May 8, 2024

सदियों पहले हो चुकी थी गॉड पार्टिकल की खोज

रतलाम 17 जुलाई  (इ खबरटुडे) कायनात को कायम करने वाले जिस गॉड पार्टिकल की खोज आज इंटरनेशनल लेवल पर की जा रही है, भारत में यह खोज सदियों पहले हो चुकी थी।  रतलाम  के वैज्ञानिक सीपी त्रिवेदी का यह दावा है। ये महज एक दावा नहीं है इसके पीछे त्रिवेदी की चालीस साल की रिसर्च है। पता चला है कि ऋग्वेद में जिस कण से सृष्टि की रचना की बात लिखी गई है, आज उसी को गॉड पार्टिकल नाम दिया गया है।जब इस रिसर्च के अंश इंटरनेशनल साइंस कॉन्फ्रेंस में भेजे गए तो उन्होंने भी इसकी सच्चई को स्वीकारा और त्रिवेदी को अपनी रिसर्च पर विस्तृत जानकारी देने के लिए कई देशों ने बुलाया। लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर प्रोजेक्ट के साइंटिस्ट प्रोफेसर विवेक शर्मा भी कह चुके हैं कि गॉड पार्टिकल तलाशने की प्रेरणा उन्हें ऋग्वेद से मिली है।

मूलभूत कणों से बने ग्रह-नक्षत्र
त्रिवेदी ने ग्रंथों के श्लोकों में छिपे विज्ञान को अपने तर्को के आधार पर सिद्ध किया है। इसके लिए उन्होंने मोहन जोदड़ो में मिली सीलों को भी आधार बनाया है। इंटरनेशनल साइंस कॉन्फ्रेंसों में उनके रिसर्च पेपर प्रस्तुत किए गए तो उन्हें इन दावों के पीछे छिपे तर्क सुनने के लिए बुलाया जा चुका है।
सृष्टि के प्रारंभ में शून्य था 
गॉड पार्टिकल की रिसर्च टीम के अहम सदस्य प्रो. विवेक शर्मा भी कह चुके हैं कि इसकी प्रेरणा उन्हें उनकी मां और ऋग्वेद से मिली। वेदों में लिखा है सृष्टि के प्रारंभ में शून्य था। इससे उन्हें ब्रहण्ड को समझने में मदद मिली। हालांकि प्रो. शर्मा न तो त्रिवेदी को जानते हैं और न ही उनके काम देखा है।
मोहन जोदड़ों की सील को डीकोड किया
सीपी त्रिवेदी ने 5000 साल पुरानी सभ्यता मोहन जोदड़ो की खुदाई में मिली सीलों और संकेतों का समझने ओर उन्हें डीकोड करने का काम किया। इस संबंध में वे किताबें भी लिख चुके हैं।
धर्म को विज्ञान से जोड़ा
त्रिवेदी को बचपन से वेद आकर्षित करते रहे हैं। उन्होंने विज्ञान को समझना शुरू किया तो कई बातों का वर्णन वेदांे में था। फिर उन्होंने धर्म को मॉडर्न साइंस से जोड़ने का काम शुरू कर दिया।
अदृश्य आकाश से मूलभूत कणों को भार मिला 
हिग्स बोसॉन कण की खोज पीटर हिग्स ने की जिससे सृष्टि की संरचना का रहस्य उजागर होता है। ब्रहण्ड में व्याप्त अदृश्य आकाश से सृष्टि के मूलभूत कणों को भार प्राप्त हुआ, जिनके एकत्रित होने से ग्रह नक्षत्र आदि बने। इसे गॉड पार्टिकल कहा जाता है।
रामायण के विमान
आधुनिक जगत में भले ही हवाई जहाजों की खोज बीसवीं सदी में की गई, लेकिन विमान रामायण युग में ही बना लिए गए थे। रामायण में इनका वर्णन भी है। महाभारत में धृतराष्ट्र के 100 पुत्र क्लोनिंग से जन्मे थे। कर्ण का जन्म स्पर्म ट्रांसप्लांट का बड़ा उदाहरण है, जो वर्तमान मंे अब संभव हुआ है। ऐसे कई वैज्ञानिक चमत्कारों तक पहुंचना बाकी है, साइंस इन्हें साबित करने में लगा है। फिलहाल ये कल्पना लगते हैं।
देश से ज्यादा विदेशों में मिला सम्मान 
त्रिवेदी के दावों को देश में इतना महत्व नहीं मिला, लेकिन विदेशों में उनके तर्को को स्वीकारा गया। यही कारण है कि उनके वैदिक विज्ञान के रिसर्च पेपर्स देखकर उन्हें इंडस वैली ह्यूमन जेनेटिक्स, साउथ अफ्रीकन, जेनेटिक्स कॉन्फ्रेंस, ओरीजन एंड ईवोल्यूशन ऑफ कंसाइंस, टूवर्ड साइंस ऑफ कंसाइंस स्वीडन, वैदिक सैल बायोलॉजी-ओहियो, एसेरॉप एशियन इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस-जापान, एनवल इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ फिलॉसफी- एथेंस, फिलॉसफी ऑफ साइंस एंड साइंस ऑफ फिलासफी और वैदिक फाउंडेशन ऑफ इंडियन मैनेजमेंट-हरिद्वार जैसे कई अंतरराष्ट्रीय मंचों से अपने बात कहने का मौका दिया गया।
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मिली तारीफ
मोहन जोदड़ो की खुदाई में मिली सीलों पर की गई त्रिवेदी की रिसर्च को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी सराहा था। उन्होंने जब अपनी रिसर्च और उसके तर्को को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास भेजा, तो प्रधानमंत्री कार्यालय से पत्र आया कि वे उनके दावांे को आगे उचित एक्शन के लिए भेज चुके हैं। इसी तरह जगदगुरुशंकराचार्य ने भी मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल को पत्र लिखकर इन रिसर्च पर ध्यान देने के लिए कहा था।

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