May 15, 2024

कोरोना संकट : हम वक्त रहते चेत जाते तो भी और कितना कर लेते ?

– श्रवण गर्ग

सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म ‘ट्विटर’ पर बेल्जियम की एक नब्बे-वर्षीय कोरोना पीड़ित महिला का अस्पताल के कमरे के चित्र के साथ समाचार जारी हुआ है।महिला सूजेन ने निधन से पहले अपने इलाज के लिए वेंटिलेटर का उपयोग करने से डाक्टरों को यह कहते हुए माना कर दिया था कि:’मैंने अच्छा जीवन जी लिया है ,इसे (वेंटिलेटर को) जवान मरीज़ों के लिए सुरक्षित रख लिया जाए।’
पश्चिमी देशों में चल रहे इन विचारों ने कि संसाधनों के राष्ट्रीय स्तर पर अभाव की हालत में ‘ग़ैर ज़रूरी’ आबादी को उसके हाल पर छोड़ा जा सकता है ,और कि चिकित्सा को लेकर हालात चाहे जैसे भी हों आर्थिक गतिविविधियाँ जारी रहना चाहिए ,हमारे यहाँ वैचारिक द्वंद्व पैदा कर दिया है।एक विचार यह आया है कि इलाज और उत्पादन दोनों साथ-साथ चलें और दूसरा यह कि अर्थव्यवस्था तो वापस लौट सकती है, पर लोग नहीं।सरकार का अगला निर्णय हो सकता है इसी संशय की स्पष्टता का हो।
महामारी के सम्भावित परिणामों की शोध में जुटे विशेषज्ञों का मानना है कि ‘लॉक डाउन’ केवल अपेक्षित कार्रवाई के लिए और समय प्राप्त करने का हथियार है, उसका कोई इलाज नहीं है।इलाज केवल इसी बात में है कि संक्रमण की आशंका वाले लोगों को कितनी जल्दी टेस्टिंग के दायरे में लाया जाता है और संक्रमित मरीज़ों की पहचान करके उनके सम्पर्क में आए सभी लोगों को कवरेंटाइन की सुविधा वाले केंद्रों में पहुँचाया जाता है।पर इस विशाल कार्य के लिए न सिर्फ़ डाक्टरों की बड़ी फ़ौज चाहिए,उनके अपने बचाव के लिए पीपीई किट्स और अन्य संसाधन भी चाहिए जो कि एकदम से तो उपलब्ध नहीं ही हैं।
हम कह सकते हैं कि दक्षिण कोरिया,जापान और ताइवान सहित जिन देशों ने बिना कुछ भी बंद किए स्थिति पर क़ाबू पा लिया वे हमसे काफ़ी छोटे हैं।पर ऐसा तो चीन ने भी कर दिखाया है।वहाँ हालात लगभग सामान्य हो गए हैं।मरने वालों के आँकड़े अब चीन से ज़्यादा अमेरिका में हो गए हैं।इसीलिए यह भी पूछा जा रहा है कि महामारी के प्रति हम समय रहते चेत जाते तो भी और ज़्यादा क्या कर लेते ?
कोरोना जो सवाल छोड़कर जाएगा उसमें सबसे बड़ा यही होगा कि हमारे जितने बड़ी आबादी के लिए भविष्य की ऐसी किसी भी आपदा या वैश्विक महामारी में चौबीसों घंटे उपलब्ध रहने वाले हर तरह के
कितने संसाधनों की ज़रूरत पड़ेगी।और कि हम उसके लिए तैयार हैं या फिर केवल सामने खड़े संकट से ही किसी तरह जान बचाकर बाहर निकलना चाहते हैं ?केजरीवाल दिल्ली में 12 लाख ग़रीबों को दोनों वक्त का खाना और कितने दिन उपलब्ध करा पाएँगे ? ग़रीबों की संख्या तो करोड़ों में है।कोई भी देश कैसे लम्बे समय तक इस तरह की व्यवस्था भी चला सकता है और आर्थिक रूप से भी ज़िंदा रह सकता है ?

You may have missed

Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds