1957 से 2008 तक की मतगणना की स्थिति
इस बार किस विस क्षेत्र में बनेगा रेकार्ड
अब तक बड़नगर में सबसे कम, दक्षिण में सर्वाधिक मतों की हार-जीत रही
उज्जैन 6 दिसम्बर (इ खबरटुडे)। विधानसभा चुनाव 2013 के तहत मतगणना के लिये उल्टी गिनती शुरु हो चुकी है। ऊंट किस करवट बैठेगा रविवार को दोपहर में यह स्पष्ट हो जायेगा। मतगणना में पिछली 13 विधानसभा में उज्जैन जिले की 7 विधानसभा क्षेत्रों में जीत-हार की अपनी स्थिति रही है। जिले में वर्ष 1962 के चुनाव में सबसे कम 175 मतों की जीत का अंतर रहा है। 2003 के चुनाव में सर्वाधिक 28544 मतों की जीत का अंतर रहा है। जिले की सातों विधानसभा में इससे कम मतों से न तो किसी की हार हुई और न ही इससे अधिक मतों के अंतर से किसी ने चुनाव जीता है।
उज्जैन जिले की सात विधानसभा क्षेत्रों में सबसे कम मतों से 1962 में बड़नगर में जीत का अंतर रहा है। मात्र 175 मतों के अंतर से श्री रामप्रकाश ने इस चुनाव को जीता था। वर्ष 2003 में उज्जैन दक्षिण में शिवनारायण जागीरदार ने 28544 मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी।
बड़नगर में धबाई की जीत याद रहेगी
वर्ष 2003 में भाजपा ने बड़नगर से शांतिलाल धबाई को अपना प्रत्याशी बनाया था। कांग्रेस की ओर से एक बार के विधायक रहे वीरेन्द्रसिंह सिसौदिया मैदान में थे। दोनों के बीच जमकर टक्कर हुई। धबाई ने 20407 मतों के अंतर से जीत हासिल की। इस चुनाव में 5 उम्मीदवार मैदान में थे। बड़नगर में 1957 से लेकर अब तक हुए चुनाव में जिले में सबसे कम मतों के अंतर से 1962 में एसओसी के श्री रामप्रकाश ने कांग्रेस के श्री कन्हैयालाल को शिकस्त दी थी। मात्र 175 मतों के अंतर से यह हार-जीत हुई थी। इस चुनाव में 4 उम्मीदवार मैदान में थे। 2003 के चुनाव में बड़नगर में जीत का इतिहास रचने वाले धबाई 2008 के चुनाव में अपनी ही लीड को कायम नहीं रख पाये और जीत का अंतर मात्र 6070 मतों का रहा था। इस बार इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की ओर से मुकेश पण्डया, कांग्रेस की ओर से महेश पटेल निर्दलीय सुकमाल जैन मैदान में हैं। ग्रामीणों के मुताबिक मुख्य टक्कर भाजपा और कांग्रेस उम्मीदवार के बीच ही है।
1245 से 16460 के बीच ही रहा अंतर
विधानसभा क्षेत्र नागदा-खाचरौद में सन् 1957 से 2008 तक के चुनाव परिणाम में जीत का सबसे कम अंतर 1245 मतों का सन् 1972 में रहा। जीत का सर्वाधिक अंतर सन् 1967 में रहा। इस वर्ष श्री वीरेन्द्रसिंह ने जे.एस. की ओर से चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस के वहीदउद्दीन कुरैशी को 16460 मतों से पराजित किया था। अगले चुनाव में वे स्वयं अपनी बढ़त कायम नहीं रख पाये। कुंवर वीरेन्द्रसिंह बी.जे.एस. से चुनाव लड़े। उन्होंने कांग्रेस के राजेन्द्र कुमार जैन को 1245 मतों के अंतर से पराजित किया। उौन जिले की नागदा-खाचरौद एकमात्र ऐसे विधानसभा है जहां 2 बार निर्दलीयों ने जीत दर्ज की है। वर्ष 1962 में भैरव भारती ने निर्दलीय जीत दर्ज की थी। इसके उपरांत 2003 में दिलीप गुर्जर ने यहां निर्दलीय रेल का इंजन चलाया था।
महिदपुर में 295 से 18717 का अंतर रहा
विधानसभा क्षेत्र महिदपुर में सन् 1957 से 2008 तक के चुनाव परिणाम में जीत का अंतर सबसे कम 295 और सर्वाधिक 18717 का रहा है। 1957 में यहां से 2 सदस्य हुआ करते थे। वर्ष 1980 के चुनाव में आनंदीलाल छजलानी ने कांग्रेस आई से चुनाव लड़ते हुए भाजपा के शिवनारायण चौधरी को 295 मतों के अंतर से हराया। इस चुनाव में 6 उम्मीदवार मैदान में थे। सर्वाधिक मतों के अंतर से वर्ष 2003 में भाजपा के प्रत्याशी रहे बहादुरसिंह चौहान ने यहां से चुनाव जीता था। उन्होंने 18717 मतों के अंतर से कांग्रेस के प्रतापसिंह गुर को पराजित किया था। इस चुनाव में 9 अभ्यर्थी मैदान में थे।
तराना में 1273 से 12999 का अंतर
