अदालत में फाइलें गायब – जस्टिस भट्ट ने खोली पोल, और खुद केस से हटा दिए गए!

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अहमदाबाद, 16 फरवरी(इ खबर टुडे/नीलेश कटारिया)। गुजरात हाईकोर्ट से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने पूरे न्यायिक तंत्र, कोर्ट के कामकाज और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस मामले को लेकर जनता में यह सवाल उठ रहा है – “क्या अब कोर्ट में भी सच्चाई बोलने वालों को सजा मिलती है?”

यह कहानी किसी फिल्मी साजिश से कम नहीं लगती। पहले अदालत की फाइलें गायब होती हैं। जज जांच का आदेश देते हैं। सच्चाई बाहर आने लगती है। और अचानक उसी जज को केस से हटा दिया जाता है। लोग इसे “सच बोलने की सजा” कह रहे हैं। आइए, पूरे मामले को सरल भाषा में समझते हैं, ताकि न्यायिक प्रक्रिया को न जानने वाला आम आदमी भी इसे समझ सके।

फाइलें गायब – कहानी की शुरुआत
13 फरवरी 2025 को गुजरात हाईकोर्ट में जयश्रीबेन प्रदीपभाई जोशी नाम की महिला ने एक अर्ज़ी लगाई थी। मामला था राधनपुर की अदालत (जिला पाटन) में चल रहे क्रिमिनल केस नंबर 75/2010 का। जब उन्होंने राधनपुर कोर्ट से केस की फाइल मंगवाई, तो पता चला – पूरी फाइल गायब है! यानि, जिस केस पर अदालत में फैसला होना था, उससे जुड़ी कागज़ात की पूरी फाइल ही लापता थी। यह सुनकर न्यायमूर्ति संदीप एन. भट्ट चौंक गए। उन्होंने तत्काल फाइल गायब होने की जांच के आदेश दे दिए। जस्टिस भट्ट ने आदेश में लिखा –

“यह अत्यंत गंभीर विषय है। न्याय प्रक्रिया में ऐसी लापरवाही न केवल न्यायपालिका की साख पर सवाल खड़ा करती है, बल्कि पीड़ित पक्ष के न्याय पाने के अधिकार को भी ठेस पहुंचाती है।”

जांच में बड़ा खुलासा – पहले भी हो चुकी है ऐसी गड़बड़ी
जब जांच हुई तो पता चला – 2019 में सूरत की अदालत से भी 15 फाइलें गायब हुई थीं। उस समय वहाँ के जज थे – छठे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (ADJ) ए.टी. उक्राणी। जब उनका ट्रांसफर हुआ था, तो 15 केसों की फाइलें और फैसले वह अपने साथ ले गए थे। 7 महीने तक वे फाइलें गायब रहीं। काफी दबाव के बाद 13 अगस्त 2019 को फाइलें लौटीं। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि इतनी बड़ी गड़बड़ी करने वाले जज के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। उल्टा उन्हें गुजरात हाईकोर्ट की रजिस्ट्री में एक ऊंचे पद पर बैठा दिया गया।

रजिस्ट्री क्या होती है? क्यों है इतनी ताकतवर?
हाईकोर्ट की रजिस्ट्री अदालत का वह विभाग है, जो पर्दे के पीछे से सब कुछ संभालता है। यह तय करता है कि –

किस केस की सुनवाई कब होगी?
किस केस को प्राथमिकता मिलेगी और कौन सा केस लटका रहेगा?
फाइलें कहां जाएंगी और किस जज को कौन सा मामला सौंपा जाएगा? इसलिए, रजिस्ट्री में बैठे अफसर चाहें तो न्याय की गाड़ी दौड़ा सकते हैं या उसे रोक सकते हैं।
जस्टिस भट्ट का आदेश – ‘सुपर अधिकारी’ पर सख्त टिप्पणी
जब जस्टिस भट्ट को पता चला कि जिस ए.टी.उक्राणी ने 2019 में फाइलें गायब की थीं, उन्हें पिछले 6 सालों से हाईकोर्ट की रजिस्ट्री में एक प्रभावशाली पद पर बैठाया गया है, तो उन्होंने 13 फरवरी 2025 को कड़ा आदेश दिया। उन्होंने लिखा –

“यह व्यक्ति खुद को सर्वशक्तिमान (Omnipotent) समझता है।” “वह न्यायिक आदेशों को नजरअंदाज करता है, जानबूझकर देरी करता है।” “छोटे कर्मचारी फाइल गायब करें, तो उनके खिलाफ FIR होती है। लेकिन यह अधिकारी 6 साल से मलाईदार पद पर बैठा है। क्यों?”

