राग रतलामी/ सत्ता गई तो गायब हो गए पीछे चलने वाले, सप्ताह भर चली एसके की खींचतान
-तुषार कोठारी
रतलाम,10 फरवरी। कोई जमाना था जब फूलछाप वालों का कोई कार्यक्रम होता था,तो भीड संभाले नहीं संभलती थी। लेकिन अब जमाना बदल गया है। सूबे की सत्ता पंजा पार्टी के हाथों में है। फूलछाप के झन्डे डन्डे उठाने वाले आजकल नेताओं को ज्यादा भाव नहीं दे रहे है। नतीजा यह है कि फूल छाप वालों के पीछे चलने वाले गायब होते जा रहे है। पंजापार्टी के चुनावी वादे पूरे नहीं होने को ढोल ढमाके बजाकर उजागर करने के चक्कर में फूल छाप वालों ने धिक्कार दिवस मनाने का फरमान जारी कर दिया। इधर जिले में फूलछाप वालों की कमान लुनेरा के दरबार के हाथों में है। शनिवार को आफिस बन्द थे,लेकिन फरमान उपर का था इसलिए फूलछाप वालों ने बन्द आफिस को ही घेरने का एलान कर दिया। उपर वालों ने प्रदेश के महासचिव बंसीलाल जी को भेजा,ताकि प्रदर्शन जोरदार हो। लेकिन बेचारे बंसीलाल जी,उन्हे लगा था कि रतलाम वाले उनकी कुछ शर्म करेंगे और ठीकठाक सा प्रदर्शन करेंगे। लेकिन जब वे पंहुचे,तो पता चला कि आफिस घेरने के लिए गिने चुने नेता ही पंहुचे,उनके पीछे चलने वाले सब नदारद थे। वो तो भला हो जावरा वालों का और आसपास के गांव वालों का,जो थोडे बहुत आ गए,वरना तो इज्जत बचना भी मुश्किल था। खैर,नेता हो तो भाषनबाजी तो होगी ही। जितने भी थे,सब बोले। सुनने वाले तो थे ही नहीं। जो थोडे बहुत आए भी थे,वे धूप से बचने के लिए इधर उधर छांव ढूंढते हुए चले गए। अब सुनने के लिए बचे खाली मीडियावाले और वर्दीवाले। वे भी एक दूसरे से यही पूछ रहे थे कि नेतानगरी सुना किसे रही है? भाषनबाजी भी लंबी चल रही थी। कुछेक बडे नेता बेचारे धूप में ज्यादा देर खडे रहने में भी परेशान हो रहे थे,उन्होने कोशिश की,कि जबतक नंबर नहीं आता,तबतक एसी गाडी में ही बैठ लिया जाए। लेकिन खबरची तो किसी की परेशानी को कुछ समझते ही नहीं है। नेताजी गाडी में बैठे,कि ये कैमरे लेकर वहां पंहुच गए। बेचारे नेताजी को तुरंत गाडी से उतर कर फिर धूप में खडा होना पडा। बहरहाल, फूलछाप के जिले के नए मुखिया को धिक्कार दिवस का हश्र देखकर समझ जाना चाहिए कि बडे नेताओं के आगे पीछे घूमने,होर्डिंग लगाने और बयानबाजी करने भर से नेतागिरी नहीं चलती,जब तक पीछे भीड नहीं होती,नेता की कोई हैसियत भी नहीं होती।
दो एसके की खींचतान और तबादला उद्योग में निवेश का असर
पिछला पूरा सप्ताह दो एसके की खींचतान देखते हुए गुजरा। एक एसके तो लंबे समय से शहर सरकार पर कब्जा जमाए हुए थे। दूसरे एसके को सूबे को बडे बाबूओं ने शहर सरकार पर कब्जा करने के लिए भेज दिया था। नए वाले एसके को चूंकि बडे बाबूओ ने भेजा था इसलिए जिले की बडी मैडम ने पुराने एसके को जबरन हटवा कर नए वाले एसके को पूरी कमान सौंप दी। नए एसके ने अभी दो तीन ही गुजारे थे कि पुराने वाले एसके ने बडी अदालत का फरमान लाकर थमा दिया। नए वाले एसके चूंकि बडे बाबू थे इसलिए उन्होने इस फन्दे में पडने की बजाय यहां से चले जाना ही ठीक समझा। रह गए पुराने वाले एसके। वे बडे ठाठ से अपने सिंहासन पर जम गए। उनके जाने से कुछ कारिन्दों को जो खुशी मिली थी,वो सारे डर से इधर उधर दुबक गए। मजेदार वाकया तो इसके बाद हुआ। पुराने वाले एसके ने अभी अपनी तशरीफ जमाई ही थी,कि उपरवालों ने फिर से उनकी रवानगी का हुक्म जारी कर दिया। जो कारिन्दे डर से इधर उधर दुबके बैठे थे,सारे फिर से बाहर निकल आए। लेकिन वे बेचारे ये नहीं जानते थे कि पुराने वाले एसके इस खेल के पुराने खिलाडी है। सूबे में चल रहे तबादला उद्योग में उनका भारी भरकम निवेश किया हुआ था। अभी रवानगी का हुक्म आया ही था कि पीछे से नया हुक्मनामा जारी हो गया। नए हुक्मनामें में पिछले आदेश को निरस्त कर दिया गया था। बहरहाल,पुराने वाले एसके फिर से अपने सिंहासन पर विराजित है और खुशियां मनाने वालों का पता लगा रहे है। लोग अब ये हिसाब लगा रहे है कि आखिर उन्होने निवेश कितना किया होगा और यह भी कि अगर भारी भरकम निवेश किया है तो शहर सरकार में कुल कितनी मलाई है..?
भुगतान हासिल करने का फार्मूला….
ब्लेकलिस्टेड ठेकेदार को चुनाव की विडीयोग्राफी का काम देने और तुरत फुरत भुगतान कर देने की कहानियां इन दिनों फिजाओं में तैर रही है। अब फिर से चुनाव आ रहे हैं तो लोगों की नजरें भी इस पर टिकी हुई है कि इसबार विडीयोग्राफी का ठेका कैसा होगा..? लोग पूछ रहे है कि तुरत फुरत भुगतान हासिल करने का फार्मूला क्या है? हांलाकि ज्यादातर लोगों को भेट पूजा वाले इस फार्मूले की जानकारी भी है। लेकिन उन्हे ये पता नहीं है कि फार्मूला लागू किस पर करना होता है? इसका सही जवाब तो केवल वही ठेकेदार दे सकता है जिसने ब्लेक लिस्टेड होने के बावजूद बिन्दास अपना भुगतान हासिल कर लिया। अब सवाल यह है कि उस ठेकेदार से यह पूछेगा कौन?