डोसीगांव स्थित राजवंश की भूमि शासन को देने को सहमत हुए दावेदार
रतलाम,२३ फरवरी (इ खबरटुडे)। राजसम्पत्तियों की अफरा तफरी को रोकने के लिए प्रशासन द्वारा शुरु किए गए प्रयास रंग लाने लगे है। डोसीगांव स्थित करोडों रु.मूल्य की राजवंश की भूमि पर दावा करने वाले दावेदार इस भूमि पर से अपना दावा छोडने को सहमत हो गए हैं। दावेदारों की ओर से उनके अभिभाषक ने इस आशय का पत्र प्रशासन को सौंपा है। दावेदारों के इस कदम से जहां राजवंश की बहुमूल्य भूमि निजी हाथों में जाने से बच गई है वहीं प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए भूमि मिलने का रास्ता भी साफ हो गया है।
उल्लेखनीय है कि डोसीगांव स्थित सर्वे न.१८१/२/३ की बीस हैक्टेयर भूमि राजवंश की थी। इस भूमि पर दावा जताने वाले नरेन्द्र कुमार बेखालाल श्रेष्ठ का दावा था कि उक्त भूमि उनके पिता ने अंतिम महारानी प्रभाराज्य लक्ष्मी से रजिस्टर्ड विक्रय पत्र के माध्यम से महारानी से खरीद ली थी और इसी तारतम्य में इस भूमि पर बेखालाल श्रेष्ठ का नाम भूमि स्वामी के रुप में दर्ज कर दिया गया था। बाद में बेखालाल श्रेष्ठ के निधन के बाद इस भूमि पर फिर से महारानी प्रभाराज्य लक्ष्मी का नाम गलत तरीके से अंकित कर दिया गया और इसके बाद यह भूमि सिलींग कानून के तहत शासन ने अधिगृहित कर ली थी। स्व.बेखालाल श्रेष्ठ के पुत्र नरेन्द्र ने गलत ढंग से किए गए नामांतरण के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका दायर की गई और इस पुनरीक्षण याचिका में यह मान लिया गया कि उक्त भूमि पर बेखालाल के स्थान पर प्रभाराज्य लक्ष्मी का नाम त्रुटिपूर्ण ढंग से अंकित कर दिया गया था।
यह आदेश मिलने पर नरेन्द्र श्रेष्ठ ने उक्त भूमि बेचने का एक इकरारनामा शुभम कंस्ट्रक्शन के भागीदार राजेन्द्र पितलिया के साथ संपादित कर लिया। इकरार नाम संपादन के बाद नरेन्द्र श्रेष्ठ और राजेन्द्र पितलिया में भूमि विक्रय की शर्तो को लेकर कुछ विवाद हुआ जो कोर्ट तक जा पंहुचा।
इसी दौरान उक्त भूमि को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत चिन्हित करते हुए करते हुए इसे योजना के लिए आवंटित कर दिया गया। कलेक्टर के उक्त आदेश के खिलाफ नरेन्द्र श्रेष्ठ ने इन्दौर उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की,जिसके परिणामस्वरुप उच्च न्यायालय ने कलेक्टर के आदेश पर स्टे प्रदान कर दिया।
डोसीगांव स्थित भूमि के सम्बन्ध में चल रही इस कहानी के बीच में कलेक्टर बी चन्द्रशेखर के निर्देश पर अपर कलेक्टर डॉ कैलाश बुन्देला ने भूमि के दावेदार नरेन्द्र श्रेष्ठ से सम्पर्क किया और उन्हे भूमि के सम्बन्ध में उन दस्तावेजों और प्रमाणों की जानकारी दी जिससे यह स्पष्ट होता है कि उक्त भूमि की सिलींग त्रुटिपूर्ण नहीं थी और वह विक्रय होने से पहले ही शासन में वेष्ठित हो चुकी थी। अपर कलेक्टर द्वारा की गई काउंसिलिंग का परिणाम यह हुआ कि नरेन्द्र श्रेष्ठ को वास्तविक तथ्य की जानकारी हो गई कि उक्त भूमि उसकी या उसके पिता की नहीं थी। अतएव नरेन्द्र श्रेष्ठ ने उक्त भूमि पर से अपने सारे कानूनी दावे वापस लेने का फैसला कर लिया।
अपने अभिभाषक के माध्यम से सौंपे गए पत्र में नरेन्द्र श्रेष्ठ ने लिखा है कि उन्हे यह भी पता चला कि उक्त भूमि का उपयोग गरीबों के हित में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास बनाने के लिए किया जाने वाला है। इस वजह से भी उन्होने यह निर्णय लिया कि वे इस भूमि पर से अपना दावा छोड दें। श्री श्रेष्ठ के इस निर्णय के चलते उनसे भूमि क्रय करने का अनुबंध कर चुके राजेन्द्र पितलिया ने भी अपना दावा छोडने का निर्णय ले लिया। दोनो पक्षकारों की सहमति से उनका हस्ताक्षरित पत्र उनके अभिभाषक के माध्यम से जिला प्रशासन को सौंप दिया गया है।