रोजमर्रा की प्रक्रिया – जस्टिस भट्ट का रोस्टर बदला गया
13 फरवरी को आदेश देने के कुछ ही दिन बाद, मुख्य न्यायाधीश ने जस्टिस संदीप भट्ट का रोस्टर बदल दिया। अब उन्हें आपराधिक मामलों की सुनवाई से हटा दिया गया। उन्हें सिविल मामलों की डिवीजन बेंच में भेज दिया गया। मतलब यह कि अब जस्टिस भट्ट फाइल गायब होने वाले उस मामले की सुनवाई नहीं कर सकेंगे।

रोस्टर क्या है? यह क्यों महत्वपूर्ण है?
रोस्टर कोर्ट का टाइम-टेबल या ड्यूटी चार्ट होता है। यह तय करता है कि –

किस जज को कौन-सा केस सौंपा जाएगा।
किस जज को मर्डर केस देखने हैं, किसे जमीन विवाद, किसे घोटाले के केस। रोस्टर को मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) तय करते हैं। उनका यह निर्णय पूरी तरह उनके विशेषाधिकार में आता है और इसे किसी और द्वारा प्रभावित नहीं किया जा सकता।
सवाल उठने लगे – क्या यह सच बोलने की सजा है?
यह बदलाव कोर्ट के गलियारों में चर्चा का विषय बन गया। वकील और जानकार कहने लगे – “क्या भट्ट साहब ने ‘सुपर अधिकारी’ की पोल खोली, इसलिए उनका ट्रांसफर कर दिया गया?” “क्या न्यायपालिका में सच बोलने वाले भी सुरक्षित नहीं हैं?” “क्या हाईकोर्ट की रजिस्ट्री में कोई अंदरूनी खेल चल रहा है?”

अब आगे क्या?
21 फरवरी 2025 को इस मामले की अगली सुनवाई होनी है। लेकिन अब भट्ट साहब की जगह कोई और जज सुनवाई करेंगे। क्या सच्चाई सामने आएगी, या मामला रफा-दफा हो जाएगा?

वकीलों और आम नागरिकों की प्रतिक्रिया
सीनियर एडवोकेट (गुजरात हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक प्रतिष्ठा, नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर): “यह मामला न्यायपालिका की स्वतंत्रता को आहत करने वाला है। यदि न्यायाधीशों को प्रशासनिक दबाव में लाकर हटाया जाता रहा, तो न्याय व्यवस्था पंगु हो जाएगी।”

सीनियर एडवोकेट (नाम गोपनीय): “यह घटना न्यायिक तंत्र के भीतर बैठे कुछ प्रभावशाली अधिकारियों की जवाबदेही तय करने की आवश्यकता को उजागर करती है। जब रजिस्ट्री जैसे महत्वपूर्ण स्थान पर बैठे लोग खुद को कानून से ऊपर समझने लगते हैं, तो यह न्यायिक तंत्र की विश्वसनीयता पर सबसे बड़ा खतरा बन जाता है।”

वरिष्ठ महिला एडवोकेट (राधनपुर केस की पीड़िता के पक्ष में): “यह मामला सिर्फ एक फाइल गायब होने का नहीं है, यह उस महिला के न्याय के अधिकार का हनन है। अगर पीड़िता महिला है और उसकी फाइल गायब हो जाए, तो यह दोहरी मार है।”

युवा महिला एडवोकेट: “अदालतों में फाइलों का गायब होना बहुत गंभीर मामला है। यह सीधे-सीधे न्याय प्रक्रिया में रुकावट डालता है और लोगों का कोर्ट पर भरोसा कमजोर करता है। जस्टिस संदीप भट्ट ने इस गंभीर प्रशासनिक गड़बड़ी को उजागर कर सही कदम उठाया। न्यायिक अफसरों और रजिस्ट्री में बैठे अधिकारियों की जवाबदेही तय करना जरूरी है।”

लॉ स्टूडेंट हितेश पटेल: “हमने किताबों में पढ़ा था कि कोर्ट न्याय का मंदिर है। लेकिन यह घटना बताती है कि सिस्टम के भीतर भी कुछ लोग कानून से ऊपर हैं। यह भरोसा तोड़ने वाला है।”

आम जनता की चिंता
राधनपुर के रमेश पटेल ने कहा – “हम कोर्ट को भगवान मानते हैं। पर जब वहाँ भी फाइलें गायब होती हैं, तो हम कहां जाएं?“
नीता चौधरी ने कहा – “महिलाओं के न्याय के लिए अदालत आखिरी उम्मीद है। अगर वह भी डगमगाएगी, तो डर लगता है।”
गुजरात हाईकोर्ट की छवि बचाने के लिए बार एसोसिएशन ने आपात बैठक बुलाई
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, हाल ही में घटी घटनाओं के कारण गुजरात हाईकोर्ट की छवि को लेकर अधिवक्ताओं और न्यायिक हलकों में गहरी चिंता देखी जा रही है। इस मामले को लेकर बार एसोसिएशन के बीच भी गंभीर मंथन चल रहा है। बताया जा रहा है कि हाईकोर्ट की गरिमा और न्यायपालिका की प्रतिष्ठा बनाए रखने के उद्देश्य से, गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन द्वारा सोमवार को एक असाधारण सामान्य सभा बैठक बुलाई गई है।

नोट: यह रिपोर्ट गुजरात हाईकोर्ट के आदेश, ‘बार एंड बेंच’ की रिपोर्ट और सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है। सभी नाम और घटनाएं विशिष्ट संदर्भ में प्रस्तुत की गई हैं और किसी भी व्यक्ति या संस्था की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आलोचना का उद्देश्य नहीं है। यदि इस रिपोर्ट में दी गई जानकारी से संबंधित कोई पक्ष विवादित महसूस करता है, तो “खुली किताब” उस पक्ष को अपना पक्ष प्रस्तुत करने का पूरा अवसर प्रदान करेगा।

www.khulikitab.in से साभार

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