शिप्रा शुद्धिकरण अवमानना याचिका,प्रशासन को न्यायालय की कड़ी फटकार
सख्त नाराजगी के साथ एक और अवसर दिया,
उज्जैन15 मार्च (इ खबरटुडे) । म.प्र. उच्च न्यायालय खंडपीठ इंदौर ने शिप्रा शुद्धिकरण अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए सोमवार को प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई। सख्त नाराजगी न्यायालय ने जाहिर की।
15 दिन में वस्तुस्थिति की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा
इसके साथ ही प्रशासन को एक अवसर और प्रदान करते हुए 15 दिन में सम्पूर्ण शिप्रा की वस्तुस्थिति की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया है। न्यायालय ने अवमानना के प्रकरण में दण्डित करने का अधिकार सुरक्षित रखा है।
म.प्र. उच्च न्यायालय खंडपीठ इंदौर के न्यायमूर्ति पी.के. जायसवाल, न्यायमूर्ति आलोक वर्मा ने अवमानना याचिका की सुनवाई में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट पढक़र बताई।
कोर्ट को गुमराह करने का अधिकारियों को अंदाजा नहीं-न्यायालय
इसमें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा है कि उसने नगर निगम उज्जैन पर अपराधिक प्रकरण दर्ज किया है। साथ ही नगर निगम को कई नोटिस जारी किये। न्यायालय ने कहा- कोर्ट को गुमराह करने का अधिकारियों को अंदाजा नहीं है। कोर्ट के पास कितने अधिकार हैं और वह अवमानना में कितनी सजा दे सकता है? सिंहस्थ को देखते हुए बजाय दण्डित करने के शिप्रा वास्तविक स्थिति में आ सके, प्रदूषण से मुक्त हो सके इसके लिये न्यायालय ने कमेटी का गठन किया है। उसमें कलेक्टर उज्जैन, नगर निगम आयुक्त उज्जैन एवं इंदौर, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी, पीएचई अधीक्षण यंत्री, याचिकाकर्ता को लेकर शिप्रा के सभी कार्नर का निरीक्षण करेंगे।
न तो नदी में प्रदूषण मिलने दें और न ही कोई जानवर मरा हुआ नदी में मिले
हाईकोर्ट ने उम्मीद जताई है कि सिंहस्थ में आने वाले श्रद्धालुओं को ऐतिहासिक एवं धार्मिक नदी पर आस्था बनी रहे। नदी में किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं हो। कमेटी यह भी देखे कि प्रदूषण रोकने के लिये क्या व्यवस्था की गई है। साथ ही इंदौर का ट्रीटमेंट प्लांट देखेगी। ट्रीटमेंट के उपरांत इस पानी का शुद्धिकरण करते हुए शिप्रा के डाउन स्ट्रीम में उसे कैसे उपयोग में लिया जा रहा है। न्यायालय ने आदेश में कहा कि न तो नदी में प्रदूषण मिलने दें और न ही कोई जानवर मरा हुआ नदी में मिले। इस भरोसे के साथ माननीय उच्च न्यायालय ने अवमानना के प्रकरण में दण्डित करने का अधिकार सुरक्षित रखा है।
इस ऐतिहासिक आदेश के बाद शिप्रा शुद्धिकरण की आशा की किरण जारी है। न्यायालय ने अपना आदेश करीब 6 पेज में अंकित किया है। याचिकाकर्ता बाकिरअली रंगवाला की ओर से वरिष्ठ अभिभाषक अशोक गर्ग, अशोक कुटुम्बले, लोकेश भटनागर, तरुण कुशवाह, पियूष शाह ने पैरवी की। गौरतलब है कि सन् 1998 में शिप्रा शुद्धिकरण को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता बाकिरअली रंगवाला ने उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दाखिल की थी। वर्ष 2002 में न्यायालय ने इस याचिका पर अपना निर्णय दिया था। अधिकारियों पर भरोसा दिखाते हुए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इसकी निगरानी दी गई थी।