चुनावी चख-चख -10
शिकवे शिकायतों का दौर शुरु
दसवां दिन-20 नवंबर
फार्म जमा करने की आखरी तारीख से शुरु हुआ चुनावी खेल अब दसवें दिन तक आ पंहुचा है। एक दूसरे के शिकवे शिकायतों का दौर भी तेज हो चुका है। हर पार्टी और प्रत्याशी दूसरे की शिकायत कर उसकी परेशानियां बढाने के चक्कर में है। शान्तिनगर के झुमरु दादा ने घर के बाहर टेन्ट लगाकर अपना कार्यालय बनाया था। इस बात की शिकायत उन्ही के पडोसी ने कर दी। शिकायत मिलते ही कार्रवाई हुई और टेन्ट उखाड दिया गया। इसी का खामियाजा पंजा छाप पार्टी को भी भुगतना पडा। पंजा छाप पार्टी ने अपने केन्द्रीय चुनाव कार्यालय के बाहर टेन्ट लगाया था। प्रशासन ने इसे भी उखडवा दिया। अपनी शिकायतों से परेशान झुमरु दादा ने फूल छाप वाले भैयाजी की शिकायत कर दी। भैया जी ने अपनी एक सभा में शहर को झुग्गी मुक्त कराने का संकल्प दर्शाया। संकल्प करते करते वे भावनाओं में बह गए। उन्होने कहा कि वे सरकारी स्तर पर झुग्गी मुक्त शहर बनाएंगे और जरुरत पडी तो अपने परिवार और ट्रस्टों के सहारे शहर की झुग्गियां हटवा देंगे। झुमरु दादा के लोगों ने शब्द पकड लिए। उन्होने इसे मतदाताओं को दिया गया प्रलोभन बताते हुए शिकायत दर्ज करवा दी।
मामा का सहारा
भैयाजी को बडी उम्मीद थी कि पार्टी के बुजुर्ग नेता आएंगे तो शहर का माहौल बदल जाएगा। माहौल तो बदला लेकिन उनके पक्ष की बजाय खिलाफ हो गया। बुजुर्ग नेता की लोकप्रियता आजकल घट चुकी है। लोगों में अब उनका कोई क्रेज बाकी नहीं है। उनके आने के चक्कर में बडे बडे इंतजाम हुए। हजारों पुलिस वाले तैनात किए गए। लाखों का खर्चा हुआ। पार्टी के छुटभैये नेता भीड जुटाने के नाम पर रुपए भी ले गए। लेकिन फिर भी भीड नहीं जुटी। सभा भी केवल सात मिनट की हुई। जैसे ही प्रोग्राम निपटा,बातें होने लगी। कहां तो उत्साह का वातावरण बनना चाहिए था,लेकिन अब तो पिछडने की बातें होने लगी। ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में अब भैयाजी को सूबे की कन्याओं के मामा का ही भरोसा रह गया है। फिलहाल पूरे सूबे में मामा अकेले ही भीड खींचने वाले नेता है। मामा की सभा अगर ठीक ठाक हो गई तो इससे भैयाजी को काफी कुछ सहारा मिल जाएगा।
टोपीवालों से उम्मीद
वैसे तो फूल छाप पार्टी के नेता कहते है कि वे जाति और धर्म के आधार पर वोट की जुगाड नहीं करते। फूल छाप पार्टी के सबसे बडे नेता अपने सद्भावना उपवास में टोपी को साफ इंकार भी कर चुके है। लेकिन जब मामला नाजुक हो तो टोपीवालों का सहारा बडी मदद कर सकता है। शायद इसी वजह से भैयाजी पहले तो मदरसे में मीटींग कर आए। इतने से बात नहीं बनती दिखी तो वे मुल्ला जी के मोहल्ले में जा पंहुचे। चुनाव जीतने की ये कसरतें क्या असर डालेगी यह तो आठ दिसम्बर को ही पता चलेगा।
भीड का गिरता ग्राफ
बासठ हजार की लहर पर सवार होकर विधायक बने झुमरु दादा की लहर अब नदारद हो चुकी है। लहर नहीं होने का ही असर है कि अब उनके भाषणों को सुनने वालों की भीड का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है। इसका अंदाजा पहले से था। असल में झुमरु दादा के भाषण मनोरंजक तो है,लेकिन अब सुनने वालों में पिछली बार की तरह जुनून नहीं है। झुमुरु दादा के पास भी अब मुद्दे नहीं है। ले-देकर सामने वाले को बाहरी व्यक्ति और चांदी का चम्मच लेकर पैदा होने वाला बताने के अलावा मुद्दे बाकी नहीं है। वे खुद की उपलब्धियां गिनाते है,तो लोगों को हंसी आने लगती है। नतीजा यह है कि हर सभा पिछली सभा से कमजोर होती जा रही है। टोपी वाले तो दादा से किनारा कर ही चुके है। टोपीवालों के दूर जाने से दादा का पिछडना भी तय हो चुका है।