्टर लगे हैं और ना ही जुलूस या नारेबाजी का शोर है। फूलछाप वालों ने मोदी जी के भजन गाने वाला एक आटो चला रखा है। यह आटो नजर आता है,तो पता चलता है कि अपने यहां भी चुनाव है।
पंजा पार्टी की तरफ से तो इतना भी नजर नहीं आ रहा। पंजा पार्टी प्रत्याशी ने वैसे तो एक बार शहर में जनसंपर्क किया है,लेकिन पंजा पार्टी के कार्यकर्ता गिनती के थे,इसलिए शहर के लोगों को पता ही नहीं चल पाया कि कोई चुनावी हलचल हो रही है।
आम आदमी को भले ही चुनावी माहौल नजर ना आता हो,लेकिन पार्टियों वाले अपने अपने कामों में लगने लगे है। फूल छाप पार्टी का चुनावी दफ्तर भैयाजी की रांगोली में चलने लगा है। फूल छाप के कार्यकर्ता फूल के बिल्ले लगाकर घूमने तो लगे है,लेकिन उनकी पंहुच अब तक आम मतदाता के पास तक नहीं पंहुची है। फूल छाप पार्टी को पीछे से सहारा देने वाले काली टोपी वाले भी अपने स्तर पर सक्रिय हो गए है। वे लोगों को जगाने का अभियान चला रहे है। हांलाकि लोगों का जगाने का इनका अभियान भी अब तक आम लोगों के पास तक नहीं पंहुच पाया है। फूल छाप की तैयारियों को जानने वालों का कहना है कि उपरी जमावट हो गई है,इसलिए आने वाले दिनों में कार्यकर्ता आम मतदाता तक पंहुचने लगेंगे और जल्दी ही चुनावी माहौल नजर भी आने लगेगा। इसी तरह काली टोपी वालों का अभियान भी अब जोर पकडने की दिशा में पंहुच गया है।
लेकिन दूसरी तरफ पंजा पार्टी इस मामले में काफी पीछे है। फिलहाल तो पूरी पंजा पार्टी मामा के भरोसे है। पूरे शहर में शायद मामा ही ऐसा इकलौता शख्स है,जो पंजा पार्टी के पट्टा गले में डाले नजर आता है। दोबत्ती के मामा के दफ्तर पर ही पंजा पार्टी का दफ्तर चल रहा है। ये दफ्तर भी अनोखा है, आगे बिलियर्ड पीछे राजनीति। पंजा पार्टी प्रत्याशी इस दौरान दो बार शहर में आए। एक दिन तो उन्होने शहीद की अंतिम यात्रा के मौके का लाभ लेने की कोशिश की थी। दूसरी बार सचमुच का जनसंपर्क करने आए। लेकिन पंजा पार्टी के कार्यकर्ता इससे दूर ही रहे। वैसे भी आम चुनाव में पंजा पार्टी रतलाम शहर और ग्रामीण पर कोई खास ध्यान नहीं देती। उन्हे पता है कि कितनी भी कोशिश करों,रतलामी बाशिन्दे पंजे का बटन दबाते ही नहीं। इसीलिए पंजा पार्टी इधर ज्यादा मेहनत नहीं करती। पंजा पार्टी का पूरा ध्यान झाबुआ और सैलाना पर रहता है। दूसरी तरफ फूल छाप वालों को रतलाम शहर और ग्रामीण से बडी उम्मीदे रहती है। इसलिए फूल छाप वाले ज्यादा मेहनत यहीं करते हुए दिखाई देते है।
बहरहाल,बचे हुए अठारह दिनों में ये उम्मीद की जा सकती है कि कुछ चुनावी माहौल अब नजर आना शुरु होगा। नेताओं के भाषण रैलिया,शोर शराबा ढोल ढमाका,नारेबाजी ना हो तो चुनाव का मजा क्या..? आने वाले दिनों में ये सबकुछ देखने को मिलेगा।

स्वीप के बहाने हल्ला गुल्ला

चुनाव में हिस्सा ले रही पार्टियों का शोर शराबा तो कहीं सुनाई नहीं दे रहा है,शायद इसीलिए सरकार बहादुर ने स्वीप के बहाने चुनावी माहौल बनाने की कोशिश कर डाली। पार्टियां जुलूस जलसा रैली नहीं कर रही है,तो चलों सरकारी महकमे ही कर डाले। बडी मैडम जी ने इसके लिए शनिवार की शाम चुनी। लेकिन दो बत्ती इलाके को सुबह से ही चारो तरफ से बंद कर दिया गया। बंद किए गए इन रास्तों पर तरह तरह के तमाशे किए गए ताकि मतदाता मतदान करने के लिए जागरुक हो सके। कहीं मलखंब का प्रदर्शन हुआ तो कहीं सेल्फी पाइंट बनाया गया। रंगोली बनाई,ढोल ढमाके बैंड बाजे सबकुछ बजाए गए। जनता भी आई,लेकिन उतनी नहीं आई,जितनी उम्मीद थी। इससे कई गुना लोग वो थे,जो रास्तों के बंद होने से परेशान हो रहे थे। दिन भर कम से कम न्यू रोड तो चालू था,लेकिन शाम को साई भक्तो की साई पालकी के चक्कर में न्यू रोड भी बंद हो गया। अब इस तरफ से अस्पताल तक जाना भी मुश्किल हो गया। खैर जनता सबकुछ सह लेती है। अब इतनी मशक्कत के बाद अगर वोटिंग परसेंट भी बढे तो कोई बात है,वरना लोकसभा चुनावों का इतिहास तो यही बताता है कि मतदाता उदासीन ही रहता है।

वर्दीवालों का गौरव

पांच साल के मासूम बच्चे के साथ कुकृत्य करने के बाद उसकी जघन्य हत्या करने वाले दरिन्दे को आखिरकार वर्दीवालों ने खोज ही निकाला। इन दिनों वर्दीवालों के पास दो दो गौरव है। एक जिले की कमान संभालते है,तो दूसरे पूरी रेंज की। दो दो गौरव हैं तो वर्दीवालों का गौरव बढना ही चाहिए। नन्हे मासूम की हत्या करने वाला हत्यारा अपने आपको छुपाने की तमाम कोशिशें करता रहा,लेकिन वर्दीवालों की चतुराई के आगे वह टिक नहीं पाया और सारे मामले का पर्दाफाश हो गया। शहर के लोगों को कसक बस यही रही कि मासूम को बचाया नहीं जा सका,क्योंकि उसे तो उसी दिन मार दिया गया था,जब वह लापता हुआ था। खैर। इस मामले की तो सारी परतें खुल गई है,लेकिन अब हत्यारे के दूसरे कुकर्मो की खोज की जा रही है। ये मामला उजागर होने के बाद इस बात के भी संकेत मिले है कि हत्यारे ने फैजान से पहले भी कुछ मासूमों को अपना शिकार बनाया है। उनकी खुशकिस्मती इतनी ही थे कि उनकी जान नहीं गई। पुलिस वालें अब इन मामलों की भी तलाश कर रहे हैं।

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