राग रतलामी/ राशन घोटाला-अभी भी गरीबों का राशन चट कर रहे है सरकारी चूहे
-तुषार कोठारी
रतलाम। शहर की जनसंख्या से ज्यादा संख्या में राशन कार्ड बना कर हजारों गरीबों का राशन चट कर जाने वाले कई सारे मोटे ताजे चूहे अभी भी बडे मजे से गेहूं चांवल की बोरिया चट कर रहे है। साल भर पहले जब राशन दुकानों की जांच का सिलसिला चालू हुआ,तो पता चला कि इस चोरी में तो रसद महकमे से लगाकर नगर को नरक में तब्दील कर चुके निगम के तमाम अफसर शामिल है। जब से सरकार ट्रिपल एसएम यानी समग्र आईडी लाई थी,उसी वक्त से अफसरों ने इसमें पलीता लगाने की तरकीबें भी जमा ली थी। ट्रिपल एसएम का ठेका देने के पहले ही अफसरों की तैयारी थी कि इस व्यवस्था को पूरी तरह चौपट कर देना है। ये कोई रतलाम का अकेले का खेल नहीं है। पूरे सूबे में समग्र आईडी का नाश मिला हुआ है। लेकिन रतलाम को खुशकिस्मत मानिए कि राशन चट करने वाले कुछेक चूहे सलाखों के पीछे तक जाकर आ चुके है। शहर में राशन की दर्जनों दुकानें है। लेकिन जांच सिर्फ आठ की ही हुई है। पहले वाले जिले के बडे साहब ने तो सारी दुकानों की जांच कराने की तैयारी की थी,लेकिन वे रवाना हो गए,तो जांच भी वहीं थम गई। उस वक्त जो,जो अफसर इसमें धरा गए वो धरा गए। जांच थम गई तो बाकी के बच गए। अफसरों ने भी दिमाग लगाया। ठीकरा ठेकेदार के मत्थे जड दिया,कि सारा खेल इसी का है। जानने वाले जानते है कि बाहर वाले का कोई रोल होता नहीं। उसका काम तो महज डाटा एन्ट्री का होता है। दस्तावेजों की जांच और प्रमाणिकरण तो अफसरों के ही हाथ में होता है। लेकिन अफसरों को बचाना है,तो ठीकरा फोडने के लिए किसी ना किसी का सर भी जरुरी है। राशन घोटाले में फरार ठेकेदार के आ जाने से कोई बडा सुराग हाथ नहीं लग जाएगा। गिरफ्तार हुए अफसर तो जमानतें लेकर आ चुके है। अब पूरी कहानी खाकी वर्दी वालों के हाथ में है। खाकी वर्दी वालों का काम भी चालान जमा करने तक है। फिर अदालत में बरसों तक कहानी खींचती रहेगी। और तब तक गरीबों का राशन चट करने वाले सरकारी चूहे और मोटे ताजे हो जाएंगे। सरकारी अनाज की दुकानें चलाने वालों की चांदी भी चलती रहेगी। नगर निगम वाले भी ट्रिपल एसएम का आनन्द लेते रहेंगे।
कहीं खुशी कहीं गम
रेलवे के तमाम अफसर तनाव में थे कि उन्हे रेल मंत्री को झेलना पडेगा। हांलाकि कुछेक अफसरों ने यह गणित भी लगा लिया था कि रेलमंत्री को इतनी फुर्सत नहीं है कि वह इतने छोटे कार्यक्रम में आए। लेकिन धुकधुकी फिर भी थी। आखिरकार शाम होते होते सबको पता चल गया कि रेलमंत्री नहीं आ रहे है। इस खबर का असर अलग अलग लोगों पर अलग अलग ढंग से पडा। अफसरों को खुशी हुई कि चलो बेवजह की दौडभाग बची। दुखी वो हुए,जिन्हे उम्मीद थी कि नेतागिरी की आड में उन मामलों को रफा दफा करवा लेंगे,जिनकी जांच चल रही है। साढे चार पहले जब दिल्ली दरबार बदला था,तो कुछ समझदार लोगों ने फौरन मौसम का मिजाज भांप कर पाला बदल लिया था। कल तक जो कामरेड होते थे,वो भाई साहब बन गए और देखते ही देखते डिविजन के नेता बन गए। एक बार मंत्री को भी ले आए। इसका नतीजा था कि नेतागिरी चमक गई। लेकिन गडबडियां थी,इसलिए जांचे हो रही है। मंत्री जी आ जाते तो नेताजी जांच को ठीक करवा लेते। अब उसकी उम्मीद नहीं रही।