November 18, 2024

इतना डर क्यों है भाजपा और कांग्रेस को?

प्रकाश भटनागर

इंसान का व्यक्तित्व के रूप में कद नापने का कोई तयशुदा पैमाना नहीं है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर से पार्टी विधायक उषा ठाकुर का कद नाप दिया है। वह भी उन्हें खालिस निपटाने के अंदाज में। ठाकुर इंदौर तीन से उनका टिकट कटवाने और महू भेजने के लिए अब तक विजयवर्गीय को दोषी ठहराती नजर आ रही हैैं। उनका एक वीडियो भी वायरल हुआ। सो, जवाब में विजयवर्गीय ने कह दिया कि ऊषा ठाकुर इतनी बड़ी नेता नहीं हैं कि वह उनके आरोप का जवाब दें। पूर्व में विजयवर्गीय भाजपा के नाखुश सांसद शत्रुघ्न सिन्हा की तुलना बैलगाड़ी के आगे चल रहे श्वान से करके उनका कद तय कर चुके हैं। हालांकि एक मौका ऐसा भी आया, जब मामला ऊंट के पहाड़ के नीचे आने जैसा हो गया था। उन्होंने प्रदेश की नौकरशाही को नापने के अंदाज में उस पर ताबड़तोड़ प्रहार किए। खुद को शोले का ठाकुर तक ठहरा दिया था किंतु नाकाम रहे। जल्दी ही समझ गए कि वल्लभ भवन की इमारत के भीतर बैठकर सरकार को चला रहे तंत्र को चलते करना उनके बस की बात नहीं है। मामला शिवराज सिंह चौहान की पसंद के लोगों का जो था।
ऊषा ठाकुर को महू में किला लड़ना पड़ा लेकिन वे संघ की चहेती हैं इसलिए संघ के स्वयंसेवक उनके समर्थन में मैदान में थे।

 

बावजूद इसके वे अब विजयवर्गीय के मामले में केवल वही कर रही हैं, जिस लायक रह गयी हैं। भड़ास निकालना फिलहाल उनका प्रारब्ध बन चुका है। कयास हैं कि विधानसभा टिकट से वंचित रहे बाबूलाल गौर और कुसुम मेहदले को चुनाव के नतीजों के बाद उपकृत किया जाएगा। जाहिर है कि ठाकुर को कम से कम पार्टी ने कहीं से भी सही मौका तो दिया। महू भी आखिर कैलाश विजयवर्गीय की छोड़ी हुई सीट है। ऊषा का व्यक्तित्व गौर या मेहदेले की तुलना में छोटा हो सकता है लेकिन संघ उनकी ताकत है। बावजूद इसके वे जीते या हारे उन्हें पार्टी से किसी उपकार की अपेक्षा नहीं करना चाहिए।

इधर, कांग्रेस से जोरदार खबर आई है। व्यापमं मामले में जेल की हवा खाने के बाद फिलहाल जमानत पर चल रहे संजीव सक्सेना को प्रदेश महासचिव का पद दे दिया गया है। चुनाव के समय संजीव अपनी पर उतर आए थे। टिकट नहीं मिला तो वह सब करने की तैयारी में दिख रहे थे, जो सब वह पूर्व में चुनाव जीतने की खातिर कर चुके हैं। कहा जाता है कि खुद दिग्विजय सिंह को संजीव की मिजाजपुरसी करना पड़ी। तब कहीं जाकर वह शांत हुए।

इसका ईनाम अब उन्हें दे दिया गया है। इस नियुक्ति पर किसी को विरोध नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह उन्हीं कमलनाथ की प्रदेश कांग्रेस है, जिन्होंने चुनाव पूर्व एक वीडियो में अपराधियों को भी टिकट देने की वकालत करते हुए कहा था कि चुनाव तो किसी भी तरह जीतना ही है। इससे यह भी जरूर साबित हो गया कि व्यापमं घोटाले को लेकर कांग्रेस की गंभीरता कितनी है। फिर संजीव पर तो अभी आरोप साबित होना बाकी है। इस युवा तुर्क ने टिकट की प्रत्याशा में भोपाल में मेरा एक सपना है, आपके आशीर्वाद से पूरा करना है शीर्षक वाले पैम्प्लेट चस्पा करवाए थे। मतदाता को तो उनके सपने पूरे करने या चूर-चूर करने का मौका नहीं मिल पाया, अलबत्ता उनकी अपनी पार्टी ने दूसरी तरह से उनके ख्वाब की तामीर कर दी है।

कभी-कभी लगता है कि शीर्ष राजनीतिक दल भीतर से बहुत खोखले होते हैं। प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस ने जिस तरह दमदार बागियों के आगे समर्पण किया, उससे यह धारणा और बलवती होती है। बहुजन समाज पार्टी में आपने यदि किसी बगावत की खबर सुनी हो तो यह भी सुना होगा कि किस तरह बागी को समय गंवाए बगैर ठिकाने लगा दिया गया। पार्टी से निकाले जाने के बाद नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने मायावती को सियासी रूप से ठिकाने लगाने की हुंकार भरी थी, आज सिद्दीकी की हैसियत नक्कारखाने में तूती की आवाज जितनी भी नहीं रह गई है। समाजवादी पार्टी में आलाकमान को टेढ़ी आंख दिखाने वाले अमर सिंह हों या फिर शिवपाल सिंह यादव, दोनो ही अपने तेवर वाले अन्य नेताओं की तरह अंतत: खेत रहे हैं। अमर ने किसी तरह जोड़तोड़ कर राज्यसभा में स्थान तो सुरक्षित कर लिया, लेकिन उनका राजनीतिक भविष्य पूरी तरह अंधेरे में है।

 

विरोध के ऐसे स्वर न तो लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल में विकसित होने दिए गए और न ही वामपंथी पार्टियों ने ऐसा करने वालों को सहन किया। लेकिन भाजपा और कांग्रेस सब कुछ सहन कर रही हैं। यकीनन इंसान का व्यक्तित्व के रूप में कद नापने का कोई तयशुदा पैमाना नहीं है, लेकिन व्यक्तित्व के जरिए उसका कद नापा जा सकता है। इस लिहाज से देश के इन दो प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रभावशाली बागी पार्टियों की रीति-नीति से भी बड़े कद वाले नजर आने लगे हैं।

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