संत की होली
-डॉ.डीएन पचौरी
एक वो भी होली थी,
एक ये भी होली है।
अरबों खरबों के संत के पास,
एक जेल की खोली है।
उस होली पर सूरत में,
संत ने ऐसा उत्पात मचाया,
होली खेलने के बहाने,
हजारों लीटर पानी व्यर्थ बहाया,
पानी की किल्लत पर,
लोगों ने जब एतराज जताया,
अपनी दबंगई से संत ने,
लोगों को धमकाया।
उपर वाले तेरी अजब है लीला,अजब है माया,
इस होली पर सुना है,संत जेल में कई दिनों से नहीं नहाया।
भोग को तपस्या समझ बैठे,
पंचेड बूटी तक खाई,
तृष्णा का कोई अंत नहीं,
यह बात समझ में ना आई,
लाखों लोगों के ईष्ट देव,
करनी का फल पाओगे,
इस लोक में तुमको चैन नहीं,
उस लोक में पछताओगे।
हरिओम जपते जपते,
क्या कर बैठे अज्ञान,
जैसे करम करेगा,
वैसे फल देगा भगवान,
ये है गीता का ज्ञान,ये है गीता का ज्ञान।
इन संतों की काली करतूतों को,
समझो चतुर सुजान,
भोग विलास में लिप्त संत
क्या करेंगे तुम्हारा कल्याण।