तराना विधानसभा के पिछले चुनाव में सबसे कम जीत का अंतर 1980 में रहा है और सर्वाधिक जीत का अंतर 2003 में रहा है। 1980 में कांग्रेस आई की ओर से दुर्गादास सूर्यवंशी ने भाजपा के नारायणसिंह केसरी को 1273 मतों के अंतर से शिकस्त दी थी। इस चुनाव में 3 अभ्यर्थी मैदान में थे। श्री सूर्यवंशी ने अगले चुनाव में अपनी जीत के अंतर को करीब 3 गुना वृध्दि दी थी। तराना विधानसभा के चुनाव में अब तक के सर्वाधिक मतों से जीत का अंतर कायम करने वाले भाजपा के ताराचंद गोयल रहे हैं। वर्ष 2003 में तत्कालीन लोक निर्माण विभाग रायमंत्री बाबूलाल मालवीय को 12999 मतों से 7 उम्मीदवारों की उपस्थिति में शिकस्त दी थी।
घट्टिया में 1374 से 9313 का अंतर
घट्टिया विधानसभा क्षेत्र के 1977 से उपलब्ध रिकार्ड के मुताबिक यहां जीत का सबसे कम अंतर 1980 में रहा और जीत का सर्वाधिक अंतर 2003 में रहा है। 1980 के चुनाव में 8 उम्मीदवारों की उपस्थिति में मुख्य मुकाबला भाजपा के श्री नागूलाल मालवीय और कांग्रेस ई के श्री अवन्तिकाप्रसाद मरमट के बीच हुआ था। इस चुनाव में श्री मालवीय ने 1374 मतों से जीत दर्ज की थी। वर्ष 2003 में यहां सर्वाधिक मतों से जीत का रेकार्ड बनाने वाले एमबीबीएस चिकित्सक नारायण परमार रहे हैं। उन्होंने भाजपा की ओर से चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस के प्रत्याशी रामलाल मालवीय को 9313 मतों से शिकस्त दी थी। इस चुनाव में 9 उम्मीदवार मैदान में थे। खास बात यह थी कि डॉ. परमार शासकीय सेवा से सीधे राजनीति में आये थे और मालवीय एक बार के विधायक थे।
उज्जैन उत्तर में 2033 से 21912 का अंतर
उज्जैन उत्तर विधानसभा क्षेत्र में 1957 से 2008 के उपलब्ध चुनाव परिणामों के मुताबिक वर्ष 1969 के उपचुनाव में जीत के मतों का सबसे कम अंतर 2033 दर्ज किया गया था। इस चुनाव में 4 अभ्यर्थियों की उपस्थिति में मुख्य मुकाबला जे.एस. के श्री महादेव जोशी और कांग्रेस की सुश्री हंसा बेन के बीच हुआ था। श्री जोशी ने 2033 मतों से जीत दर्ज की थी। वर्ष 2008 के चुनाव में तीन बार के विधायक रहे और चौथी बार चुनाव लड़ रहे भाजपा के पारस जैन ने जीत का सर्वाधिक अंतर कायम किया। उन्होंने कांग्रेस के डॉ. बटुकशंकर जोशी को 21912 मतों के अंतर से शिकस्त दी। इस चुनाव में कुल 12 अभ्यर्थी मैदान में रहे थे।
उज्जैन दक्षिण 2470 से 28544 का अंतर
उज्जैन दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में जिले की 7 विधानसभा क्षेत्रों में सर्वाधिक उम्मीदवारों के मैदान में उतरने का भी रेकार्ड है। वर्ष 1990 में 29 उम्मीदवारों के मैदान में रहते हुए यहां चुनाव हुए थे। इसी वर्ष उज्जैन उत्तर में 28 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे। खास बात तो यह है कि इसी वर्ष महिदपुर में भी 17 उम्मीदवार मैदान में थे। 1957 से लेकर 2008 के चुनावों में सबसे कम मतों के अंतर से 1998 में कांग्रेस की प्रीति भार्गव ने जीत दर्ज की थी। उन्होंने भाजपा के एक बार के विधायक रहे शिवा कोटवानी को 2477 मतों के अंतर से 6 अभ्यर्थियों की उपस्थिति में शिकस्त दी थी। इसका बदला भी भाजपा ने वर्ष 2003 के चुनाव में जोरदार तरीके से लिया था। भाजपा उम्मीदवार शिवनारायण जागीरदार ने कांग्रेस की श्रीमती प्रीति भार्गव को इस वर्ष 12 उम्मीदवारों की उपस्थिति में 28544 मतों के अंतर से शिकस्त दी थी।
भाजपा बढ़त कायम रख सकेगी?
वर्ष 2003 के चुनाव में भाजपा ने प्रदेश में विजय पताका फहराई थी। इस वर्ष के चुनाव में भाजपा के उम्मीदवारों ने उौन जिले में रेकार्ड मतों के अंतर से जीत कायम की। इस चुनाव में जिले में 6 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा काबिज हुई। मात्र एक विधानसभा क्षेत्र में ही निर्दलीय दिलीप गुर्जर ने नागदा-खाचरौद विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीता था। इसके ठीक अगले चुनाव यानी 2008 में परिस्थितियां तब्दील हुई और कांग्रेस ने 7 में से 3 विधानसभा क्षेत्र में फिर से अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी। नागदा-खाचरौद, घट्टिया, महिदपुर में उसके प्रत्याशियों ने विजय हासिल की। 2003 से 2008 के अंतर में ही भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी अपनी बढ़त का अंतर कायम नहीं रख सके। जिले में एकमात्र प्रत्याशीइस बार किस विस क्षेत्र में बनेगा रेकार्ड