15 दिनों तक करेंगे पितरों की आवभगत
पितृ को देंगे जल और भोजन, आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक पितरों को निमित्त लोग देंगे धूप, होंगे पिण्ड दान और तर्पण
उज्जैन 19 सितम्बर। अश्विन मास के कृष्ण पक्ष के पन्द्रह दिन पितृ पक्ष के नाम से विख्यात है। आज से इन 15 दिनों में लोग अपने पित्रों को जल और अन्न देंगे और उनकी मृत्यु तिथि पर श्राध्द कर पित्रों का ऋण श्राध्द द्वारा चुकाएंगे। पितृ पक्ष श्राध्दों के लिए निश्चित पन्द्रह तिथियों का एक समूह है। लोग आज से अपने पित्रों की शांति के लिए गयाकोठा, सिध्दवट एवं रामघाट पर पिण्डदान और तर्पण कर पितृ मोक्ष की कामना करेंगे।
श्राध्द का अर्थ है, श्रध्दा से जो कुछ दिया जाय। पितृ पक्ष में श्राध्द करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। पितृ पक्ष में श्राध्द तो मुख्य तिथियों को ही होते हैं, किन्तु तर्पण प्रतिदिन किया जाता है। देवताओं तथा ऋषियों को जल देने के अनन्तर पितरों को जल देकर तृप्त किया जाता है।
यद्यपि प्रत्येक अमावस्या पितरों की पुण्यतिथि है तथापि आश्विन की अमावस्या पितरों के लिये परम फलदायी है। इसी प्रकार पितृ पक्ष की नवमी को माता के श्राध्द के लिये पुण्यदायी माना गया है। श्राध्द के लिये सबसे पवित्र स्थान गयातीर्थ है। जिस प्रकार पितरों के मुक्तिनिमित्त गया को परम पुण्यदायी माना गया है, उसी प्रकार माता के लिये काठियावाड़ का सिध्दपुर स्थान परम फलदायी माना गया है। इस पुण्य क्षेत्र में माता का श्राध्द करके पुत्र अपने मातृ ऋण से सदा-सर्वदा के लिये मुक्त हो जाता है। यह स्थान मातृगया के नाम से भी प्रसिध्द है।
धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितरों को पिण्डदान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धन्यादि की प्राप्ति करता है। यही नहीं, पितरों की कृपा से ही उसे सब प्रकार की समृध्दि, सौभाग्य, राय तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। आश्विन मास के पितृ पक्ष में पितरों को आशा लगी रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्डदान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। यही आशा लेकर वे पितृलोक से पृथ्वी लोक पर आते हैं। अतएव प्रत्येक हिन्दू सद्गृहस्थ का धर्म है कि वह पितृ पक्ष में अपने पितरों के निमित्त श्राध्द एवं तर्पण अवश्य करें तथा अपनी शक्ति के अनुसार फल-मूल जो भी संभव हो, पितरों के निमित्त प्रदान करें। पितृपक्ष पितरों के लिये पर्व का समय है, अतएव इस पक्ष में श्राध्द किया जाता है।
महालया (पितृविसर्जनी अमावस्या)- आश्विन कृष्ण अमावस्या को पितृ विसर्जनी अमावस्या अथवा महालया कहते हैं। जो व्यक्ति पितृपक्ष के पन्द्रह दिनों तक श्राध्द-तर्पण आदि नहीं करते हैं, वे अमावस्या को ही अपने पितरों के निमित्त श्राध्दादि सम्पन्न करते हैं। जिन पितरों की तिथि याद नहीं हो, उनके निमित्त श्राध्द, तर्पण, दान आदि इसी अमावस्या को किया जाता है। आज के दिन सभी पितरों का विसर्जन होता है। अमावस्या के दिन पितर अपने पुत्रादि के द्वार पर पिण्डदान या तिलांजलि आदि नहीं मिलती है तो वे शाप देकर चले जाते हैं। अतएव एकदम श्राध्द का परित्याग न करे, पितरों को संतुष्ट अवश्य करें।
श्राध्दकर्ता के लिये वर्जित
जो श्राध्द करने के अधिकारी हैं, उन्हें पूरे पन्द्रह दिनों तक क्षौरकर्म नहीं कराना चाहिये। पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये। प्रतिदिन स्नान के बाद तर्पण करना चाहिये। तेल, उबटन आदि का उपयोग नहीं करना चाहिये। दातौन करना, पान खाना, तेल लगाना, भोजन करना, स्त्री प्रसंग, औषध सेवन और दूसरे का अन्न ये श्राध्दकर्ता के लिये वर्जित है।
श्राध्द में पवित्र
दौहित्र (पुत्री का पुत्र), कुतप (मध्यान्ह का समय) और तिल- ये तीन श्राध्द में अत्यंत पवित्र हैं और क्रोध, अध्वगमन (श्राध्द करके एक स्थान से अन्यत्र दूसरे स्थान में जाना) एवं श्राध्द करने में शीघ्रता- ये तीन वर्जित हैं।
श्राध्द में अन्न
मनुष्य जिस अन्न को स्वयं भोजन करता है, उसी अन्न से पितर और देवता भी तृप्त होते हैं। पकाया हुआ अथवा बिना पकाया हुआ अन्न प्रदान करके पुत्र अपने पितरों को तृप्त करें।
श्राध्द में ब्राह्मण
समस्त लक्षणों से सम्पन्न, विद्या, शील एवं सद्गुणों से सम्पन्न तथा तीन पुरुषों (पीढ़ियों) से विख्यात ब्राह्मणों के द्वारा श्राध्द सम्पन्न करें।
श्राध्द में वर्जित ब्राह्मण
श्राध्द में भोजन पर बुलाए गए ब्राह्मण का विशेष ध्यान रखें। लंगड़ा, काना, दाता का दास, अंगहीन एवं अधिक अंगवाला ब्राह्मण श्राध्द में निषिध्द है। देवकार्य, पूजा-पाठ आदि में ब्राह्मणों की परीक्षा न करें किन्तु पितृ कार्य में अवश्य करें।