June 29, 2024

हाउसिंग बोर्ड धोखाधडी मामले में जांच की खामियां उजागर,उच्च न्यायालय ने रद्द की एफआईआर

रतलाम,16 फरवरी (इ खबरटुडे)। हाउसिंग बोर्ड के कतिपय कर्मचारियों और अधिकारियों द्वारा धोखाधडी कर बेचे गए भूखण्डों के मामले में अब अनुसंधान की खामियां सामने आने लगी है। धोखाधडी के अनेक मामलों में कई लोगों को गलत तरीके से आरोपी बना दिया गया था। उच्च न्यायालय ने एक मामले में पुलिस द्वारा की दर्ज की गई एफआईआर को रद्द करने के आदेश जारी किए हैं।
उल्लेखनीय है कि हाउसिंग बोर्ड में विगत वर्षों में कई रिक्त पडे प्लाटों को फर्जी तरीके से बेच दिया गया था। एक मामला सामने आने के बाद एक के बाद एक लगातार  धोखाधडी के कई मामने सामने आए थे। इनमें पुलिस द्वारा अलग अलग एफआईआर दर्ज की गई थी। लेकिन अब सामने आ रहे तथ्यों के मुताबिक इनमेें से कई मामलों में अनुसंधान में बडी खामियां थी और कई ऐसे लोगों को भी आरोपी बना दिया गया था,जिनका इन मामलों से कोई लेना देना नहीं था।
उच्च न्यायालय की इन्दौर खण्डपीठ ने हाल में एक याचिका का निराकरण करते हुए एक आपराधिक मामले में आरोपी बनाए गए हाउसिंग बोर्ड के पूर्व कार्यपालन यंत्री दिनेश कुमार माथुर के विरुध्द दर्ज की गई एफआईआर को निरस्त करने के आदेश दिए है।
उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति वेदप्रकाश शर्मा ने अपने आदेश में कहा है कि दीनदयाल नगर पुलिस थाने पर दर्ज अपराध क्रम 269/1 में आरोपी बनाए गए दिनेश कुमार माथुर के विरुध्द कोई मामला नहीं बनता। इसलिए श्री माथुर का नाम इस प्रकरण से  हटाया जाए।

यह था मामला

 प्रकरण के तथ्यों के मुताबिक 27 मई 2016 को मोतीलाल नामक व्यक्ति ने दलाल अशोक कुमार दइया और निर्मला पति राम किशन के खिलाफ धोखाधडी की एक शिकायत पुलिस को की थी। इस शिकायत में मोतीलाल ने बताया था कि आरोपीगण ने प्लाट न.एफ-201 धोखाधडी करके उसे बेच दिया था। पुलिस ने इस शिकायत की जांच के बाद याचिकाकर्ता दिनेश माथुर और चार अन्य आरोपियों मनोहरलाल,अशोक दइया,गोपाल और कृष्णा सिंह के विरुध्द आपराधिक प्रकरण दर्ज कर रतलाम न्यायालय में इनके विरुध्द चार्जशीट प्रस्तुत की थी। चार्जशीट में अशोक कुमार माथुर के विरुध्द यह आरोप लगाया गया था कि उसने हाउसिंग बोर्ड के कार्यपालन यंत्री के रुप में उन्होने मृत रामकिशन के नाम के प्लाट को उसकी पत्नी निर्मलाबाई के नाम पर दर्ज किया था। जबकि वास्तविकता यह थी कि हाउसिंग बोर्ड में पंहुची कथित निर्मलाबाई नकली निर्मलाबाई थी और वास्तविक निर्मलाबाई को इस पूरे मामले की कोई जानकारी ही नहीं थी। पुलिस ने भादवि की धारा 419,420,467,468,471 सहपठित 34 के तहत आरोपियों के विरुध्द प्रकरण दर्ज किया था।
इससे व्यथित होकर अशोक कुमार माथुर ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा ४८२ के तहत उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका प्रस्तुत कर एफआईआर निरस्त करने की प्रार्थना की थी।

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