November 24, 2024

पानी बरसती गुफा में विराजित है द्वादश ज्योतिर्लिंग

प्रकृति ने स्वयं बनाया है महादेव का यह मन्दिर

(कमलेश्वर महादेव की गुफाओं से लौटकर तुषार कोठारी)

रतलाम,15 जुलाई (इ खबरटुडे)। भारत चमत्कारों का देश है। ये चमत्कार अक्सर दिखाई देते है। कहीं मन्दिर में हजारों चूहे है,तो कहीं सीमा पर माता के चमत्कार के कारण पाकिस्तान के बम ही नहीं फूट पाए। चमत्कारों की कडी में नया नाम है कमलेश्वर महादेव का,जहां पहाडों के नीचे छुपी अंधेरी पानी बरसती गुफाओं में द्वादश ज्योतिर्लिंग विराजित है। प्रकृति द्वारा बनाए गए इस मन्दिर में शिवलिंग के निरन्तर अभिषेक की व्यवस्था भी स्वयं प्रकृति ने ही की है।
कमलेश्वर महादेव का यह चमत्कारिक मन्दिर रतलाम से सटी राजस्थान सीमा के भीतर अरनोद कस्बे के पास स्थित है। इस मन्दिर तक अभी कम ही लोग पंहुच पाए है। घने जंगल में बनी प्राकृतिक गुफाओं के इस क्षेत्र में तेंदूए जैसे हिंसक पशुओं का आवागमन भी आम बात है। आसपास के गांवों के अलावा फिलहाल इस मन्दिर के बारे में जानकारी रखने वाले लोग बेहद कम है।
कमलेश्वर महादेव का यह मन्दिर अरनोद कस्बे से करीब पन्द्रह किमी दूर है। वहां पंहुचने के लिए अभी पक्का रास्ता भी उपलब्ध नहीं है। जब आप कमलेश्वर महादेव के क्षेत्र में पंहुचेंगे तो आपको गोल गुबंद वाला एक छोटा सा मन्दिर नजर आता है। यह भी कमलेश्वर महादेव का मन्दिर है। सामान्यतया देखने पर इस छोटे से मन्दिर के अलावा आप को कुछ भी नजर नहीं आएगा। लेकिन केवल इस मन्दिर के दर्शन कर लौटने की गलती मत कीजिए। मन्दिर से आगे बढने पर सामने बह रही एक बरसाती नदी आपको दिखाई देगी। इस बरसाती नदी पर इन दिनों एक छोटा सा स्टाप डेम भी बनाया जा रहा है। बरसाती नदी की इधर उधर बहती छोटी छोटी धाराओं के बीच आपको नीचे उतरती हुई कुछ टूटी फूटी सीढियां नजर आएंगी। इस सीढियों पर से लगातार पानी बहकर नीचे की ओर जा रहा है। लगातार पानी बहने की वजह से इन सीढियों पर जबर्दस्त फिसलन है और इन सीढियों से नीचे जा पाना बेहद कठिन है। अगर आप उतर सके तो ठीक,वरना दूसरी ओर से एक और रास्ता भी है।


