December 25, 2024

20 लाख करोड़ के अनुदान में से बड़ा हिस्सा देकर दूध, सब्जी, फल, फूल उत्पादक किसानों को जीवनदान दे सरकार

kisaan

प्रभाकर केलकर

 कृषि मंत्रालय का परिपत्र कहता है कि संसार के सबसे बड़े दूध उत्पादक व अन्य खेती उत्पादक किसान, देश की 75% हिस्सेदारी लघु, सीमांत,व भूमिहीन किसानों की है। लगभग 10 करोड़ों किसान दूध उत्पादक व पशुपालक हैं। जिनका दूध लगभग आधे भाव पर बिक रहा है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, पूर्वोत्तर से गुजरात तक दूध उत्पादक किसान बदहाल हो रहे हैं। कमर टूट गई है। तालाबंदी में अब गाय का दूध जो A2 का भी है  महाराष्ट्र में तीस – 35₹ किलो और उत्तर प्रदेश में 15 से 20₹ किलो बेचने पर मजबूर हो रहे हैं। दूध उत्पादक किसानों पर चौतरफा मार पड़ रही है। 1 खल, चूंन  के भाव दुगुने हो गए हैं। जो 50 किलो की बोरी पहले 600 ₹  में मिलती थी अब 1200/₹  से ऊपर हो गई है। 2 दूध खरीदार नहीं है 3 दूध का पूरा मूल्य नहीं मिल रहा है। 4 दुधारू पशु खरीदने जो कर्ज लिया था वह बढ़ रहा है। पशु  क्रेडिट कार्ड योजना कारण अधिक पशु खरीदे गए। पर्याप्त दाना नहीं होने से पशु दुबले हो रहे हैं वह अलग से। यही हाल राजस्थान कर्नाटक असम पंजाब का है। देश की बड़ी – बड़ी डेरीयों ने खरीदारी घटा दी है। मध्यप्रदेश की सांची डेयरी ने 1 रुपए प्रति फेट याने 6 ₹ प्रति किलो भाव कम कर दिया है। दूध की खरीदारी कम कर दी है। राहत के रूप मेंसरकार तीन प्रकार से सहयोग कर सकती है। 1 दूध खरीद कर राशन की दुकानों पर सस्ता दूध बाटे। 2  दूध के बने पदार्थ जैसे दूध पाउडर आदि के पैकेट आंगनवाड़ी, ग्रामो के विद्यालय आदि के माध्यम से बांटे 3  सरकारे जल्दी से जल्दी दूध उत्पादक किसानों को घर-घर दोनों समय दूध बांटने की सुविधा चालू करें।     

