अयोध्या केस: मध्यस्थता पर सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला, सभी पक्षों से मांगे नाम
नई दिल्ली,06 मार्च (इ खबरटुडे)। राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद में मध्यस्थता की गुंजाइश अब भी दिख रही है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दलीलें सुनने के बाद मामले के स्थायी समाधान के लिए कोर्ट द्वारा नियुक्त और निगरानी में मध्यस्थता को लेकर फैसला सुरक्षित रख लिया। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने साफ कहा कि हम अयोध्या जमीन विवाद और इसके प्रभाव को गंभीरता से समझते हैं और जल्दी फैसला सुनाना चाहते हैं। बेंच ने आगे कहा कि अगर पार्टियां मध्यस्थों का नाम सुझाना चाहती हैं तो दे सकती हैं।
मध्यस्थता पर सभी पक्ष सहमत नहीं
सुप्रीम कोर्ट में हिंदू महासभा ने क्लियर स्टैंड रखा कि मध्यस्थता नहीं हो सकती है। महासभा ने कहा कि भगवान राम की जमीन है, उन्हें (दूसरे पक्ष को) इसका हक नहीं है इसलिए इसे मध्यस्थता के लिए न भेजा जाए। रामलला विराजमान का भी कहना था कि मध्यस्थता से मामले का हल नहीं निकल सकता है। हालांकि निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मध्यस्थता का पक्ष लिया।
सिर्फ जमीन का नहीं, भावनाओं से जुड़ा मामला: जस्टिस बोबडे
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये भावनाओं और विश्वास का टकराव है। दिल और दिमाग को पाटने का सवाल है। हमें गंभीरता पता है और हम आगे मामले को देख रहे हैं। यह उचित नहीं है कि अभी कहा जाए कि नतीजा कुछ नहीं होगा। जस्टिस बोबडे ने कहा कि आपसी बातचीत से मामले का समाधान निकलना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ जमीन का नहीं, दिल-दिमाग और भावनाओं से जुड़ा मसला है। बुधवार को सुनवाई शुरू होते ही सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि वह इस बात का फैसला करेगा कि समय बचाने के लिए केस को कोर्ट की निगरानी में मध्यस्थता के लिए भेजा जा सकता है या नहीं।
बाबर के जिक्र पर जस्टिस ने क्या कहा?
हिंदू महासभा में अपना पक्ष रखते हुए मध्यस्थता का विरोध किया। महासभा ने कहा कि कोर्ट को ही फैसला करना चाहिए। जब हिंदू पक्षों ने कहा कि मध्यस्थता निरर्थक प्रयास होगा क्योंकि हिंदू इसे एक भावनात्मक और धार्मिक मामले के तौर पर लेते हैं। उन्होंने कहा कि बाबर ने मंदिर को ध्वस्त किया था। इस पर जस्टिस एस. ए. बोबडे ने कहा, ‘अतीत में क्या हुआ, उस पर हमारा नियंत्रण नहीं है। किसने हमला किया, कौन राजा था, मंदिर था या मस्जिद था। हम मौजूदा विवाद के बारे में जानते हैं। हमें सिर्फ विवाद के निपटारे की चिंता है।’
मध्यस्थता पर रिपोर्टिंग बैन?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसका मानना है कि अगर मध्यस्थता की प्रक्रिया शुरू होती है तो इसके घटनाक्रमों पर मीडिया रिपोर्टिंग पूरी तरह से बैन होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यह कोई गैग ऑर्डर (न बोलने देने का आदेश) नहीं है बल्कि सुझाव है कि रिपोर्टिंग नहीं होनी चाहिए। मुस्लिम पक्षों की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने भी कहा कि पूरी प्रक्रिया बेहद गोपनीय होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मध्यस्थता की रिपोर्टिंग होती है तो सुप्रीम कोर्ट इसे अवमानना मान सकता है।
मुस्लिम पक्ष राजी, कहा- आगे बढ़ें
वकील राजीव धवन ने आगे कहा कि मुस्लिम पिटिशनर्स मध्यस्थता और किसी समझौते या सेटलमेंट के लिए राजी हैं, जो पार्टियों को बाध्य करे। उन्होंने बेंच से मध्यस्थता के लिए शर्तें तैयार करने को भी कहा। वहीं, जस्टिस बोबडे ने कहा कि यहां केवल एक मध्यस्थ नहीं बल्कि मध्यस्थों के एक पैनल की जरूरत है। एक हिंदू पक्षकार ने कहा कि मध्यस्थता के लिए पब्लिक नोटिस जरूरी है।
जस्टिस चंद्रचूड़ बोले, आसान काम नहीं
वहीं, जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यह विवाद दो समुदायों का है, सबको इसके लिए रेडी करना आसान काम नहीं है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ये बेहतर होगा कि आपसी बातचीत से मसला हल हो पर कैसे? ये अहम सवाल है।
‘एक फीसदी भी गुंजाइश तो प्रयास कीजिए’
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक फीसदी भी बातचीत की गुंजाइश है तो प्रयास होना चाहिए। हालांकि मुस्लिम पक्षकारों के वकील का कहना था कि वह इसके लिए प्रयास कर सकते हैं लेकिन राम लला विराजमान के वकील ने कहा था कि पहले ही इसके प्रयास हो चुके हैं और मध्यस्थता की संभावना नहीं है। अदालत ने कहा था, ‘हम चाहते हैं कि संबंधों की खाई को पाटा जाए।’