अगले रास्ते पर उपर एक छोटी सी गुफा में आपको फिर से शिवलिंग नजर आएगा। इस गुफा पर ही कमलेश्वर महादेव मन्दिर लिखे हुए शब्द भी नजर आएंगे। लेकिन यह भी वास्तविक कमलेश्वर महादेव नहीं है। इसी गुफा से थोडा आगे बढने पर फिर से नीचे की ओर जाती सीढियां नजर आएंगी। इन सीढियों पर पानी नहीं है,इसलिए फिसलन भी नहीं है। इन सीढियों से नीचे उतरने पर सामने की ओर एक अंधेरी गुफा नजर ओगी,जिसके भीतर अंधेरे की वजह से कुछ भी नजर नहीं आता है। अपने मोबाइल की टार्च जलाकर भीतर नजर डालें तो पता चलता है कि गुफा में पानी भरा हुआ है। हिम्मत करके भीतर घुसने पर आप घुटनों तक पानी में पंहुच जाते है। नीचे उबड खाबड पत्थर है। मोबाइल की रोशनी सामने डालने पर पता चलता है कि सामने एक प्लेटफार्म सा है,जिस पर प्राकृतिक तौर पर द्वादश शिवलिंग बने हुए है। प्रकृति का चमत्कार देखिए कि हर शिवलिंग पर प्रकृति ने स्वयं ही निरन्तर जलाभिषेक की व्यवस्था की है। प्रत्येक शिवलिंग पर जल की धाराएं गिरती रहती है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि गर्मियों में जब नदी पूरी तरह सूख जाती है,तब भी गुफा के भीतर पानी रहता है और शिवलिंग का अभिषेक जारी रहता है। स्थानीय लोगों को इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि यह मन्दिर कब से है। उनके बाप दादाओं के भी बाप दादाओं के जमाने से यह गुफा है। उनका मानना है कि यह तो सदा से ही है। उपर बनाया गया छोटा मन्दिर जरुर तीन चार दशक पूर्व बनाया गया है।
गुफा में स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के बाद आप लौट सकते है,लेकिन अगर आपको प्राकृतिक दृश्यावलियां पसन्द है और अगर आप ट्रेकिंग जैसे शौक रखते है,तो आगे बढिए। यहां अभी कई गुफाएं व झरने और है। एक लम्बी टेढी मेढी और उबड खाबड ढलान के बाद आप नदी के पास नीचे पंहुचते है। फिर दूसरी ओर के पहाड पर चढने के बाद एक गुफा नजर आती है। यहां कई चौपायों के अस्थिकंकाल नजर आते है। मरे हुए पशुओं की बदबू भी फैली हुई है। देखने से पता चलता है कि किसी तेंदूएं ने हाल ही में शिकार किए है। तेंदूएं के पदचिन्ह भी इधर उधर नजर आ जाते है। इस गुफा से आगे बढने पर फिर थोडी चढाई के बाद एक गुफा नजर आती है। इस गुफा में एक ओर फिर से महादेव नजर आते है। महादेव के वाहन नन्दी की मूर्ति भी है,लेकिन वह खण्डित है। गुफा से निकल घूम कर फिर से थोडा उपर चढने पर एक प्राकृतिक कुण्ड दिखाई देता है,जिसमें झरने से लगातार पानी गिर रहा है। इस कुण्ड के पास से निकल कर फिर उपर चढने पर हम फिर से वहीं पंहुच जाते है,जहां से हम शुरु हुए थे। थोडा आगे बढने पर हम समतल भूमि पर पंहुच जाते है। जहां खडे होकर यह अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है कि आगे इतने चमत्कार और सुन्दर प्राकृतिक दृश्यावलियां हो सकती है।
कमलेश्वर महादेव तक पंहुचना थोडा कठिन है। रतलाम से पिपलौदा तक का रास्ता तो बेहद अच्छा है,लेकिन पिपलौदा से आगे का रास्ता खराब है। पहले मध्यप्रदेश की सड़के खराब होती थी और राजस्थान की बेहद अच्छी होती थी। अब स्थिति बदल गई है। अब राजस्थान की सीमा के भीतर जाते ही खराब सड़के मिलने लगती है। पिपलौदा से प्रतापगढ वाले रास्ते पर करीब तीस किमी की दूरी तय करने पर अरनोद कस्बा है। अरनोद में गौतमेश्वर महादेव नामक सुन्दर स्थान है। जोकि काफी प्रसिध्द है। कमलेश्वर महादेव यहां से पन्द्रह किमी दूर है। रास्ता कुछ खराब है,लेकिन वाहन से आसानी से यहां पंहुचा जा सकता है।

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