 यही हाल सब्जी उत्पादक किसानों का है। भारत में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र, हरियाणा, असम, बंगाल, बिहार आदि प्रदेशों में बड़े पैमाने पर सब्जी पैदा की जाती है। करोड़ों सब्जी उत्पादक किसान हैं। बंगाल में खीरा सड़ा, छत्तीसगढ़ में लौकी टमाटर फीके, टाला बन्दी के कारण सब्जियां दूर बड़े शहरों तक नहीं भेज सकते इसलिए होने पौने दाम पर आसपास बेचने को मजबूर हैं। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के किसान रामाधार जौनपुर के सतीश रघुवंशी कहते हैं लोकी जो पहले 30 – 40, ₹  बेचलेते थे।15 से 20 ₹  रुपए किलो बेचने पर मजबूर हैं या फिर फेकना पड़ती हैं। उज्जैन के रामेश्वर पाटीदार मिर्च उत्पादक कहते हैं ₹4 लाख खर्चा कर कर मिर्च बोई थी जो 40 ₹  Kई जगह 10 ₹ किलो बेचना पड़ रही है। किसानों को टमाटर ₹5 किलो में भी खरीदार नहीं मिल रहे हैं।  राजस्थान के चित्तौड़, झालावाड़ क्षेत्र के सब्जी उत्पादक किसान मूल्य – भाव नहीं मिलने के कारण सिर पकड़े बैठे हैं। झालावाड़ के प्रवीण सिंह  कहते हैं कोरोना डायन खाए जात है।  दूसरी ओर देश में सब्जी उत्पादन लगभग दोगुना हो गया है। हमारा देश विश्व का दूसरा फल सब्जी उत्पादक देश है। जहां 13300 करोड रुपए का उत्पादन व्यवस्था के अभाव में बर्बाद हो जाता है। इंदौर के विनय शर्मा को कोर्ट से राहत मिल पाई है। भोपाल के जैविक किसान मिश्री लाल राजपूत कहते हैं। कितनी फेंके, अब तो सड़ने से गंध आने लगी है । देश में फूलों का उत्पादन काफी होता है इसमें तमिलनाडु 20% कर्नाटक 13.5% पश्चिम बंगाल 12.2% सहित मध्य प्रदेश गुजरात आंध्र उड़ीसा झारखंड मिजोरम हरियाणा मुख्य फूल उत्पादक राज्य है। लेकिन इस वर्ष तालाबंदी के कारण नवरात्रि सहित तमाम त्यौहार सूखे निकल गए विवाह एवं अन्य समारोह भी बंद है। ऐसे में फूल उत्पादक किसानों ने कहीं ट्रैक्टर से कई हाल बैलों से, कही हाथो से उखाड़कर फूलों की खड़ी फसलों को नष्ट कर दिया है। शायद कोई दूसरी फसल कर सकें। उत्तर प्रदेश के किसान कमलेश मौर्य कहते हैं फूलों की खेती ने हमें भूखे मरने की  कगार पर ला दिया है खर्चा ही खर्चा है मिलता कुछ नहीं।

 कुल मिलाकर ऊपर का वर्णन पूरे जोर-शोर से यह बता रहा है कि ग्रामीण भारत की हालत बहुत खराब है। वह मौन है, किससे अपनी कथा कहें उनकी ! भगवान पर चढ़ने वाले फल फूल या दूध हो स्वयं भगवान के ही कपाट नहीं खुल रहे हैं तो किसान की कौन सुने। दिनांक 12 मई को माननीय प्रधानमंत्री जी के भाषण में 20 लाख करोड़ राहत अनुदान की घोषणा ग्रामीण भारत ने सुनी है। वे चाहते हैं कि सब्जी फल फूल दूध पशुपालन मछली पालन आदि सभी को बड़ा हिस्सा मिले क्योंकि उनकी फैक्ट्रियां यानी कृषि कभी बंद नहीं होती। भाव, मूल्य मिले या ना मिले – आंधी तूफान आएँ, चाहे महामारी या टिड्डी दल। उन्हें तो खेती पशुपालन करना ही है।  हरियाणा के सोनीपत जिले के मनोरी गांव के पदम पुरस्कार से सम्मानित किसान कंवल सिंह कहते हैं क्रेडिट कार्ड की सीमा 3 से बढ़ाकर 5 से 10 लाख तक करना चाहिए। इससे बड़ी राहत होगी। किसानो को कृषि ऋणों पर गैरेंटी सरकारों को देना चाहिए। हम 55% हैं। एक बड़ी इकनॉमी हैं। वित्तमन्त्री से हमें पूर्ण आशा और विश्वास है कि राहत भी बड़ी मिलेगी। और ये राहत केवल आर्थिक ही नहीं – हमारी ओर देखने की भी मिलनी चाहिए। अब तो हमारे युवा बच्चे, भाई आदि भी गांव में लौट आएं हैं। उन्हें काम पर , रोजगार पर लगाना है। स्वावलंबी,स्वदेशी, आत्मनिर्भर भारत बनाना है। तो हम बड़ी उम्मीद लगाएं बैठे हैं। क्या आप की सरकार आपके द्वार दिखेगी।

लेखक भारतीय किसान संघ के   अ.भा. उपाध्यक्ष हैं

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