समर्थन मूल्य पर खरीदी में घोटाला, एक बैंक खाते पर सैकड़ों पंजीयन
भोपाल,19 फरवरी (इ खबरटुडे)। प्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ई-उपार्जन के तहत हो रही खरीदी में घोटाला सामने आया है। छतरपुर जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के घोटाले की जांच के दौरान खुलासा हुआ कि एक ही बैंक खाते के नंबर पर कई किसानों का पंजीयन किया गया। जबकि ई-उपार्जन में पंजीयन के वक्त हर किसान से उसका बैंक खाता नंबर लिया जाता है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए आयुक्त सहकारिता रेणु पंत ने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश राज्य सहकारी बैंक को दिए हैं। 34 हजार से ज्यादा बैंक खातों पर कुल 77 हजार किसानों का पंजीयन किया गया है।
सूत्रों के मुताबिक छतरपुर सहकारी बैंक और उससे जुड़ी सहकारी समितियों की जांच के दौरान यह खुलासा हुआ कि कुछ संस्थाओं ने उपार्जन काम में किसानों के पंजीयन के दौरान व्यक्तिगत खातों की जगह संस्था के बचत खाते का नंबर दर्ज कर उपार्जन एजेंसी से राशि जमा करा ली।
जबकि यह राशि सीधे किसानों के खाते में जमा होनी थी। जब इस मामले में सहकारिता विभाग ने राष्ट्रीय सूचना केंद्र से खाद्य विभाग के ई-उपार्जन पोर्टल से एक ही बैंक खाते पर पंजीकृत किसानों की जानकारी निकलवाई तो चौकाने वाला खुलासा हुआ।
सिवनी में धरनकला बहरई में 489, ताकलाकल्प्र में 322, मलारा में 297 किसानों का पंजीयन एक ही बैंक खाते पर किया किया गया। इसी तरह की गड़बड़ी शहडोल, सिंगरौली, डिंडौरी, नरसिंहपुर, रीवा, कटनी, बालाघाट सहित अन्य जिलों में सामने आई। मामले की गंभीरता को देखते हुए आयुक्त सहकारिता ने राज्य सहकारी बैंक के प्रबंध संचालक को पत्र लिखकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए।
साथ ही कहा कि पंजीयन के दौरान किसानों के बैंक खाते की पासबुक की छायाप्रति लेकर यह प्रमाणित करवाया जाए कि उसका रिकार्ड दुरुस्त है या नहीं। इसके अलावा किसान के व्यक्तिगत खाते में राशि जमा की गई या नहीं, इसका भी प्रमाणीकरण कराया जाए और समिति प्रबंधक ने संस्था स्तर पर नकद राशि का भुगतान नहीं किया, यह भी जांचा जाए।
किसान के नाम पर किसने करवाया पंजीयन
आरटीआई कार्यकर्ता अजय दुबे ने कहा कि इस अनियमितता के उजागर होने से ई-उपार्जन को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। आखिर किसान के नाम पर पंजीयन किसने करवा लिया। कहीं दलालों ने तो समिति स्तर पर सांठगांठ कर अपना या पड़ोसी राज्यों का अनाज उपार्जन में तो नहीं खपा दिया। समिति के खाते में जो राशि गई, उसे किसे और कैसे बांटा गया। इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए।