भारत एक हिन्दू राष्ट्र-जिन्ना का प्रस्ताव
स्वतंत्रता दिवस पर विशेष
-डॉ.डीएन पचौरी
आश्चर्यजनक किन्तु यह एक कटु सत्य है कि यदि भारत के विभाजन की त्रासदी के समय जिन्ना का प्रस्ताव जिसे सरदार पटेल का भी समर्थन प्राप्त था,मान लिया जाता तो विश्व के मानचित्र पर भारत एक सशक्त हिन्दू राष्ट्र के रुप में उभरता। पर एक कहावत है कि लम्हो ने खता की थी सदियों ने सजा पाई। उस समय हमारे तथाकथित महापुरुषों से जो त्रुटियां हो गई उसकी सजा हम भुगत रहे है और न जाने कब तक आगे आने वाली पीढियों को यह सजा भुगती पडेगी।
महात्मा गांधी का हना था कि पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा,पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। क्योकि जिन्ना एक कूटनीतिक दूरदर्शी राजनीतिज्ञ था। उसने स्पष्ट खहा था कि हमारे हिन्दू मित्र समझते क्यों नहीं है कि हिन्दुत्व और इस्लाम दोनो केवल धर्म ही नहीं अपितु दोनो अलग अलग बिलकुल भिन्न रुप से दो अलग धाराएं है,ो कभी नहीं मिल सकती,और ये मेरे हिन्दू दोस्तों का सपना है कि हिन्दू और मुसलमान दोनो एक राष्ट्रीयता ग्रहण कर एक राष्ट्र में रह सकते है। सामाजिक आचार विचार,कार्यकलाप,रीतिरिवाज,धर्मदर्शन और व्यवहार में दोनो अलग हैं। दोनो का इतिहास अलग है। इतना ही नहीं एक का हीरो दूसरे की नजर में दुश्मन है। एक बहुसंख्यक,दूसरे अल्पसंख्यक एक साथ एक देश में नहीं रह सकते है। इनका साथ साथ रहना विनाश को आमंत्रण देना है। इतना ही नहीं मोहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस के अधिकांश सदस्यों को ये प्रलोभन दिया कि पाकिस्तान बनने के बाद एक तो साम्प्रदायिक दंगे समाप्त हो जाएंगे। दूसरे आप लोग स्वतंत्र निर्णय एवं इच्छित पद प्राप्त कर सकेंगे। परिणाम आपके सामने है कि पाकिस्तान बना किन्तु जिन्ना का दूसरा प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया।
जिन्ना ने दूसरा प्रस्ताव रखा था कि पाकिस्तान बनने के बाद हिन्दूस्तान में जितने मुसलमान है,उन्हे पाकिस्तान भेज दिया जाए तथा वहां के हिन्दुओं को हिन्दूस्तान बुला लिया जाए,काश ऐसा होता। इस प्रस्ताव को सरदार पटेल का पूर्ण समर्थन था और बात सही थी कि जब अखण्ड भारत का खण्डन हो रहा है तो ये विभाजन पूर्ण होना चाहिए था। अर्थात सारे हिन्दू हिन्दुस्तान में और सारे मुसलमान पाकिस्तान में रहने चाहिए थे,किन्तु जिन्ना के दूसरे प्रस्ताव पर गांधी जी की आत्मा को कष्ट हुआ और नेहरु जी की जिन्ना से गर्मागर्म बहस हुई। हमारे दोनो महापुरुषों की राय थी कि जो जिस देश में रहना चाहे उसे उस देश में रहने दिया जाए। अत:समझौते की इस बात पर जिन्ना ने चुप रहना ही उचित समझा तथासरदार पटेल भी गांधी जी का इतना आदर करते थे कि वे भी कुछ नहीं बोल सके और खण्डित भारत का विभाजन एक प्रकार से अपूर्ण ही रहा। दोनो महान व्यक्तियों ने दूरदर्शिता दिखाई होती तो देश की इतनी बुरी हालत न होती। न बाबरी मस्जिद काण्ड होता,न १९९३ का बम्मबई बम काण्ड,न गोधरा काण्ड,न हैदराबाद काण्ड और न हाल में बोधगया में हुआ बमकाण्ड,जहां लगातार नौ बमब्लास्ट हुए। हर एक दो माह में देश के नगरों महानगरों में बमब्लास्ट होते रहते हैं। हजारों निर्दोष लोगों की जान जा रही है। पूरा देश आतंक के साये में जी रहा है। घर से सुबह नौकरी या धंधे पर जाने वाला व्यक्ति ये गारंटी नहीं दे सकता कि वह सुरक्षित शाम को घर लौट पाएगा। कब कहां किस बाजार गली,ट्रेन,मॉल या सिनेमाघर में बमब्लास्ट हो जाए,कौन जाने? ऐसा नहीं है कि विभाजन के पूर्व साम्प्रदायिक झगडे नहीं होते थे। ये तो हमेशा से होते आए है। १९३८ का अहमदाबाद का झगडा इतना भीषण था कि सरदार पटेल रोए थे और जैसा कि गांधी जी की आत्मा को कष्ट होता था,उस समय भी हुआ था। काश इन महापुरुषों ने सोचा होता कि उनकी नजर में हिन्दू मुसलमान एक समान है,पर उन्हे तो १० या १५ वर्ष और इस दुनिया में रहना था। बाद में आम आदमी भी साथ साथ रहेंगे जो इतने महान नहीं है कि परस्पर बिलकुल विपरित प्रकृति और कार्यकलापों के बाद भी साथ रहले। आज इन महापुरुषों की महानता के नीचे दबा देश सिसक रहा है। ये साथ रहने के लिए ऐसे समुदाय छोड गए है जो ईश्वर प्रदत्त शारीरिक संरचना और कर्मेन्द्रियों के कार्यों के अलावा हर बात में भिन्न है।
