December 24, 2024

संस्कृति की अक्षुण्णता के लिये वैदिक पराक्रम जागृत करना होगा,तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय विराट गुरूकुल सम्मेलन का सम्पन्न

gurukul sammelan

 उज्जैन,30 मई (इ खबर टुडे ).मध्य प्रदेश शासन संस्कृति विभाग द्वारा राष्ट्रीय शिक्षण मण्डल एवं राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान के सहयोग से सान्दीपनि वेदविद्या प्रतिष्ठान उज्जैन में आयोजित तीन दिवसीय विराट गुरूकुल सम्मेलन के समापन अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए  सुरेश सोनी ने कहा कि याचना-दया के भाव से निकल कर वैदिक परम्परा में वर्णित पराक्रम का भाव जागृत करना होगा, तभी हम अपनी संस्कृति को अक्षुण्ण रख सकेंगे। उन्होंने कहा कि प्राचीन ग्रंथों के गौरव-गान के साथ-साथ नवीन विषयों का अनुसंधान भी होना चाहिये। हमें आत्ममुग्धता से बाहर आना पड़ेगा। श्रुति, युक्ति व अनुभूति का विचार करते हुए प्राचीन ग्रंथों का विश्लेषण करना चाहिये। पराविद्या के प्रकाश में भारतीय चिन्तन क्या होगा, धर्मविहीन कानून का कोई मतलब नहीं, समाजविहीन समाजशास्त्र का कोई अर्थ नहीं। भारत को यदि आज की दुनिया को मार्गदर्शन देना है तो ज्ञान का प्रवाह अवरूद्ध नहीं होना चाहिये।

गुरूकुल सम्मेलन विश्वरूप दर्शन

श्री सुरेश सोनी ने कहा कि विराट गुरूकुल सम्मेलन विश्वरूप दर्शन का स्वरूप है। विगत तीन दिनों से यहां पर चिन्तन किया गया है कि शिक्षा क्या है, पीढ़ी दर पीढ़ी शिक्षा कैसे दी जाती थी, आज की अवनति के क्या कारण हैं, समाधान के लिये क्या करना होगा। इसके लिये किस तरह का संकल्प लिया जाना चाहिये, यह सब इस आयोजन में हुआ है। उन्होंने कहा कि आज विश्व संकटग्रस्त है। 21वीं सदी में यह समस्या है कि विपरीत धाराओं के बीच समन्वय कैसे करें। श्री सोनी ने कहा कि आज ‘ग्लोबल वर्सेस लोकल’, ‘इंडिविजुअल वर्सेस यूनिवर्सल’, ‘ट्रेडिशन वर्सेस मॉडर्निटी’, ‘लाँगटर्म वर्सेस शॉर्टटर्म’ के बीच संघर्ष हो रहा है। इन सभी संघर्षों के निदान में भारतीय चिन्तन अपनी विशेष भूमिका निभा सकता है। भारतीय दर्शन कहता है कि एक ही तत्व अनेक होकर इस सृष्टि में समाहित हुआ है। यह समन्वय ही सौहार्द्र उत्पन्न करेगा। शिक्षा मानव में अन्तर्निहित पूर्णत्व की अनुभूति कराती है। भारतीय अर्थशास्त्र के लक्षणों में पक्षी को दाना देना, पक्षी के लिये पानी रखना सदियों से समाहित है। हमें पराविद्या के प्रकाश में जीवन के समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र का प्रतिपादन करना होगा। गुरूकुल शिक्षा पद्धति में प्रथम गुरू मां है और द्वितीय गुरू गुरूकुल है। उन्होंने कहा कि वर्तमान युग में आदर्श आचार्य कैसा होना चाहिये, इसका सबसे बड़ा उदाहरण आधुनिक युग के वैज्ञानिक प्रो.सीवी रमन हैं। श्री रमन ने भारत रत्न प्रदान करने वाले समारोह में केवल इसलिये जाने से इंकार कर दिया कि उनके शिष्य की उस तिथि में मौखिक परीक्षा थी।

स्वामी गोविन्दगिरी महाराज ने संकल्प दिलवाया

समापन समारोह में स्वामी गोविन्दगिरी महाराज ने संकल्प पत्र का वाचन किया तथा कहा कि हम लोगों ने तीन दिवस में जो चिन्तन-मनन किया है, उसको संकल्प के रूप में ग्रहण करना है। संकल्प से ही सिद्धि का मार्ग प्रशस्त्र होता है। इन तीन दिवसों में जो चिन्तन-मनन किया है उसका निष्कर्ष यह है कि गुरूकुल शिक्षा ही आवश्यक शिक्षा है। हमारे सम्पूर्ण चिन्तन-मनन में धर्म को शिक्षा से जोड़ना चाहिये। उन्होंने कहा राष्ट्र आज सही दिशा में जा रहा है। इस अवसर पर भगवान बुद्ध को याद करते हुए कहा कि ‘आत्मदीपो भव:’ के सिद्धान्त पर हरेक व्यक्ति को स्वयं ज्योति जलाकर प्रकाश फैलाना चाहिये। गोविन्दगिरी महाराज ने संकल्प का वाचन किया तथा उसे उपस्थित जन-समुदाय ने दोहराया।

समापन समारोह में संवित सोमगिरी महाराज ने कहा कि हमने अपने जीवन और अतीत का अवलोकन नहीं किया, इसीलिये हम पिछड़ गये। उन्होंने कहा कि हमारे गुरूकुल अपरा विद्या को पराविद्या से मिलाकर आगे बढ़ेंगे तो ही नूतन अन्वेषण कर पायेंगे। यज्ञ की प्रक्रिया से भी आविष्कार किया जा सकता है। उन्होंने आव्हान किया कि यहां आये हुए बटुक भविष्य के आचार्य बनें और नये-नये गुरूकुल खोलते जायें, तभी गुरूकुल शिक्षा का प्रचार-प्रसार हो सकेगा।

समापन कार्यक्रम में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए सान्दीपनि वेदविद्या प्रतिष्ठान के आचार्य श्री रविन्द्र मूले ने कहा कि ‘चरेवेति चरेवेति’ का मंत्र लेकर ही आगे बढ़ना होगा। गुरूकुल शिक्षण पद्धति द्वारा आत्मविश्वास बढ़ाना होगा। शिक्षा के द्वारा जीवन जीने का सामर्थ्य मिलना चाहिये। गुरूकुल परम्परा में ज्ञान का अत्यधिक महत्व है। व्यक्ति यदि ज्ञान के लिये समर्पित होता है, तो उसको कभी न कभी फल मिलता ही है। भारत कर्मशील व ज्ञानवान गुरूकुल परम्परा के निर्वाह से ही सशक्त बनेगा। श्री मूले ने कहा कि ज्ञान प्राप्ति का लक्ष्य निरभिमानी होना है। ज्ञान प्राप्त करने के लिये श्रद्धा व तपस्या की आवश्यकता होती है। गुरू-वचनों पर श्रद्धा होनी चाहिये।

आभार प्रकट करते हुए मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि तीन दिवसीय कार्यक्रम में कई विभूतियों ने विराट गुरूकुल सम्मेलन में अपने-अपने अमूल्य विचार रखे हैं। इसी के आधार पर तैयार किये गये संकल्प-पत्र का क्रियान्वयन निकट भविष्य में होगा। श्री श्रीवास्तव ने सम्मेलन में आये सभी देश-विदेश के विद्वानों का आभार प्रकट किया। समापन कार्यक्रम में अतिथियों का परिचय वेदविद्या प्रतिष्ठान के सचिव श्री विरूपाक्ष जड्डीपाल ने दिया तथा कार्यक्रम का संचालन भारतीय शिक्षण मण्डल की महामंत्री श्रीमती अरूणा सारस्वत ने किया।

समापन समारोह में गुजरात के साबरमती गुरूकुलम के कुलपति श्री उत्तमभाई शाह की पत्नी श्रीमती शकुंतलादेवी शाह का सम्मान मंच से श्री सुरेश सोनी, स्वामी गोविन्दगिरी महाराज, श्री संवित सोमगिरी महाराज एवं अन्य अतिथियों द्वारा किया गया। इसी तरह मानव संसाधन विकास विभाग के अधिकारी श्री सचिन सिन्हा द्वारा प्रस्तुत की गई गुरूकुल पाठ्यक्रम की पुस्तकों का वितरण भी मंच से किया गया। इस अवसर पर लोकसभा सदस्य डॉ.चिन्तामणि मालवीय, राज्यसभा सदस्य डॉ.सत्यनारायण जटिया, भारतीय शिक्षण मण्डल के अध्यक्ष डॉ.सच्चिदानन्द जोशी, महामंत्री डॉ.वामन गोगोटे, नेपाल सरकार के पूर्व संयुक्त महामंत्री श्री महेश्वर पौंडेल, काठमाण्डू नेपाल के शिक्षाविद व पूर्व रजिस्ट्रार सुप्रीम कोर्ट नेपाल डॉ.रामकृष्ण तिमिलसिना, आचार्य रामचन्द्र भट्ट, मानव संसाधन मंत्रालय के निदेशक श्री सचिन सिन्हा उपस्थित थे। समापन समारोह के अन्त में ‘वन्दे मातरम’ का गायन हुआ।

7 देशों के 121 प्रतिनिधि सहित कुल 3702 डेलीगेट्स ने भाग लिया

तीन दिवसीय विराट गुरूकुल सम्मेलन में सात देशों के 121 प्रतिनिधियों ने तथा 21 राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन में नेपाल के 90, भूटान के 7, म्यांमार के 7, थाईलेंड के 5, जापान के 2 तथा दुबई के 3 प्रतिनिधि शामिल हुए। सम्मेलन में कुल 3702 डेलीगेट्स शामिल हुए।

सम्मेलन में लिया गया संकल्प

हम भारत, नेपाल, म्यांमार, भूटान, थाईलैंड, कतार, जापान, कनाडा, इन देशों के गुरूकुलों के प्रतिनिधि, आयोजक, शिक्षाविद, शोधार्थी, शैक्षिक संस्थाचालक, इस अंतराष्ट्रीय विराट गुरूकुल सम्मेलन में वैशाख शु. त्रयोदशी, चतुर्दशी व बुध्दपूर्णिमा विक्रम संवत् 2075 (दिनांक 28 अप्रेल से 30 अप्रेल 2018) को महाकाल की नगरी तथा भगवान श्री कृष्ण की शिक्षाभूमि के रूप में विख्यात पवित्र अवंतिका अर्थात उज्जैन नगर में सहभागी रहे। इन तीन दिनों में गुरूकुल शिक्षा को लेकर हुए विचार विमर्श के उपरांत यह संकल्प करते हैं कि –

प्राचीन काल से समर्थ स्वाबलंबी समाज निर्माण करने वाली ‘गुरूकुल शिक्षाप्रणाली’ को प्रोत्साहन देने हेतु मन, वचन, कर्म से क्रियाशील रहेंगे।
अपने-अपने क्षेत्र में संचालित गुरूकुलों को समाज पोषित एवं स्वावलंबी बनाने हेतु योगदान देंगे।
गुरूकुलों की शिक्षा को युगानुकूल एवं देशानुकूल बनाने के लिए प्रारूप बनाने का कार्य करेंगे।
आधुनिक शिक्षा संस्थानों में गुरूकुल शिक्षा के तत्व, वैज्ञानिक शिक्षण पद्धति, संस्कारक्षम तथा शैक्षणिक वातावरण निर्मित कराने हेतु व्यक्तिगत तथा संस्थागत स्तर पर कार्य करेंगे।
नवीन गुरुकुलों की स्थापना हेतु भूमि एवं अन्य संस्थाधन उपलब्ध कराने हेतु उदारमना दानदाताओं को प्रेरित करेंगे।
व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर उन्हें समाज एवं राष्ट्रोपयोगी नागरिक बनाने वाली गुरुकुल शिक्षा प्रणाली में अपने बालक-बालिकाओं को प्रवेश दिलाने हेतु अभिभावकों को प्रेरित करेंगे।
गुरुकुल शिक्षा के इस ज्ञानयज्ञ में अपनी सेवाएं समर्पित करने हेतु विभिन्न आचार्यों को प्रेरित करेंगे तथा विद्वान आचार्यों का योगक्षेम वहन करने के उद्देश्य से स्थायी “आचार्य योगक्षेम निधि” का निर्माण करेंगे।
समाज और मानवता का कल्याण करने वाली गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के विभिन्न आयामों पर शोध करने एवं कराने हेतु तथा उसे प्रकाशित करके विश्व के उन्नयन में लगाने हेतु शोधार्थी एवं शिक्षाविदों को प्रोत्साहित करेंगे।
गुरुकुल के संचालन में आने वाली प्रशासनिक बाधाओं को न्यूनतम करते हुए समकक्षता आदि सुविधाएं प्रदान करने हेतु मार्ग प्रशस्त करेंगे।

सहयोग करने वालों को साथ लेकर, न करने वालों को क्रमश: मनाकर, विरोध करने वालों को प्रसत्नपूर्वक अनुकूल बनाकर अंतत: हमारे लक्ष्य को हम पूर्ण करके ही मानेंगे।

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