हाईकोर्ट में लंबित मुकदमों का बोझ कम करने शनिवार भी कार्यदिवस घोषित
जबलपुर,19 मई(इ खबरटुडे)। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन करते हुए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने लंबित मुकदमों का बोझ कम करने की दिशा में बाकायदे योजना बनाकर कार्य शुरू कर दिया है। इसका आगाज शनिवार 19 मई से हो रहा है। शनिवार आमतौर पर अवकाश दिवस होता है, लेकिन समर वेकेशन की शुरुआत के बावजूद शनिवार को विधिवत आदेश जारी करके कार्यदिवस घोषित किया गया है। इसका इस्तेमाल उन क्रिमनल अपीलों की सुनवाई के लिए किया जाएगा जिनका संबंध 5 वर्ष या उससे अधिक समय से जेलों में बंद अपीलार्थियों से है।
वकीलों की रिटर्न प्रेयर पर आगे बढ़ेगी डेट
रजिस्ट्रार जनरल मोहम्मद फहीम अनवर ने बताया कि 21 मई से 25 मई तक ग्रीष्मकालीन अवकाश का पहला हफ्ता लंबित मुकदमों का बोझ कम करने के नाम होगा। इस दौरान क्रिमनल अपील सुनवाई के लिए लिस्टेड की जाएंगी। जो वकील अपना केस लिस्टेड होने के बावजूद सुनवाई बढ़ाने की लिखित प्रेयर करेंगे, उनके केस की सुनवाई तिथि आगे बढ़ा दी जाएगी।
प्रति सोमवार व गुरुवार स्पेशल बेंच
समर वेकेशन अवधि में पहले हफ्ते लंबित मुकदमों का बोझ कम करने सभी बेंच कार्य करेंगी। इसके बाद प्रति सोमवार व गुरुवार स्पेशल वेकेशन बेंच बैठेंगी। इनके जरिए अर्जेंट नेचर के केसों की सुनवाई की जाएगी।
उन्होंने बताया कि मुख्य न्यायाधीश हेमंत गुप्ता के निर्देश पर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के विमर्श के बाद कार्ययोजना बनाई गई है। विगत वर्ष भी इसी तरह की कार्ययोजना बनाई गई थी, जिसके बेहतर परिणाम सामने आए थे। लिहाजा, उसी उत्साह के साथ इस वर्ष भी लंबित क्रिमनल अपीलों की संख्या घटाए जाने की दिशा में संकल्प लिया गया है।
एक हजार से अधिक क्रिमनल अपील निराकृत होने की उम्मीद
रजिस्ट्रार जनरल ने भरोसा जताया कि मुख्यपीठ जबलपुर और खंडपीठ इंदौर व ग्वालियर में पिछले वर्ष एक हजार से कम क्रिमनल अपील निराकृत कर दी गई थीं। लेकिन इस वर्ष एक हजार से अधिक क्रिमनल अपील निराकृत होने की पूरी उम्मीद है।
एक लाख से अधिक मुकदमे लंबित
हाईकोर्ट के सांख्यकीय आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में एक लाख से अधिक मुकदमों का बोझ है। इनमें से 45 हजार से अधिक क्रिमनल और 65 हजार के लगभग सिविल मामले हैं।
लोकअदालतों की अहम भूमिका
मध्यप्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव ब्रजेन्द्र सिंह भदौरिया ने बताया कि लोक अदालतों के जरिए प्रतिवर्ष काफी संख्या में लंबित मुकदमों का बोझ कम कर दिया जाता है। इसमें जिला व तहसील अदालतों के अलावा हाईकोर्ट के केस भी शामिल होते हैं। न्यायालयीन प्रकरणों के अलावा प्रीलिटिगेशन के केस भी लोक अदालतों के जरिए समझौते के कारण कम हो जाते हैं।