हर बुराई में से अच्छाई निकाली जा सकती है। देश का विभाजन एक दुखद और बुरी घटना था परन्तु लगभग एक हजार वर्ष बाद हिन्दू साम्राज्य स्थापित होने का अवसर आया था और हिन्दुस्तान हिन्दूराष्ट्र बन जाता तो विभाजन की पीडा पर औषधि का कार्य करता,किन्तु महात्मा जी और पंडित जी ने हिन्दू साम्राज्य के स्वपिन्ल महल को पलीता दिखा दिया। महात्मा और पंडित हिन्दुओं के आराध्य और स्तुत्य व्यक्तित्व होते है,लेकिन यहां एक महात्मा और दूसरे पंडित ने हिन्दुत्व की नींव हिला दी। जिन्ना के प्रस्ताव से भारत भले ही हिन्दू राष्ट्र न बन पाया,लेकिन पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्र बन गए और वहां की राष्ट्रभाषा उर्दु हो गई। यहां हिन्दी अभी तक राष्ट्र भाषा नहीं बन पाई है और अंग्रेजी हावी है। कहने को तो जिन्ना ने भी कहा था कि पाकिस्तान में सभी धर्मों का आदर है और हिन्दू,इसाइ,पारसी सभी अपने धर्मों का पालन करते हुए पाकिस्तान में रह सकते है। कहना अलग बात है और उसका पालन करना अलग बात है। पिछले ६६ वर्ष से पाकिस्तान में मुसलमानों के अलावा अन्य जातियों की जो हालत है,दुनिया देखती आ रही है। २५ जनवरी १९४८ और फिर ३ फरवरी १९४८ को सभाओं को सम्बोधित करते हुए जिन्ना ने कहा था कि ऐसे लोग झूठी अफवाहें फैला रहे है,जो कह रहे है कि पाकिस्तान के सिध्दान्तों पर आधारित नहीं होगा,पर ये गलत है। इस्लाम के सिध्दान्त आज भी उतने ही मौजूं है जितने १३०० वर्ष पहले थे। कुरान हमारी जिन्दगी का कोड है। ये हमारी सामाजिक,धार्मिक,नागरिक,सैनिक और दण्ड या सजा देने आदि सभी का फैसला करने वाला कोड है। हर मुसलमान को कुरान की किताब साथ में रखनी चाहिए।कुरान जन्म लेने से मौत के समय तक हमरा नेतृत्व करता है।
वस्तुस्तिथि तो ये है कि पाकिस्तान एक इस्लामिक राष्ट्र के रुप में खडा हो गया किन्तु हिन्दुस्तान? हिन्दुस्तान चूं चूं का मुरब्बा बनकर रह गया,जहां का कोई धर्म नहीं है। यहां हिन्दू मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक झगडे होते रहते है,हो रहे हैं और भविष्य में होते रहेंगे। पाकिस्तान में जिन्ना ने सत्तारुढ होने के बाद किसी हिन्दू को वहां पडे रहने का मशविरा नहीं दिया और जो रह गए,उन्हे एकदम नाकारा बना कर रख दिया,ताकि वह किसी भी तरह पाकिस्तान की राजनीति पर हावी न हो सके। जिन्ना की दृष्टि भविष्य की वास्तविकता को पहचान रही थी लेकिन हमारे नेता धर्मनिरपेक्षता या सेक्यूलरिज्म के शाप का शिकार होकर न जाने किस दुनिया में विचरण कर रहे थे। आज पाकिस्तान में कोई हिन्दू मुस्लिम समस्या नहीं है और पाकिस्तान अपने आपको खुले रुप से इस्लामिक राज्य कहता है। क्योकि वहां कोई गैर मुस्लिम नहीं है और जो कट्टर नहीं है उन्हे अमुस्लिम घोषित कर दिया गया है। थोडे से,न के बराबर हिन्दू क्रिश्चियन वहां बचे है,जिनका कोई वजूद नहीं है। एक अपना देश है,जहां की हालत दिन ब दिन बद से बदतर होती जा रही है। यहां पर पाकिस्तान समर्थक मुसलमानों की संख्या अधिक है। जो बाहर से दिखावा कुछ भी करे उनका मन जानता है। एक तरफ तो इनको पाकिस्तान और अरब देशों से सहायता और सहानुभूति मिल रही है,तथा इन्हे हिन्दुओ से लोहा लेने के लिए तैयार किया जा रहा है। जबकि दूसरी ओर हर अन्तर्राष्ट्रिय सम्मेलन में भारत के मुस्लिमों के कत्लेआम का रोना रोया जाता है। इनमें इस प्रकार देशद्रोह की भावना भरी जा रही है।
सब बातों का सार यह है कि वह स्वर्णिम क्षण चला गया जिस पर उचित व देशहित में निर्णय लेकर इन सब मुसीबतों से निजात पायी जा सकती थी। सन १९९४ में जी.एल.जैन की पुस्तक दि हिन्दू-फिनोमिना प्रकाशित हुई है,जिसके पृष्ठ ५६ पर बडी सटीक बात लिखी है। उसमें लिखा है कि आधुनिक संदर्भों में सोचा जाए तो पता चलेगा कि जिन्ना हिन्दुओं का सबसे बडा शुभचिन्तक मसीहा था। दलगत वोटगत राजनीति को छोडकर निष्पक्ष ढंग से सोचिए कि इस कथन में कितनी सच्चाई है।