शिप्रा प्रदूषित पिण्डदान व अस्थि विसर्जन से नहीं बल्कि गंदे नालों व प्रशासनिक लापरवाही से
उज्जैन,24फरवरी (इ खबरटुडे)।मंगलवार को पोलीटेक्निक कॉलेज में उज्जैन नगर के पुजारियों-पण्डों के सिंहस्थ प्रशिक्षण में शिप्रा की पावनता और इसके प्रदूषित स्वरुप को लेकर भिन्न-भिन्न नजरिया सामने आया।
जहां साहित्यकार डॉ. शिव चौरसिया ने अपने सिंहस्थ मार्गदर्शन में इस महापर्व के दौरान शिप्रा की पावनता के महत्व को गया तीर्थ व गंगा से भी बड़ा पुण्यदायी निरुपित करते हुए इसमें पितृों के पिण्डदान से गंगा का मोक्ष निरुपित किया। वहीं डॉ. चौरसिया के जाने के पश्चात आये कलेक्टर कवीन्द्र कियावत ने शिप्रा की पौराणिक पावनता और वर्तमान में प्रदूषित स्वरुप के कारणों में पिण्डदान, अस्थि विसर्जन से उपजी-निर्मित हुई गाद का तथ्य प्रस्तुत किया तथा सभी से शिप्रा की पावनता के लिये सहयोग मांगा ताकि पांच करोड़ श्रद्धालु सिंहस्थ में शिप्रा स्नान कर सके।
प्रशिक्षण लेने आये अधिकांश पुजारी-पण्डे घाट के पुरोहित कार्य से भी जुड़े हैं। बावजूद इसके वे कलेक्टर को हाथोंहाथ शिप्रा के प्रदूषित स्वरुप में पिण्डदान-अस्थि विसर्जन से उपजी-निर्मित हुई वर्तमान स्थितियों पर साफ-साफ तो कुछ नहीं कह पाये किन्तु इनमें यह चर्चा व आशंका बनी रही कि क्या सिंहस्थ में प्रशासन शिप्रा में प्रदूषण न किये जाने का हवाला देते हुए सिंहस्थ पूर्ण होने तक पिण्डदान, अस्थि विसर्जन कर्मकाण्ड पर प्रतिबंध लगवा देगा? इस संबंध में तीर्थ पुरोहित महासभा के अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी से यह पूछे जाने पर कि क्या शासन का पिण्डदान-अस्थि विसर्जन से फैल रहे शिप्रा प्रदूषण का तर्क सही है व सिंहस्थ को देखते हुए पिण्डदान-अस्थि विसर्जन रोका जायेगा या शासन सहयोग चाहेगा तो पुरोहित-पण्डे पिण्डदान-कर्मकाण्ड कार्य सिंहस्थ पूर्ण होने तक स्थगित रखेंगे? श्री त्रिवेदी का कहना है कि नदियों की पावनता पिण्डदान-अस्थि विसर्जन से नष्ट नहीं हो रही बल्कि प्रशासनिक उदासीनता-लापरवाही के कारण माँ शिप्रा में मिल रहे गंदे नालों व अपशिष्ठ पदार्थों के यहां-वहां पुल-किनारे आदि से फेंके जाने से नष्ट हुई है।
श्री त्रिवेदी तो यहां तक कहते हैं कि मृत आत्मा को इस मोक्ष प्राप्ति के पौराणिक उपाय व कर्मकाण्ड से कौन वंचित कर सकता है। जब तक कर्मकाण्ड के लिये शोक-संतप्त परिजन हमारे पास या तीर्थ पुरोहितों के पास आयेंगे हम पिण्डदान करवाएंगे इसके लिये कोई सख्ती हमारा मार्ग नहीं रोक सकती। शास्त्र व पुराण कहते हैं कि शिप्रा का गंगा व गयाजी तीर्थ से 10 गुना पुण्य फल अधिक है तो फिर हम भला क्यों शोक संतप्त परिवारों को उनके पितृों के मोक्ष कर्म से वंचित करें। यदि शासन ने ऐसी कोई बात रखी भी तो हम मानने वाले नहीं।