सिंहस्थ में संतों के अपने-अपने भेष, अपनी-अपनी तपस्या-साधना
ये आभूषण नहीं बल्कि शास्त्रों-यज्ञों के आवरण
उज्जैन,11 फरवरी,(इ खबरटुडे)। सिंहस्थ में साधु-संतों के तरह-तरह के भेष, आवरण और आभा मण्डल दिखाई देंगे। साधु-संत भी ग्लेमर से अछूते नहीं बचे। यहां शरीर पर गोल्डन बाबा की तर्ज पर ही लाखों रुपये के स्वर्ण सहित अन्य कीमती धातुओं, नग, मोतियों की मालाओं, अंगुठियों, हाथ के कड़े पहने अवधूत अरुणगिरी महाराज जहां भी जाते हैं सभी उनके आवरण को देख अभिभूत हुए बिना नहीं रहते।
अपने शरीर पर पांच किलो से अधिक सोना व कीमती धातु धारण
अपने आवरण संबंधी विषय पर अवधूत बाबा अरुण गिरी महाराज बड़ी बेबाकी से कहते हैं कि ये महज आभूषण नहीं है बल्कि तप, साधना, यज्ञ, अनुष्ठान के जरिए जो भी दान सामग्री जैसे सिंहमुख, हाथीमुख, सूअर मुख आदि के उक्त धातुओं के दान को सिद्ध करके दानदाता के कल्याण के लिये इन्हें मैं स्वयं धारण करता हूं। अपने शरीर पर पांच किलो से अधिक सोना व कीमती धातु धारण किये हैं। अवधूत बाबा पूरे देश में, मेला क्षेत्र, पर्व आदि में भ्रमण करते हैं। इन सिद्ध किये धातु मुखों के कारण कोई असूरी ताकत व बाधाएं कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती।
कोई 24 घंटे मिट्टी लपेटता है न सिर्फ स्वर्ण बल्कि कई साधु तो 24 घंटे अपने शरीर पर भस्म या मिट्टी का लेप किये रहते हैं। श्मशानवासी अवधूत बाबा बम-बम नाथ ठण्ड, गर्मी, बरसात में शरीर पर मिट्टी व भस्म लपेटे साधना करते हैं। स्नान के बाद पुन: शरीर पर मिट्टी-भस्मी धारण कर लेते हैं। इस साधना में वर्षों हो गये। वे श्रावण-भादौ मास में भक्तों के साथ मिलकर कावड़ यात्रियों के लिए रुद्रसागर के भोजन-फलाहारी की व्यवस्था करते हैं। नित्य महाकाल-हरसिद्धि दर्शन को आते हैं। वह भी अलसुबह 3 बजे श्मशान से भस्मी लेकर।