सिंहस्थ आयोजन किस विधान अंतर्गत?.उपसमिति के 90 फीसदी सदस्यों को नहीं पता
अध्यक्ष बोले- मध्य भारत सिंहस्थ अधिनियम 1955 के अंतर्गत होता है आयोजन
उज्जैन, 20 मार्च (इ खबरटुडे)।सिंहस्थ आयोजन के लिये जन और तंत्र दोनों सक्रिय हैं। जन से सहयोग के लिये तंत्र ने तमाम समितियां बनाई हैं। इसमें ऐसे सदस्यों को शामिल किया गया है, जो जानकार हैं और अनुभवी भी? लेकिन सिंहस्थ आयोजन किस विधान अंतर्गत होता है।
इसकी जानकारी उपसमिति के 90 फीसदी सदस्यों को नहीं है। प्रत्येक समिति में से आकस्मिक रुप से 2 सदस्यों को फोन लगाकर जब सवाल किया गया तो ऐसी स्थिति सामने आई है। हालत यह है कि तंत्र में लगे कई अधिकारियों को भी इसकी जानकारी नहीं है।
सिंहस्थ के सफल आयोजन के लिये कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। अधिकारियों का प्रशिक्षण भी आवश्यकतानुसार चल रहा है। सिंहस्थ आयोजन में सीधी-सीधी जन की भागीदारी तय करने के लिये स्थानीय जानकार और अनुभव रखने वालों के साथ ही वरिष्ठों की उपसमिति बनाई गई है। इन समितियों के सदस्यों को सिर्फ समिति से वास्ता है। इस बात से कोई सरोकार नहीं कि किस विधान के अंतर्गत यह सब हो रहा है। ज
नभागीदारी के लिये अलग-अलग समितियों में करीब 600 से अधिक सदस्यों को स्थान दिया गया। उपसमितियों पर पूरी नजर दौड़ाई गई तो यह सामने आया कि एक समिति में पति अध्यक्ष हैं, तो दूसरी समिति में पत्नी सदस्य है। पूरे विश्लेषण में यही स्थिति सामने आई कि सिर्फ समिति में नाम से वास्ता था, इस समिति का गठन किस विधान के अंतर्गत हुआ, यह जानने की किसी को कोई जरुरत नहीं लगी। मात्र 10 फीसदी ही ऐसे लोग थे जिन्हें आंशिक या विधान के संबंध में संपूर्ण जानकारी थी।
ये उपसमितियां बनी हैं
संत संपर्क एवं संवाद, पड़ाव भूमि एवं साधु समाज व्यवस्था, घाट व्यवस्था, स्वच्छ शिप्रा अभियान, शिप्रा स्नान एवं धार्मिक व्यवस्था, सिंहस्थ सेवादल, जनसहयोग एवं सत्कार, मातृशक्ति जागरण एवं बाल संरक्षण, स्वच्छता व्यवस्था, पर्यावरण संरक्षण, मंदिर धर्मशाला एवं विश्राम गृह, खाद्य एवं आपूर्ति, पेयजल, स्वास्थ्य व्यवस्था, पंचक्रोशी यात्रा, सडक़-पुल-लोक निर्माण एवं ऊर्जा, यातायात, साहित्य एवं सांस्कृतिक, प्रचार-प्रसार एवं जनसंचार, प्रदर्शनी, सूचना एवं प्रौद्योगिकी।
मीडिया जन भी अनजान
सबसे खास बात तो यह सामने आई कि प्रचार-प्रसार एवं जनसंचार के नाम पर बनी मीडिया की उपसमिति में भी कई सदस्य ऐसे रहे जिन्हें सिंहस्थ आयोजन के विधान की कोई जानकारी नहीं थी। इसके अतिरिक्त कुछ समितियों में ऐसे सदस्य भी शामिल थे, जो 1944 से सारे सिंहस्थ देखते आ रहे हैं। खास बात तो यह रही कि एक पूर्व नगरीय प्रशासन से जुड़े मंत्री भी पूरी तरह इस विधान की जानकारी नहीं रखते हैं। उनके मुताबिक विधान तो है लेकिन उसकी जानकारी नहीं। समितियों में शहर के दिग्गज नाम हैं। हर क्षेत्र के हरफनमौला भी शामिल हैं। इसके बावजूद उज्जैन के ही लोगों को ये नहीं पता है कि आखिर सिंहस्थ मेले की आयोजना किस विधान के तहत संचालित होती है।
अभिभाषक ने पूरी जानकारी दी
पड़ाव भूमि एवं साधु समाज व्यवस्था की उपसमिति से संबंधित एक अभिभाषक सदस्य को आकस्मिक रुप से फोन लगाकर जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सिंहस्थ मेला अधिनियम 1955 के अंतर्गत यह आयोजन होता है। फिर उन्होंने सुधार किया। यह पूरा अधिनियम मध्य भारत सिंहस्थ मेला अधिनियम 1955 के नाम से है।
मुझे तो आज ही पता लगा मैं सदस्य हूं
जनसहयोग एवं सत्कार उप समिति से जुड़े और शहर में अच्छा नाम रखने वाले एक सदस्य से जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मुझे तो आज ही मालूम चला कि मैं किसी समिति में सदस्य हूं। इसका कोई नियम-कानून नहीं है। मुझे फोन करके बताया गया कि आज मीटिंग है। स्वच्छता व्यवस्था समिति के भी एक सदस्य का भी ऐसा ही कुछ बयान रहा।
अध्यक्ष बोले- मैंने प्राधिकरण के समाहित करने की बात रखी थी
सिंहस्थ प्राधिकरण अध्यक्ष दिवाकर नातू से जब इस संबंध में बात की गई तो उन्होंने माना कई लोगों को जानकारी का अभाव है। वैसे मध्यभारत सिंहस्थ मेला अधिनियम 1955 प्रभावशील है। इस अधिनियम में संशोधन के लिये मैंने सिंहस्थ मेला प्राधिकरण अध्यक्ष बनने के बाद प्राधिकरण को भी इसके अंतर्गत लेते हुए अधिनियम में संशोधन को लेकर पत्र शासन स्तर पर लिखे थे। उन्होंने माना समिति के सदस्यों को इसकी जानकारी होना चाहिये।