उज्जैन विकास प्राधिकरण को लगा झटका
समझौते की मूल प्रति कार्यालय से गायब
उज्जैन 3 सितम्बर ।। महाश्वेतानगर के जिस भूखण्ड को लेकर न्यायालय से उौन विकास प्राधिकरण को झटका लगा है। भूखण्ड आवंटन के इस प्रकरण में लाखों का फटका भी प्राधिकरण को सहना होगा, अगर वास्तविक रुप से देखा जाए तो इस मामले में जिम्मेदार से आर्थिक वसूली होना चाहिये। स्थिति यह है कि न्यायालय में तत्कालीन संबंधित अधिकारी द्वारा जो समझौता किया गया था उसकी मूल प्रति ही विकास प्राधिकरण से गायब है।
महाश्वेतानगर में मोतीलाल गेरीमल उपभोक्ता को भूखण्ड क्र. 212 दिया गया, इसे निरस्त किया गया। उपभोक्ता के न्यायालय में जाने पर 3.7.2003 को तत्कालीन जिम्मेदार अधिकारी ने न्यायालय में समझौता पेश किया था। बगैर प्राधिकरण की रजामंदी के ही यह सब कर दिया गया। इस समझौते की मूल प्रति विकास प्राधिकरण कार्यालय से गायब है। मामले की विभागीय जाँच हुई, जिसमें यह तथ्य सामने आ चुका है। यही नहीं मामले में विकास प्राधिकरण के सूत्र बताते हैं कि उक्त भूखण्ड से संबंधित फाईल के साथ भी छेड़छाड़ हुई है और ओवर राइटिंग भी की गई है। मूल समझौता प्रति के गायब होने को लेकर आडिट विभाग ने भी अपनी आपत्ति दर्ज कराई।
शासन ने जवाब में वसूली का पत्र दिया था
विभागीय जाँच के चलते उौन विकास प्राधिकरण ने 18 मार्च 2004 को एक पत्र शासन स्तर पर लिखा था। इसमें सम्पूर्ण प्रकरण का हवाला देते हुए परामर्श मांगा गया था। शासन स्तर से 5 मई 2004 को इसका जवाब आया। इस जवाब में स्पष्ट अंकित किया गया था कि नियमानुसार कार्यवाही की जाये और अगर कोई आर्थिक नुकसान की स्थिति सामने आती है तो संबंधित से आर्थिक नुकसान की वसूली की जाए।
वर्तमान सीईओ ने की है जाँच
प्राधिकरण के सूत्र बताते हैं कि इस भूखण्ड प्रकरण में वर्तमान सीईओ शिवेन्द्रसिंह ने जुलाई 2012 में जाँच की थी। इसमें तत्कालीन सम्पदा अधिकारी को लेकर भी टीप की गई है। जाँच में लिखा गया है कि 8 जुलाई 2003 को मामला न्यायालय में होने पर अभिभाषक से अभिमत लेना था। इसके बावजूद 11.7.2003 को तत्कालीन अधिकारी ने स्वयं निर्णय लेते हुए पैसा जमा कराने का पत्र दे दिया। इसमें प्राधिकरण के 1994 के नियमों का भी उल्लंघन किया गया है। ब्याज एवं मूल्य का मूल्यांकन करने में भी त्रुटि सामने आई है, जिसके आधार पर लाखों की क्षति बताई जा रही है।