चुनावी चख-चख – 9
चर्चाओं में है मिस्टर बीस परसेन्ट
नवां दिन-19 नवंबर
बेनजीर भुट्टो के जमाने में पाकिस्तान में मिस्टर टेन परसेन्ट बहुत प्रसिध्द थे। बेनजीर के पति आसिफ जरदारी को मिस्टर टेन परसेन्ट कहा जाता था। कहते थे कि उस जमाने में कोई भी काम जरदारी को दस परसेन्ट दिए बगैर नहीं होता था। रतलाम की सियासी जंग में फूल छाप पार्टी में तो मिस्टर बीस परसेन्ट चर्चाओं में है। फूल छाप पार्टी के भैयाजी देश के बडे उद्योगपति है। उनका चुनावी मैदान में मौजूद होने भर से चुनाव बेहद महंगे हो गए है। उनके खेमे में वक्त की कीमत ज्यादा है। कोई चीज किराये पर लाने में अगर देर लग रही हो,तो उसे खरीद कर मंगवा लिया जाता है। रुपयों को देखकर फिलहाल पानी भी शरमाने लगा है। इसी बहाव में कई सारे छुटभैये मजे ले रहे है। उनके आसपास सबसे ज्यादा देखे जाने वाले एक महाशय की प्रसिध्दी इन दिनों मिस्टर बीस परसेन्ट के रुप में हो चुकी है। कार्यकर्ताओं को दी जा रही गड्डियों में उनका हिस्सा कम से कम बीस परसेन्ट का होता है। कुछ मामलों में उनका हिस्सा बीस से भी बढ जाता है। सेवा शुल्क में ये हिस्सेदारी क्या गुल खिलाएगी ये देखने वाली बात है।
अब क्या होगा?
किसी राष्ट्रीय नेता की सभा होना प्रत्याशी के पक्ष में हवा बनाने का सबसे कारगर उपाय होता है,लेकिन अगर सभा में लोग ना पंहुचे तो? हांलाकि पार्टियां भीड मैनेजमेन्ट पर काफी कुछ खर्च करती है और जब प्रत्याशी ज्यादा वजनदार हो तो खर्चा भी बढ चढ कर होता है,लेकिन इसके बावजूद लोग पर्याप्त संख्या में ना आए,तो स्थिति चिंताजनक कही जा सकती है। शहर की चुनावी जंग में राष्ट्रीय नेता की एक ही सभा हुई है। आप समझ सकते है ये किसकी बात है? स्टेशनरोड की हवेली में अब यहीं सवाल गूंज रहा है कि अब क्या होगा? इस पर कोढ में खाज ये कि उनका एक कर्मचारी पार्टी के नेता से ही भिड लिया। ये खिसियाहट और खीज कहा जाए या कुछ और?
ट्रिन ट्रिन हुई कमजोर
बिना बैल की गाडी और इंजिन के सहारे राजनीति में आगे बढे झुमरु दादा के टेलीफोन की ट्रिन-ट्रिन अब कमजोर पडने लगी है। उन्हे उम्मीद थी कि कनेक्शन बढेंगे लेकिन अब उल्टा होता नजर आ रहा है। वोटर कनेक्शन कटवाते नजर आ रहे है। धानमण्डी में उमडी भीड से उन्हे लगा था कि टेलीफोन की घण्टी जोर से गूजेंगी,लेकिन अगले दौर में लोग कम होने लगे। असल में धानमण्डी की सभा में लोगों को बडी उत्सुकता ये जानने की थी कि हाईकोर्ट का झटका खा चुके दादा के पास अब कौनसा फार्मूला है? हंसी मजाक नाच गाना खुब हुआ,मनोरंजन भी हुआ,लेकिन बात में दम नहीं था। नतीजा यह हुआ कि अब भीड का जोर कम होने लगा है। लोग पलटकर जवाब देने लगे है। कमेन्ट्स भी करते है। रोचकता मुद्दों की गहराई से आती है। मुद्दे ही नहीं बचे तो मजा कैसे आएगा?