चुनावी चख-चख -6
ग्रामीण नहीं गुजरात की कथा
छठा दिन-16 नवंबर
शहर में जहां चुनावी जंग का मैदान सज चुका है,वहीं ग्रामीण इलाकों में भी तैयारियां जोर पकड रही है। दस साल पहले की सरकार के श्रीमान बंटाधार आज पंजा छाप वाली बाई के लिए बिरमावल पंहुचे थे। बाद में वे सैलाना के एक गांव में भी गए। इस बार पंजा छाप पार्टी ने ग्रामीण चुनाव की बागडोर शहर के पुराने चाचा जी के हाथ सौंप रखी है। राम भवन वाले चाचा जी यूं तो काफी कमजोर हो चुके है,लेकिन चुनावी जंग में लगता है उनकी ताकत फिर से लौट आई है।
ग्रामीण नहीं गुजरात की कथा
ग्रामीण की जंग पुरानी वाली ही है। एक तरफ पिछली विधायक है तो सामने फूल छाप पार्टी के पिछला चुनाव हार चुके बा साब है। बहरहाल श्रीमान बंटाधार आए तो ग्रामीण सीट पर विधायक मैडम का प्रचार करने लेकिन सारा वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री की रामायण ही बांचते रहे। प्रदेश के मुद्दे और रतलाम ग्रामीण के मुद्दे तो उनके भाषण में थे ही नहीं। उनके जाने के बाद अब पंजा छाप पार्टी के लोग फायदे नुकसान का जोड बाकी कर रहे है। पंजा छापा पार्टी को ग्रामीण में भी बडी परेशानियों का सामना करना पड रहा है। नाम से कोमल उनकी अध्यक्ष की कठोरता विधायक महोदया की कठिनाई में बदल चुकी है। अध्यक्ष महोदया खुद भी दावेदार थी। टिकट नहीं मिला इसलिए नाराज है। उनकी नाराजगी फूल छाप वालों को फायदा दिला सकती है।
इनके जवाब की बारी
शहर की चुनावी जंग के दो दावेदार वोटरों के सामने अपनी अपनी कथा कह चुके है। स्टेशन रोड वाले भैयाजी के लिए भी जरुरी हो गया था कि वे अपनी कहानी पेश करें। फूल छाप पार्टी बडी पार्टी है और भैयाजी खुद भी बडे नेता है,इसलिए किसी बडे नेता की मौजूदगी के बिना वे सभा करना नहीं चाहते थे। अब उनकी सभा तय हो गई है। फूल छाप पार्टी के सूबे के सदर उनके लिए रतलाम आ रहे है। वे इससे पहले जावरा के डाक्टर सा. के लिए प्रचार करेंगे और इतवार की शाम रतलाम के वोटरों को पटाने का प्रयास करेंगे। हांलाकि रतलाम के लोग सूबे के सदर को सुनने के लिए इतने बेताब नहीं है,जितने कि भैयाजी को सुनने के लिए। राजनीति की जोड बाकी में वक्त खपा रहे शहर के तमाम फुर्सतियों को तीनों दावेदारों के मंच को देखने की उत्सुकता है। ताकि वे हिसाब लगा सके कि कौन कितना दम भरेगा?
इन्हे नहीं पूछ रहा कोई?
चुनावी जंग में शहर के एक-दो नहीं चौदह लोग उम्मीदवार है। जिधर देखिए तीन की ही चर्चा हो रही है। इन तीन के अलावा थोडी बहुत कोई चर्चा है तो जावरा फाटक वाले पुराने पंजा छाप युवा नेता की,जो आटोरिक्शा लेकर गली गली सवारियां ढंूढ रहा है। इसके अलावा लोग और किसी के बारे में बात करने को राजी नहीं। नई सड़क पर नाक कान की डाक्टरी करने वाले डाक्टर साहब को पिछले कुछ सालों से राजनीति का चस्का लगा है। पिछली बार हुए शहर के चुनाव में उन्हे लगा था कि उनके उच्च व्यवसाय की वजह से लोग उनसे प्रभावित होंगे और जातिगत वोट बोनस में मिल जाएंगे। हांलाकि ऐसा कुछ नहीं हुआ। डाक्टर साहब फिर से मैदान में है। इस बार उन्होने सीधे सीधे वोटरों को चेतावनी देने का मन बनाया है। उनके प्रचार वाहन से यही वाक्य गूंजता है कि फिर मत कहना राजनीति में अच्छे लोग नहीं आते। मतलब आप निकाल लें। राजनीति में अच्छे वे ही है,बाकी सब बेकार है।